दिल्ली : हाईकोर्ट की टिप्पणी- जीवनसाथी की वित्तीय अस्थिरता मानसिक क्रूरता के समान

Update: 2023-09-08 12:02 GMT
उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि मानसिक क्रूरता शब्द इतना व्यापक है कि यह अपने दायरे में जीवनसाथी की वित्तीय अस्थिरता को भी ले सकता है। अदालत ने कहा कि एक मृत रिश्ता केवल दर्द और पीड़ा लाता है। इसलिए यह ऐसी मानसिक क्रूरता को कायम रखने का पक्ष नहीं हो सकता है।
 न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने पति द्वारा क्रूरता और परित्याग के आधार पर पत्नी को तलाक देते हुए कहा कि पति की वित्तीय अस्थिरता के कारण पत्नी को मानसिक चिंता होना स्वाभाविक है, जिसके परिणामस्वरूप अन्य बुराइयां भी पैदा होती हैं। इसे उसके प्रति मानसिक क्रूरता निरंतर स्रोत कहा जा सकता है।
पीठ ने कहा वर्तमान मामले में मानसिक आघात को समझना आसान है क्योंकि, अपीलकर्ता पत्नी काम कर रही थी और पति काम नहीं कर रहा था। अपीलकर्ता और प्रतिवादी की वित्तीय स्थिति में भारी असमानता थी। स्वयं को जीवित रखने में सक्षम होने के प्रतिवादी के प्रयास निश्चित रूप से विफल रहे थे।
अदालत पत्नी द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें परिवार अदालत के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें पति द्वारा क्रूरता और परित्याग के आधार पर तलाक की मांग करने वाली उसकी याचिका को खारिज कर दिया गया था। दोनों ने 1989 में शादी कर ली और सात साल तक साथ रहने के बाद 1996 में अलग हो गए।
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