दिल्ली न्यूज़: राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने बाल विवाह को रोकने के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग के प्रमुख सचिव सहित राज्य व केंद्रशासित प्रदेशों के बाल अधिकार संरक्षण आयोग को एक वैधानिक निकाय गठित करने का आदेश दिया है। इस निकाय का काम बाल विवाह को रोकना है। दरअसल देश के विभिन्न ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में अक्षयतृतीया व आखा तीज के अवसर पर बड़ी संख्या में बाल विवाह होते हैं, इस बार 3 मई 2022 को अक्षयतृतीया व आखा तीज है। ऐसे में बाल विवाह को रोकने की पहले से ही एनसीपीसीआर तैयारियां कर रहा है
बाल विवाह दंडनीय अपराध है : प्रियांक कानूनगो
एनसीपीसीआर के चैयरपर्सन प्रियांक कानूनगो ने बताया कि बाल विवाह दंडनीय अपराध है। इस पर अंकुश लगाने के लिए पीसीएमए 2006 कुछ कार्यों को दंडनीय बनाकर और बाल विवाह की रोकथाम और निषेध के लिए जिम्मेदार कुछ अधिकारियों को नियुक्त कर इसे रोकने का प्रयास करता है। पीसीएमए, 2006 की धारा 13(4) के अनुसार बाल विवाह रोकने के लिए जिला मजिस्ट्रेट को बाल विवाह निषेध अधिकारी माना जाएगा। इसके लिए सीपीसीआर अधिनियम 2005 की धारा 13 (1ए) के अंतर्गत जिलाधिकारियों या कलेक्टरों, सभी जिलों के सीएमपीओएस को तत्काल निर्देश देने का अनुरोध करता है कि वो बाल विवाह की रोकथाम के लिए सक्रिय कदम 20 अप्रैल 2022 से पहले उठाएं।
एनसीपीसीआर ने दिए कई सुझाव: इसके लिए एनसीपीसीआर ने कई सुझाव दिए हैं जिसमें गांव, पंचायत, प्रखंड में जागरूकता कार्यक्रम चलाया जाए। इसके अलावा बैठकें आयोजित की जाएं। यही नहीं यदि कहीं बालविवाह होता है तो सीडीपीओ, सीडब्ल्यूसी, सीडब्ल्यूपीओएस आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, धार्मिक पुजारी को शादी के लिए जिम्मेदार माना जाएगा। उन्हें स्कूल छोडऩे वाले, स्कूल नहीं जाने वाले बच्चों की स्कूलवार सूची तैयार करनी होगी। डीएम व सीएमपीओ उन बच्चों की पहचान करें जिन्हें बाल विवाह का खतरा हो। इसकी रिपोर्ट भी डीएम व सीएमपीओ को 21 अप्रैल 2022 तक एनसीपीसीआर को सौंपनी होगी। वहीं एनसीपीसीआर उक्त मुद्दे पर प्रत्येक जिले के अधिकारियों द्वारा संचालित गतिविधियों की स्थिति की समीक्षा करने के लिए राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की उपस्थिति में 21 अप्रैल 2022 को अधिकारियों के साथ जिलावार बैठक करेगा।