जानिए बांग्लादेशी लोगो से भरी पड़ी जहांगीरपुरी के बारे में, नशा के नैक्सस से कबाड़ के कारोबार की बड़ी कहानी

Update: 2022-04-23 07:25 GMT

दिल्ली न्यूज़: एक वर्ग किलोमीटर में फैला जहांगीरपुरी इलाका 50 साल से ज्यादा का हो गया है। जहांगीरपुरी में 22 गज के मकानों में अधिकतर भारत की सीमा से सटे क्षेत्र के लोग हैं या फिर बांग्लादेश से आकर दिल्ली में बसे लोगों ने यहां अपने आशियाने बनाए हैं। यहां देश के लगभग हर क्षेत्र के आप्रवासी और श्रमिक तबके के लोगों की पनाहगाह है। यहां से प्रतिदिन 60 लाख रुपयों से ज्यादा का कबाड़ का कारोबार होता है। इसके अलावा, कुछ छोटे तालाबों में मछली पालन करने की भी जगह इन्हें दी गई है। समय के साथ जहांगीरपुरी सिकुड़ता चला गया। अब आलम यह है कि यहां काफी संकरी गलियां बन चुकी हैं। बहुत से लोगों ने 22 गज के प्लाटों पर तीन से चार मंजिला मकान बना लिए हैं, जो नगर निगम की अनुमति के बिना ही बनाए गए हैं। यही नहीं, यहां के फुटपाथों पर भी झुग्गी डालकर घेर लिया गया है। आज आलम यह है कि जहांगीरपुरी बहुत घना रिहाइशी क्षेत्र बन चुका है। जानकर बताते हैं कि 'ए' से 'एच' ब्लॉक में बंटे जहांगीपुरी में आज जनसंख्या 5 लाख से ऊपर है। ज्यादातर मुस्लिम आबादी स्क्रैप का बिजनेस करती है। यहां अवैध रूप से शराब, गांजा, स्मैक, चरस आदि नशा का धंधा भी खूब फल-फूल रहा है। बताया जा रहा है कि कई दशक पहले यहां दस हजार परिवार बंगाल से आए थे। वो बंगाली मुस्लिम हैं, जो बंगाल, बिहार और बांग्लादेश सीमा से सटे इलाकों से पलायन कर यहां आए।

यहां की कुल आबादी में 20 फीसदी आबादी कचरा बीनने वाले बच्चों और परिवारों की है। ऐसे करीब 5 हजार परिवार इन झुग्गियों में रहते हैं जो कचरा उठाकर और उसे बेचकर अपना पेट पालते हैं। जो लोग कचरा बीनने का काम करते हैं, उनमें करीब 30 फीसदी हिंदू हैं और बाकी सारे मुस्लिम हैं। जहांगीरपुरी में कचरा बीनने वालों की आबादी इसलिए ज्यादा है, क्योंकि बगल में ही भलस्वा डेरी इलाके में डंपिंग यार्ड बना हुआ है। जानकारों ने बताया कि 1970 में जब नसबंदी कार्यक्रम चला, उस समय जहांगीरपुरी में बसावट हो रही थी। कहा जाता है कि 1975 में संजय गांधी की देखरेख में जब दिल्ली को एक नया रूप देने के नक्शा तैयार किया गया, तो नई दिल्ली और उसके आसपास की झुग्गियों को हटाया गया था। लोगों को जहांगीरपुरी और मंगोलपुरी में घर बनाने के लिए साढ़े 22 गज की जमीन दी गई। जमीन पर लोगों ने धीरे-धीरे अपने आशियाने बनाने शुरू किए थे।

जहांगीरपुरी क्राइम का गढ़: पुलिस अधिकारियों ने बताया कि जहांगीरपुरी कुछ समय पहले काफी शांत इलाका माना जाता था। लेकिन समय के साथ यहां पर जिस तरह से क्राइम बढ़ा है, उसमें किशोरों की भूमिका काफी ज्यादा है। यहां से अवैध शराब की बिक्री, ड्रग्स, सट्टा सबसे ज्यादा होता है। आए दिन लूट और झपटमारी और चाकू मारने की वारदात थाने में दर्ज होती हैं। सच्चाई यह है कि आज कोई एसएचओ इस थाने में अपनी तैनाती नही करवाना चाहता है।

बांग्लादेशी नागरिकों के बने हैं आधार कार्ड: पुलिस सूत्रों की मानें तो यहां और इसके आसपास रहने वाले बांग्लादेशी लोगों के आधार कार्ड भी हैं। उनके आधार कार्ड के फार्म को खंगाला जाए तो शायद ही किसी का सही डाटा मिल पाएगा। इनकी एम्बेसी में भी इनका कोई रिकॉर्ड नहीं है। जहांगीरपुरी जीएच ब्लॉक के रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष इंद्रमणि तिवारी बताते हैं, जहांगीरपुरी के चारों तरफ झुग्गी-झोपड़ी बस गई हैं। शुरू में ज्यादातर वाल्मीकि समाज के लोगों को यहां जमीन दी गई थी। बांग्लादेशी मुस्लिम यहां कूड़ा बीनने आते थे। धीरे- धीरे उन्होंने झुग्गी डालना शुरू कर दिया और मकान खरीदने लगे। इस तरह यहां बांग्लादेशी मुस्लिमों की तादात बढऩे लगी। जहांगीरपुरी में करीब 100 परिवार ऐसे हैं जो मछली पालने का काम करते हैं। ये मजलिस पार्क मेट्रो स्टेशन के पास मछली मार्केट में मछली लाकर बेचते हैं। ये करीब बीस साल से काम कर रहे हैं और इनमें ज़्यादातर बांग्लादेशी मुसलमान हैं। यहां के मुसलमान बांग्ला बोलते हैं।

Tags:    

Similar News

-->