पेड़ों की कटाई पर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन जरूरी
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन को मेट्रो के विस्तार के लिए जितने भी पेड़ काटने हैं
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन को मेट्रो के विस्तार के लिए जितने भी पेड़ काटने हैं, उसके लिए वन संरक्षण अधिनियम के तहत वन विभाग से ही मंजूरी लेनी होगी. साथ ही कोर्ट ने कहा कि वह अपनी ओर से नियुक्त केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति की इस दलील को स्वीकार नहीं करेगा कि सभी पेड़ वन नहीं है. गौरतलब है कि डीएमआरसी ने सुप्रीम कोर्ट में एक आवेदन दायर किया था, जिसमें मेट्रो रेल परियोजना के चौथे चरण के निर्माण के लिए होने वाले पेड़ों की कटाई की अनुमति मांगी थी
पेड़ों की कटाई पर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसलाडीएमआरसी की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस एल नागेश्वर राव, बी आर गवई और बी वी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि इस पूरे मामले में समिति द्वारा अपनाए गए रुख को स्वीकार नहीं किया जा सकता है. हम यह स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं कि सभी लगाए गए पेड़ जंगल नहीं हैं. यह अराजकता की ओर ले जाएगा. एक पेड़ लगाया गया है या प्राकृतिक रूप से उगाया गया है, यह कौन तय करेगा?
विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन जरूरी: सुप्रीम कोर्ट
वहीं समिति की ओर से पेश हुए वकील ए डी एन राव ने तर्क दिया कि पैनल ने 1996 में शीर्ष अदालत के पहले के फैसले के आधार पर स्टैंड लिया था कि एक परियोजना क्षेत्र में लगाए गए पेड़ों को वन के रूप में ब्रांडेड नहीं किया जा सकता है. इस पर अदालत ने कहा कि विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन होना बेहद जरूरी है. पीठ ने सॉलिसिटर जनरल से कहा कि आपको वन संरक्षण अधिनियम के तहत विन विभाग से ही मंजूरी लेनी होगी. हम भारत सरकार को मंजूरी देने के लिए समय देंगे.
आपको बता दें कि एरोसिटी से तुगलकाबाद तक 20 किमी लंबी लाइन के लिए लगभग 10,000 से अधिक पेड़ों को काटना होगा. इसी को लेकर डीएमआरसी ने याचिका दायर की थी. जिसमें उन्होंने कहा था कि पेड़ों को काटने की अनुमति नहीं मिलने की वजह से कुछ परियोजनाओं का निर्माण रुक गया है और हर दिन 3.5 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है.