एक्सपर्टस ने बताया दिल्ली में लैंडफिल साइटों से कैसे हटेंगे कूड़े के बड़े पहाड़
दिल्ली न्यूज़: कूड़े के पहाड़ पर राजनीति जारी है। लेकिन, एक्सपर्ट बताते हैं कि यह समस्या लाईलाज नहीं है। इस गंभीर समस्या के कई समाधान हैं, लेकिन कभी किसी ने गंभीरता से कोई कदम ही नहीं उठाया। अगर कूड़े के पहाड़ को खत्म करने के लिए सही दिशा में काम किया जाता, तो इतना बड़ा एरिया सराय काले खां की तरह ही हर-भरा वंडर पार्क के रूप में नजर आता। क्योंकि सराय काले खां में जिस जगह वेस्ट टु वंडर पार्क बना है, वहां भी पहले इसी तरह से कूड़े का पहाड़ था। एक्सपर्ट समस्या के समाधान इस तरह से बता रहे हैं :
3-R पर कर सकते हैं काम: एमसीडी डेम्स डिपार्टमेंट के डायरेक्टर रहे देवेंद्र कुमार के अनुसार कूड़े की मात्रा कम नहीं की जा सकती। कूड़े की मात्रा जनसंख्या का समानुपात है। जितनी जनसंख्या बढ़ेगी, उसी अनुपात में कूड़ा भी जनरेट होगा। लेकिन, ऐसा नहीं है कि कूड़े के पहाड़ बनने से रोका नहीं जा सकता। इस समस्या का उचित समाधान है जिसे स्वच्छता सर्वेक्षण प्रतियोगिता के नियमों में भी केंद्र सरकार ने थ्री – आर प्रिंसिपल के रूप में उल्लेख किया है। यानी रिड्यूस, रीयूज और रिसाइकल। दूसरा, तरीका है डिसेंट्रलाइज्ड कचरा प्लांट। इस तरीके में हर जोन या वॉर्ड में छोटे-छोटे प्लांट बना कर उस एरिया का समूचा कूड़ा उसी दिन उस जगह ट्रीट किया जा सकता है। तीसरा है, कम्यूनिटी लेवल ट्रीटमेंट। इस तरीके से हर सोसायटी व कॉलोनी में ही एक निश्चित जगह ट्रीटमेंट प्लांट बनाकर कॉलोनी का कूड़ा उसी जगह ट्रीट किया जाए।
पार्कों में बनाया जाए कंपोस्ट प्लांट: अलग-अलग तरह के कूड़े को ट्रीट करने के लिए अलग-अलग प्रकार के ट्रीटमेंट प्लांट होने चाहिए। किसी पार्क या ग्रीन एरिया से पत्तियों या घास के रूप में जो कूड़ा निकलता है, उसे बड़े ट्रीटमेंट प्लांट तक भेजने की जरूरत ही नहीं है। ऐसे कूड़े को ट्रीटमेंट के लिए तो पार्क में ही कंपोस्ट प्लांट बनाना चाहिए। दिल्ली में रोजाना जितना कूड़ा जनरेट होता है, उसका 20 प्रतिशत कूड़ा इसी तरह के होता है।
पैकेजिंग और प्लास्टिक पर नियंत्रण: वर्तमान में दिल्ली में रोजाना करीब 11,000 मीट्रिक टन कूड़ा जनरेट होता है। इसमें से 50 प्रतिशत कूड़ा पैकेजिंग मटेरियल का होता है, जिसे ड्राई कूड़ा भी कहते हैं। पैकेजिंग और प्लास्टिक मटीरियल पर पूरी तरह से प्रतिबंध प्रभावी कर दिया जाता है, तो रोजाना जितना कूड़ा दिल्ली में जनरेट होता है, उसका 40 प्रतिशत इसी से कम हो जाएगा।
सभी एजेंसियां अपना – अपना ट्रीटमेंट प्लांट बनाएं एमसीडी के कमिश्नर रहे के.एस. मेहरा के अनुसार कूड़ा कम करने के लिए जनसंख्या पर नियंत्रण करना होगा। लेकिन, यह बेहद ही मुश्किल काम है। ऐसे में कूड़े के पहाड़ को कम करने के लिए जितनी भी डिवेलपमेंट एजेंसियां हैं, सभी अपना – अपना ट्रीटमेंट प्लांट बनाएं। सभी एजेंसियों का कूड़ा किसी एक एजेंसी की लैंडफिल साइट पर न जाए। इससे कहीं भी और कभी भी इतना ऊंचा कूड़े का पहाड़ नहीं बनेगा।
