नई शिक्षा नीति के तहत हिंदी विषय पढऩा अनिवार्य होगा, क्षेत्रीय भाषाओं को दिया जाएगा बढ़ावा
नई दिल्ली: शैक्षिक सत्र 2022-23 से विश्वविद्यालयों /कॉलेजों में लागू होने जा रही नई शिक्षा नीति में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा दिया जाएगा । मगर कुछ शिक्षकों द्वारा नई शिक्षा नीति के लागू होने पर कॉलेजों में हिंदी विषय का वर्कलोड कम होने की बात कहीं जा रही है। जबकि हिंदी का वर्कलोड बढऩे की बात श्री अरबिंदो कॉलेज के हिंदी विभाग के प्रभारी व एसोसिएट प्रोफेसर डॉ.हंसराज सुमन ने कही है । हिंदी विषय पढऩा अब हर छात्र का अनिवार्य होगा । उनका कहना है वे किसी तरह के भ्रम में न आएं बल्कि पाठ्यक्रम संबंधी मसौदे को अवश्य पढ़ें हिंदी के प्रति सभी तथ्य स्पष्ट हो जाएंगे।
एसोसिएट प्रोफेसर डॉ.हंसराज सुमन का कहना है कि कुछ समाचार पत्रों के माध्यम से यह बात सामने आई है की बीए., बीकॉम व बीएससी अर्थात स्नातक स्तर पर पहले से चले आ रहे पाठ्यक्रम में सम्मिलित एईसीसी ( योग्यता संवद्र्धन अनिवार्य कोर्स ) को हटा दिया गया है उसके स्थान पर अब एईसी अर्थात ( योग्यता संवद्र्धन कोर्स ) लागू कर दिया गया है जिससे अनिवार्यत: शब्द हट गया है । ऐसी स्थिति में अंग्रेजी विषय के साथ हिंदी को जोडक़र एक भ्रम की स्थिति पैदाकर दी गई है। जिसमें कहा जा रहा है कि अंग्रेजी और हिंदी भाषा की अनिवार्यत: खत्म करने से अंग्रेजी व हिंदी के शिक्षकों का वर्कलोड घट जाएगा और तमाम तदर्थ शिक्षक इन विषयों से बाहर हो जाएंगे ? किंतु बता दें कि यह अनिवार्यत: हिंदी को खत्म करने के लिए नहीं है। बल्कि स्पष्ट रूप से एईसी के अंतर्गत एईसी को परिभाषित करते हुए शिक्षा नीति के मसौदे में लिखा है कि क्षेत्रीय भाषाएं अर्थात संविधान की आठवीं अनुसूची में दर्ज 22 भाषाएं पर्यावरण विज्ञान , सतत विकास विषयों को प्रत्येक अनुशासन में अनिवार्य रूप से लागू करना संस्थानों की जिम्मेदारी होगी । यानि क्षेत्रीय भाषा और संविधान की आठवीं अनुसूची में दर्ज हिंदी एक क्षेत्रीय भाषा के रूप में , इसके अतिरिक्त राजभाषा की अपनी अनिवार्य स्थिति के कारण हिंदी प्रत्येक अनुशासन में अनिवार्यत: लागू होगी यानी कि हिंदी का वर्कलोड स्नातक स्तर पर घटने की बजाय बढ़ जाएगा और यह संस्थानों की बाध्यता भी होगी कि वे हिंदी को हर अनुशासन में शामिल करें । डॉ.सुमन ने बताया है कि यहाँ हिंदी किसी विकल्प के रूप में नहीं है जहाँ हिंदी भाषी प्रदेशों में उसे विकल्प के रूप में चुना जाए । उनका कहना है कि हिंदी प्रदेश में क्षेत्रीय भाषा हिंदी होने के कारण वह किसी विकल्प के रूप में नहीं बल्कि एईसी के अंतर्गत अनिवार्य रूप से लागू रहेगी ।