दिल्ली न्यूज़: दिल्ली के तीनों निगमों को एकीकरण करने के लिए शुक्रवार को लोकसभा में बिल पेश होने के बाद यह तय हो गया है कि अब एकीकृत निगम के चुनाव जल्दी नहीं होंगे, बल्कि निगम को भंग कर दिया जाएगा। भंग निगम में लोकतांत्रिक सत्ता न होने की स्थिति में केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त विशेष प्रशासक (स्पेशल ऑफिसर) निगम के हाथों में निगम की कमान होगी। लोकसभा में पेश निगम एकीकरण बिल में नगर निगम के स्वरूप एवं कार्यप्रणाली के बारे में ज्यादा कुछ खुलासा नहीं किया गया है, लेकिन चर्चा है बिल में निगम के लिए नया कुछ नहीं है, बल्कि एकीकृत निगम का स्वरूप वर्तमान निगम के स्वरूप की तरह ही होगा। हालांकि मेयर के बारे में कहा गया है कि उन्हें नगर निगम की कार्यप्रणाली में पूरे अधिकार होंगे।
पेश विधेयक के जानकार विशेषज्ञ बताते हैं कि दिल्ली नगर निगम (संशोधन) विधेयक-2022 प्रशासनिक एकीकरण तक ही सीमित है। इसमें सशक्तीकरण, प्रतिनियुक्ति पर आए नौकरशाह राज से मुक्ति, कर्मचारियों के वेतन, पेंशन व नियुक्ति संबंधी समस्याओं को पूर्णतया नजरअंदाज किया गया है। परिसीमन के चलते निगम चुनाव जल्द होने की भी कोई संभावना नहीं होगी, निगम पूर्ण रूप से नौकरशाहों के हवाले कर दिया गया है और इस पर निर्वाचित जनप्रतिनिधियों का अंकुश भी नहीं रहेगा। मेयर-इन-काउंसिल का गठन कर जनप्रतिनिधियों के अधिकार व सशक्तीकरण तथा पार्षदों को सम्मानजनक वेतन देने का प्रावधान भी नहीं किया गया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि निगम की बेहतरी के लिए एकीकरण आवश्यक था, लेकिन एकीकरण मात्र से आर्थिक दबाब के कारण दिवालिया की कगार पर पहुंचे निगम एवं निगमकर्मियों को वेतन, पेंशन में आ रही मुश्किलों का समाधान नहीं होगा। भले ही निगम के भंग होने के उपरान्त प्रशासक नियुक्त होगा, लेकिन आर्थिक और नियुक्ति संबंधी अधिकार तो पूर्व की तरह आयुक्त के पास बने रहेंगे और अब तो निर्वाचित जनप्रतिनिधियों का अंकुश भी नहीं रहेगा, यह प्रयोग दिल्लीवासियों व निगम कर्मियों को भारी पड़ सकता है। खाली पड़े पदों पर निगम कर्मियों को नियमित करने एवं पदोन्नति का अधिकार भी निगम को प्रदान नहीं किया गया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि निगम वार्डो की संख्या 272 से 250 यानी कि मात्र 22 वार्ड कम करने के लिए नए सिरे से परिसीमन का पिटारा खोलने का कोई औचित्य नहीं है। विधेयक में कहा गया है कि जनगणना के उपरांत यह किया जाएगा, वर्ष 2019-20 में होने वाली अंतिम जनगणना जिसकी रिपोर्ट वर्ष 2021 में आनी थी जो कोरोना संकट के कारण आरंभ ही नहीं हो सकी है, ऐसे में परिसीमन कैसे होगा? 12 वर्ष पहले वर्ष 2009-10 में कराई गई जनगणना के आधार पर वर्तमान में परिसीमन करने का फैसला बेतुका है। वर्ष 2009-10 में दिल्ली नगर निगम क्षेत्र की की जनसंख्या 1.64 करोड़ थी जो अब 3 करोड़ से अधिक पहुंच गई है, जहां नई व मध्य दिल्ली में जनसंख्या घटी है वहीं बाहरी दिल्ली व पूर्वी दिल्ली तथा गांवों में जनसंख्या में खासी वृद्धि हुई है, ऐसे में 12 वर्ष पहले हुई जनगणना के आधार पर परिसीमन कराने से तो वार्डों की जनसंख्या में बहुत ज्यादा असंतुलन पैदा होगा, और यदि प्रस्तावित नई जनगणना की रिपोर्ट का इंतजार करेंगे तो कई वर्ष लगेंगे और वर्ष 2009-10 पर करेंगे तो, जब नई जनगणना की रिपोर्ट प्रकाशित होगी तो दिल्ली नगर निगम अधिनियम के अनुसार फिर से वार्डो का परिसीमन करना पड़ेगा।
शहरी मामलों के विशेषज्ञ एवं एकीकृत दिल्ली नगर निगम की निर्माण समिति के अध्यक्ष रहे जगदीश ममगांई ने केंद्रीय गृह मंत्री से मांग किया है कि दिल्ली नगर निगम के सशक्तीकरण के लिए मेयर-इन-काउंसिल, पार्षदों को सम्मानजनक वेतन, निगम कर्मियों को नियमित करने एवं पदोन्नति का अधिकार, दिल्ली सरकार पर निर्भरता समाप्त करने के लिए आर्थिक प्रावधान तथा चुनाव समय पर कराने के लिए वार्डों की संख्या 272 रखने संबंधी अधिनियम को भी दिल्ली नगर निगम (संशोधन) विधेयक-2022 में शामिल की जाए।