घर से करनी होगी शुरुआत, तब बनेगी बात: लैंडफिल साइट्स जब बनी तो शुरुआत में ही गलतियां हुईं। एक्सपर्ट्स के अनुसार, राजधानी का लगभग आधा कूड़ा अब भी लैंडफिल साइटों पर ही जा रहा है। इसे रोकना सबसे अधिक जरूरी है। ऐसा किए बिना कूड़े के पहाड़ों को खत्म करना संभव नहीं है। राजधानी की लैंडफिल साइट को खत्म करने को लेकर हमने सीएससी एक्सपर्ट अतिन विश्वास, इंडिपेंडेंट एक्सपर्ट स्वाति सांबियाल और वेस्ट एंड सस्टेनेबल लिवलीहुड की कंसलटेंट चित्रा मुखर्जी से बात की।
बनाते वक्त नहीं दिया गया ध्यान: लैंडफिल साइट इस समय की सबसे बड़ी चुनौती और समस्या हैं। इसकी वजह यह है कि लैंडफिल साइट्स काफी बड़ी हैं, दूसरा अथॉरिटी के पास ताजा कूड़े की समस्या का कोई ठोस हल नहीं है। पहला नियम यह कहता है कि क्षमता पूरी होते ही लैंडफिल साइट पर कूड़ा डालना बंद कर दिया जाए। लेकिन हम ऐसा नहीं कर पा रहे हैं। लैंडफिल साइट जब बनी तो उसके पहलुओं पर ध्यान नहीं दिया गया। गाजीपुर लैंडफिल साइट का कोई बेस नहीं है, कोई कलेक्शन सिस्टम नहीं है। इसलिए जैसे जैसे यहां कूड़ा बढ़ा समस्या भी बढ़ी।
कूड़ा जहां बन रहा है वहीं उसका निस्तारण हो: कूड़ा जहां से पैदा हो रहा है वहीं उसे मैनेज किया जाए तो इस तरह की समस्या खत्म हो सकती है। घरों, कॉलोनी, मार्केट, ऑफिस में कूड़े को ट्रीट करने के तरीके बताए जाएं। लोगों को रिसाइकल और रीयूज पर फोकस करने के लिए जागरूक किया जाए।
गीला कूड़ा-सूखा कूड़ा घरों पर अलग होना जरूरी: लैंडफिल साइटों पर कूड़ा कम पहुंचे इसके लिए जरूरी है कि हर घर से कूड़ा कम निकले। इसलिए घर, ऑफिस, मार्केट आदि के स्तर पर ही गीला कूड़ा-सूखा कूड़ा अलग होना जरूरी है। राजधानी में इसमें अभी बड़ी कमियां हैं। इसकी वजह से लैंडफिल साइटों पर दबाव है।
बेहतर कर रहे शहरों से उदाहरण लेना जरूरी: इंदौर, भोपाल आदि शहर इस मामले में काफी अच्छा कर रहे हैं। राजधानी जहां गीले और सूखे कूड़े को अलग नहीं कर पा रही है, इन शहरों ने छह श्रेणी में कूड़े को अलग किया जाता है। इनमें गीला, सूखा, प्लास्टिक, खतरनाक, सेनिटरी और ई वेस्ट शामिल है। इंदौर में अब 95 प्रतिशत कूड़ा ट्रीट हो रहा है।
इंदौर की तरह बायो सीएनजी पर करें फोकस: इंदौर एक दिन में 550 टन गीले कूड़े से 17000 किलो बायो सीएनजी बना रहा है। राजधानी में एक दिन में करीब 11000 टन कूड़ा निकलता है। इसमें से 50 से 60 प्रतिशत गीला कूड़ा है। ऐसे में यदि राजधानी इस तरह की शुरुआत करें तो बेहतर नतीजे मिलने के साथ सीएनजी की बढ़ती कीमतों से भी राहत मिल सकती है।