353 जगहों पर हरियाणा में जली धान की पराली, क्यों मान नहीं रहे किसान
पराली जलाने की घटनाएं घटने की जगह बढ़ने लगी हैं
पराली जलाने की घटनाएं घटने की जगह बढ़ने लगी हैं. रविवार 31 अक्टूबर को इस मौसम में पराली जलाने की सबसे ज्यादा घटनाएं रिकॉर्ड की गईं. धान उत्पादक प्रमुख छह राज्यों में 3732 जगहों पर ऐसी घटना हुई हैं. जबकि, शनिवार 30 अक्टूबर को 1762 घटनाएं हुई थीं. यानी एक ही दिन में डबल से भी ज्यादा. पंजाब के किसान तो पराली प्रबंधन के लिए बिल्कुल राजी नहीं दिख रहे हैं. अकेले यहीं पर एक दिन में 2895 केस सामने आए हैं. जबकि दूसरे नंबर पर हरियाणा रहा, जहां पर 353 जगहों पर पराली जली. मध्य प्रदेश में 299 जगहों पर पराली जली है. सवाल ये है कि क्या सरकारें पराली प्रबंधन के सबसे सस्ते विकल्प के बारे में भी किसानों को नहीं समझा पाई हैं.
केंद्रीय कृषि मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक 15 सितंबर से 31 अक्टूबर तक छह राज्यों (पंजाब, हरियाणा, यूपी, दिल्ली, राजस्थान और एमपी) में पराली जलाने की कुल 18,449 घटनाओं का पता चला है. जिनमें से 13,269 केस सिर्फ पंजाब के हैं. इस दौरान हरियाणा में 2914, यूपी में 1060, राजस्थान में 124 और मध्य प्रदेश में 1082 जगहों पर पराली जलाई गई है. दिल्ली में एक भी केस नहीं है.
पिछले साल से कम हैं मामले
>> पिछले साल से तुलना करें तो पराली जलाने की घटनाओं में 31 अक्टूबर तक 55 की कमी है. पिछले साल 31 अक्टूबर तक पंजाब में पराली जलाने की 33,243 घटनाएं हुई थीं. जबकि इस साल 13,269 केस ही सामने आए हैं. यहां पर 60.1 फीसदी की कमी दर्ज की गई है.
>> हरियाणा में पिछले साल 31 अक्टूबर तक 2344 जगहों पर ही खेतों में आग लगाई गई थी. जबकि इस साल 2914 केस हो गए हैं. यानी यहां पर ऐसी घटनाओं में 24.3 फीसदी की वृद्धि हुई है.
>> यूपी में 31 अक्टूबर तक पराली जलाने की घटनाओं में 10.2 फीसदी की कमी दर्ज की गई है. पिछले साल यानी 2020 में 1181 जगहों पर खेतों में आग लगाई गई थी. जबकि इस साल 1060 केस ही हुए हैं.
>> राजस्थान ऐसा राज्य है जहां पर पराली जलाने की घटनाओं में 2020 के मुकाबले 81.1 फीसदी की कमी दर्ज की गई है. पिछले साल 656 केस हुए थे, जबकि इस साल सिर्फ 124 मामले ही हैं.
>> मध्य प्रदेश में 2020 की तुलना में 69.6 की कमी दर्ज की गई है. साल 2020 में 31 अक्टूबर तक 3564 घटनाएं हुई थीं जबकि इस साल 1082 केस सामने आए हैं.
>> दिल्ली सरकार ने सबसे शानदार काम किया है. यहां पर 2020 के मुकाबले पराली जलाने की घटनाओं में 100 फीसदी की कमी आई है. पिछले साल 8 जगहों पर पराली जली थी, जबकि इस साल 31 अक्टूबर तक एक भी केस नहीं है.
सिर्फ 50 रुपये में होगा समाधान
पराली जलाने की वजह से किसानों को नुकसान होता है. क्योंकि खेत की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है. इसके बावजूद किसान उसे जला रहे हैं. सवाल यह उठता है कि क्या सरकार ऐसे किसानों तक पूसा बायो डीकंपोजर (Pusa Bio Decomposer) नहीं पहुंचा पाई है, जिससे पराली खाद बन जाएगी. वो भी सिर्फ 50 रुपये का खर्च करने से.
किसानों के लिए सलाह
पूसा में माइक्रोबायोलॉजी डिपार्टमेंट के प्रधान वैज्ञानिक युद्धवीर सिंह का कहना है कि किसानों को सबसे पहले 150 ग्राम पुराना गुड़ लेना होगा. उसे पानी मे लेकर उबाल लें. उसका खराब हिस्सा निकालकर घोल को ठंडा कर लें. फिर उसे लगभग 5 लीटर पानी मे घोल लें और लगभग 50 ग्राम बेसन मिला दें. फिर डी-कंपोजर के 4 कैप्सूल खोलकर उस घोल में मिला दें. घोल को लगभग 5 दिन के लिए किसी हल्के गर्म स्थान पर रखें. फिर अच्छी तरह से उसे मिलाने के बाद कंपोस्ट घोल इस्तेमाल के लिए तैयार हो जाएगा. फिर इसे 25 लीटर पानी में घोलकर पानी के साथ खेत में डाल दें और रोटावेटर चला दें. पराली खाद बन जाएगी.