जानिए कोरोमंडल एक्सप्रेस क्यों है साउथ में लोगों की पहली पसंद, कब से चल रही यह ट्रेन?
ओडिशा के बालासोर के बहनागा स्टेशन के पास 2 जून की शाम को तीन ट्रेनों के बीच भीषण टक्कर में 261 लोगों की मौत हो गई जबकि 900 से अधिक लोग घायल हो गए हैं। जिन तीनों ट्रेनों में भीषण टक्कर हुई उनमें कोरोमंडल एक्सप्रेस, बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट और एक मालगाड़ी थी। लेकिन इनमें कोरोमंडल एक्सप्रेस बुरी तरह से प्रभावित हुई और देखते-देखते कई लोगों की जान चली गई। चलिए इन सब के बीच आज हम आपको कोरोमंडल एक्सप्रेस के इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं और यह भी बताएंगे कि आखिर यह लोगों की पहली पसंद क्यों थी? 1977 से चल रही कोरोमंडल एक्सप्रेस कोरोमंडल सुपरफास्ट ट्रेन की शुरुआत साल 1977 में हुई थी। शुरू में यह ट्रेन हफ्ते में केवल दो दिन चलती थी और केवल तीन जगह विजयवाड़ा, विशाखापत्तनम और भुवनेश्वर में इसकी स्टॉपेज थी। बता दें यह ट्रेन चार राज्यों से होकर गुजरती है। उस समय यह ट्रेन शाम के 5.15 में हावड़ा से चलती थी और अगले दिन शाम के 4 बजकर 45 मिनट पर पहुंचती थी। तब यह सुपरफास्ट ट्रेन 1,662 किमी की यात्रा 23 घंटे 30 मिनट में पूरा करती थी। वहीं चेन्नई से यह सुबह 9 बजे चलती थी और अगले दिन सुबह 8.30 बजे हावड़ा पहुंचती थी।
क्यो पड़ा इस ट्रेन का नाम कोरोमंडल एक्सप्रेस बंगाल की खाड़ी से लगे देश के पूर्वी तट को कोरोमंडल कोस्ट कहा जाता है और यह ट्रेन पूरे कोरोमंडल कोस्ट से होकर गुजरती है। इसी से इस ट्रेन को कोरोमंडल एक्सप्रेस नाम दिया गया है। शालीमार से चेन्नई जाते समय इस ट्रेन को रेलवे की तरफ से सबसे अधिक प्राथमिकता दी जाती है। इसी कारण से इस ट्रेन को किंग ऑफ साउथ ईस्टर्न रेलवे भी कहा जाता है। क्यों है लोगों की पहली पसंद कोलकाता से चेन्नई जाने वाले अधिकांश पैसेंजर इसे सबसे पहले पसंद करते हैं क्योंकि यह चेन्नई मेल से कम समय में गंतव्य पर पहुंच जाती है। तमिलनाडु के आम लोगों के बीच यह ट्रेन बहुत ही ज्यादा फेमस है। यही वजह है कि इस ट्रेन की बुकिंग तेजी से फुल हो जाती है। दूसरी बात यह ट्रेन आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा से चेन्नई के बीच नॉन-स्टॉप चलती है। यानी करीब 430 किमी की दूरी के दौरान यह ट्रेन एक बार भी नहीं रुकती है और छह घंटे लगातार चलती रहती है। इसकी अधिकतम रफ्तार 130 किमी प्रति घंटे है।