राघव चड्ढा ने राज्यसभा स्पीकर से केंद्र सरकार के अध्यादेश को राज्यसभा में पेश न करने का आग्रह किया

केंद्र सरकार के अध्यादेश को राज्यसभा में पेश न करने का आग्रह किया

Update: 2023-07-23 14:13 GMT
नई दिल्ली: केंद्र सरकार के अध्यादेश के खिलाफ आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में अपना विरोध तेज कर दिया है. आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा ने अब राज्यसभा अध्यक्ष को एक पत्र भेजा है. उन्होंने इस पत्र के माध्यम से आग्रह किया है कि केंद्र सरकार के अध्यादेश को राज्यसभा में पेश न किया जाए.
आप सांसद ने तीन कारण बताए हैं कि क्यों इस बिल को राज्यसभा में पेश नहीं किया जाना चाहिए। चड्ढा ने कहा है कि केंद्र सरकार द्वारा दिल्ली में बिल बनाने के लिए प्रस्तावित अध्यादेश को संसद में पेश करना नाजायज और गलत है, और इसे राज्यसभा में पेश नहीं किया जाना चाहिए।
राघव चड्ढा ने मीडिया से कहा, ''मैंने आज (रविवार) देश के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति को एक पत्र लिखा है।''
11 मई, 2023 को सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने एक सर्वसम्मत निर्णय जारी किया जिसमें लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को नौकरशाही से जुड़ी शक्तियाँ, अधिकारियों को नियुक्त करने की शक्तियाँ और सेवाओं से जुड़ी शक्तियाँ प्राप्त हुईं। राघव चड्डा ने आगे कहा कि 11 मई 2023 को फैसले के बाद महज 8 दिन के अंदर केंद्र सरकार अध्यादेश लाकर इसे पलट देती है.
केंद्र सरकार अब इस अध्यादेश को राज्यसभा के समक्ष पेश करने की कोशिश कर रही है ताकि यह राज्यसभा और लोकसभा दोनों से पारित होकर कानून बन सके। इसे देश की संसद में पेश करना गैरकानूनी होगा. इसके पीछे तीन मुख्य कारण हैं. राघव चड्ढा ने जो पहली बात कही वह यह है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में संशोधन करने या पलटने के लिए फैसले का आधार बदलना होगा। यदि आप आधार में संशोधन नहीं करते हैं और केवल अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने का प्रयास करते हैं तो इसे अवैध माना जाता है।
दूसरा कारण- इस बिल को राज्यसभा में क्यों नहीं पेश किया जाना चाहिए? इस बारे में एक और तर्क देते हुए राघव चड्ढा ने कहा कि संविधान के अनुच्छेदों को पूरा करने के लिए ही देश में कानून बनाए जाते हैं. लेकिन इस अध्यादेश के जरिए संविधान के अनुच्छेद 239 AA को खत्म कर दिया गया. यह अध्यादेश संविधान के अनुच्छेद की धज्जियां उड़ा रहा है.
तीसरा कारण- राघव चड्ढा ने आगे कहा कि यह नया अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट में भी विचाराधीन है. अब पांच जजों की संवैधानिक पीठ इसकी समीक्षा करेगी. यह अदालत इसकी वैधानिकता पर गौर करेगी. अत: जब तक इस विषय पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विचार किया जा रहा है, तब तक इसे संसद के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया जाना चाहिए और न ही इस पर कोई वोट लिया जाना चाहिए।
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