चेन्नई, 21 मई (आईएएनएस)। काफी धूमधड़ाके साथ टेकऑफ के बाद क्रैश लैंडिंग शुरू से ही भारतीय विमानन क्षेत्र में देखा गया है।एनईपीसी एयरलाइंस, दमानिया एयरवेज, जेट एयरवेज, किंगफिशर एयरलाइंस, डेक्कन एविएशन, पैरामाउंट एयरवेज जैसे बड़े नामों के अलावा कई आया राम और गया राम इसके कुछ उदाहरण हैं। न सिर्फ ये एयरलाइंस डूब गईं, बल्कि वे उन्हें कर्ज देने वाले सार्वजनिक बैंकों और उनमें निवेश करने वाले आम शेयरधारकों की पूंजी भी ले डूबे।
यह अलग बात है कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) ने ट्रेडमार्क/ब्रांड वैल्यू की एवज में किंगफिशर एयरलाइंस को हजारों करोड़ रुपये उधार दिए थे। लंबे समय तक एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस (बाद में एयर इंडिया में विलय) बची रह सकीं क्योंकि वे भारत सरकार के स्वामित्व में थीं। हाल ही में टाटा समूह ने एयर इंडिया का अधिग्रहण किया है। जो भी हो, अब दो एयरलाइंस वित्तीय समस्याओं के लिए सुर्खियों में हैं - गो एयरलाइंस (इंडिया) और स्पाइसजेट। वाडिया समूह की गो एयरलाइंस ने इस महीने की शुरुआत में स्वेच्छा से राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) के समक्ष से संबंधित इस महीने की शुरूआत में स्वेच्छा से एक दिवाला याचिका दायर किया, जिसे बाद में स्वीकार कर एक अंतरिम समाधान पेशेवर (आईआरपी) नियुक्त किया गया।
गो एयरलाइंस के अधिकारियों ने कहा कि यह उसके बेड़े के विमानों को पट्टेदारों द्वारा वापस ले लिए जाने से बचाने के लिए किया गया था। गो एयरलाइंस ने अपनी समस्याओं के लिए इंजन आपूर्तिकर्ता प्रैट एंड व्हिटनी को दोषी ठहराया क्योंकि उसके 54 विमानों के बेड़े का लगभग 50 प्रतिशत इंजन की खराबी के कारण ग्राउंडेड है और आपूर्तिकर्ता ने अतिरिक्त इंजनों की आपूर्ति से मना कर दिया है।
दूसरी ओर, आयरलैंड स्थित विमान पट्टेदार एयरकैसल लिमिटेड ने एनसीएलटी की मुख्य बेंच के समक्ष याचिका दायर कर एयरलाइन के खिलाफ दिवालियापन प्रक्रिया शुरू करने की मांग की है। तो, क्या भारतीय विमानन क्षेत्र आया राम और गया राम की कहानी है या यह बदलाव के लिए तैयार है?
ऐसा कहा जाता है कि बढ़ता मध्यम वर्ग किफायती विमान सेवा कंपनियों (एलसीसी) के लिए बेहतरीन अवसर प्रदान करता है। गो एयरलाइंस के सीईओ कौशिक खोना ने कम लागत वाली एयरलाइंस के व्यवहार्य व्यावसायिक प्रस्ताव के सवाल पर कहा कि कंपनी 2009-10 से 2019-20 तक मुनाफा कमा रही थी। जनवरी 2020 से ही प्रैट एंड व्हिटनी इंजन की समस्या बढ़ गई और कंपनी को समस्याओं का सामना करना पड़ा क्योंकि एयरलाइंस की निश्चित लागत बहुत ज्यादा होती है। खोना ने कहा कि केवल किफायती एयरलाइंस व्यवसाय ही लाभदायक हो सकता है। भारत सरकार नए हवाईअड्डों के निर्माण पर भी ध्यान केंद्रित कर रही है, जो बदले में एयरलाइंस के लिए हवाई संपर्क और पैसेंजर लोड फैक्टर (भरी सीटों के अनुपात) को बढ़ाएगा।
भविष्य की बात भविष्य में। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी आईसीआरए की मौजूदा रिपोर्ट उद्योग के लिए एक अलग तस्वीर पेश करती है। आईसीआरए ने अपनी नवीनतम क्षेत्रीय रिपोर्ट में कहा कि वित्त वर्ष 2023-24 में विमानन उद्योग का नुकसान कम होकर लगभग 50-70 अरब रुपये रह जाने की संभावना है, क्योंकि यात्रियों की संख्या ठीक-ठाक है और एयरलाइंस में अपना राजस्व बढ़ाने की क्षमता है।
ऐसा कहा जाता है कि उच्च लागत और टिकट की कम कीमतों के कारण किफायती विमान सेवा खंड फंस गया है।अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये के कमजोर पड़ने और विमानईंधन (एटीएफ) की ऊंची कीमत एयरलाइंस की नींव को प्रभावित करती हैं।