पत्रकारों के उत्पीड़न और न्यूज़क्लिक के दो प्रमुख कार्यकारियों की गिरफ़्तारी पर निम्नलिखित बयान जारी किया
नई दिल्ली। कल रात दिल्ली पुलिस द्वारा न्यूज़क्लिक के प्रधान संपादक प्रबीर पुरकायस्थ और प्रशासक अमित चक्रवर्ती की यूएपीए के तहत गिरफ़्तारी और न्यूज़क्लिक पर तालाबंदी भारत में स्वतंत्र मीडिया का गला घोंटने के मक़सद से सरकार द्वारा की गयी अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई है। इस मीडिया संस्थान से जुड़े लगभग पचास लेखकों-पत्रकारों के लैपटॉप, सेल फ़ोन आदि की जब्ती और उनसे दिन भर की पूछताछ के बाद देर शाम इस काम को अंजाम दिया गया। पिछले नौ सालों में सरकार इस देश के लोकतंत्र को जिस तरह जर्जर और रुग्ण बनाती आयी है, यह उसका नया चरण है। दमनकारी यूएपीए क़ानून आतंकवाद से निपटने के नाम पर लाया गया था, लेकिन भीमा कोरेगाँव से लेकर दिल्ली दंगे के फ़र्ज़ी मामलों तक इसका इस्तेमाल अक्सर लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने वाले लेखकों और कर्मकर्ताओं के विरुद्ध किया गया है। भीमा कोरेगाँव मामले में जिन लेखकों-कार्यकर्त्ताओं की गिरफ़्तारी आज से चार साल पहले हुई थी, उनके ख़िलाफ़ आज भी क़ायदे से चार्जशीट दाख़िल नहीं हो पायी है। उनके कंप्यूटर में उनकी जानकारी के बगैर एक मालवेयर के ज़रिये जो फ़र्ज़ी पत्राचार डाले गये थे, उनके बारे में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत भरोसेमंद मानी जाने वाली एजेंसियों द्वारा दी गयी विस्तृत रिपोर्ट के बावजूद उनमें से ज़्यादातर लेखक-कार्यकर्त्ता अभी तक जेल में हैं या नज़रबंद हैं।
सरकार की आलोचना करने वाले नागरिकों के विरुद्ध पेगासस जैसे ख़तरनाक जासूसी सॉफ्टवेयर के अवैध इस्तेमाल की रिपोर्टें भी आती रही हैं। भीमा कोरेगाँव मामले की तर्ज़ पर ही, न्यूज़क्लिक के ख़िलाफ़ सरकार कोई मामला साबित करने की स्थिति में भले न हो, यूएपीए का सहारा लेकर दोनों प्रमुख कार्यकारियों को लंबे समय तक जेल में रखने में कामयाब रहेगी। और सबसे बड़ी कामयाबी तो यह कि न्यूज़क्लिक की तालाबंदी से इस देश के जागरूक नागरिक ख़बरों और विश्लेषणों के एक वैकल्पिक स्रोत से वंचित हो जायेंगे। सांस्कृतिक संगठनों का यह साझा मंच—हम देखेंगे—सरकार के इस क़दम की कठोर शब्दों में निंदा करता है और न्यूज़क्लिक पर लगे प्रतिबंध को हटाने तथा प्रबीर पुरकायस्थ और अमित चक्रवर्ती को अविलंब रिहा किये जाने की माँग करता है। इसी के साथ हम यूएपीए को निरस्त करने की व्यापक नागरिक समाज की माँग में भी खुद को शामिल करते हैं। प्रगतिशील लेखक संघ, जनवादी लेखक संघ, जन संस्कृति मंच, दलित लेखक संघ, जन नाट्य मंच, जन संस्कृति, भारतीय जन नाट्य संघ, प्रतिरोध का सिनेमा, अखिल भारतीय दलित लेखिका मंच, न्यू सोशलिस्ट इनिशिएटिव, स्त्री दर्पण और लिखावट की ओर से जारी।