हाथों से 100 फीसदी लाचार पर दुष्कर्म का आरोप कैसे : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2023-02-18 18:17 GMT
नई दिल्ली, (आईएएनएस)| सुप्रीम कोर्ट ने एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी को राहत देते हुए उनके खिलाफ उत्तराखंड के अल्मोड़ा में एक नाबालिग लड़की से छेड़छाड़ और दुष्कर्म के आरोप पर चल रही कार्रवाई पर अंतरिम रोक लगाने का आदेश दिया है। आरोपी अधिकारी ए.वी. प्रेमनाथ ने एक याचिका दायर कर 'उन्हें फंसाने की आपराधिक साजिश' की सीबीआई जांच की मांग की है।
जस्टिस वी. रामासुब्रमण्यन और पंकज मिथल की पीठ ने कहा : "चूंकि याचिका गंभीर सवाल उठाती है, इसलिए हम नोटिस जारी कर रहे हैं और चार सप्ताह में जवाब चाहिए।"
शीर्ष अदालत ने उत्तराखंड सरकार, सीबीआई और अन्य को नोटिस जारी किया है।
याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता दामा शेषाद्री नायडू ने शीर्ष अदालत का रानीखेत में सरकारी अस्पताल के चिकित्सा अधिकारी की रिपोर्ट पर ध्यान आकर्षित किया, जिस पर अल्मोड़ा के रिमांड मजिस्ट्रेट का भी हस्ताक्षर है। रिपोर्ट में लिखा है कि याचिकाकर्ता एक बाइलैटरल एंप्टी (दोनों हाथों से 100 प्रतिशत दिव्यांग) है।
पीठ ने कहा, "यह रिपोर्ट तब बनाई गई थी, जब याचिकाकर्ता को गिरफ्तार किया गया था और मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने के समय उसकी मेडिकल जांच की गई थी। अंतिम रिपोर्ट 30.11.2022 को दायर की गई और आगे की कार्यवाही पर अंतरिम रोक होगी।"
दिल्ली सचिवालय में संयुक्त सचिव के पद पर तैनात प्रेमनाथ ने अपने खिलाफ रची गई कथित आपराधिक साजिश की सीबीआई से जांच कराने के लिए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। वह 74 दिनों तक न्यायिक हिरासत में रहे, जब तक कि उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने उन्हें जमानत नहीं दी।
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि कुछ 'घोटालेबाजों' के इशारे पर उन्हें एक झूठे मामले में फंसाया गया था, क्योंकि उन्होंने केंद्र सरकार के एक अभियान के तहत कुछ शेल कंपनियों का पर्दाफाश किया था।
पुलिस के मुताबिक, दंडकंडा गांव में पत्नी के एनजीओ द्वारा चलाए जा रहे स्कूल में आरोपी ने नाबालिग से दुष्कर्म किया। उन पर पॉक्सो अधिनियम और आईपीसी की धारा 376 (दुष्कर्म), 511 और 506 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के कुछ प्रावधानों के तहत आरोप लगाए गए थे।
--आईएएनएस
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