दिल्ली: महात्मा गांधी का जादू देश में जिस तरह और जिस स्तर पर फैला, आज उसकी कल्पना करना भी कठिन है क्योंकि हम उल्टी दिशा में बहुत दूर निकल आए हैं। लेकिन हाथ और दिमाग को जोडऩे वाली शिक्षा की संकल्पना हमें आज भी बताती है कि भारतीय शिक्षा की दिशा क्या होनी चाहिए। शिक्षा के साथ ऐसा खिलवाड़ होता रहा है कि उसमें शिक्षा जैसा कोई तत्व बचा ही नहीं है।
मनुष्य की सर्वोत्तम प्रतिभा को जो निखार सके उसे शिक्षा कहते हैं: प्रो. दिनेश सिंह
उन्होंने कहा कि आप मुझसे पूछिएगा कि शिक्षा का मतलब क्या है तो मैं सीधे शब्दों में कहूंगा कि मनुष्य की सर्वोत्तम प्रतिभा को जो निखार कर सामने ला सके, उसे शिक्षा कहते हैं। यह बात बुधवार को गांधी शांति प्रतिष्ठान की 48वीं वार्षिक व्याख्यानमाला में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व वाइस चांसलर प्रो. दिनेश सिंह ने कही। प्रो. सिंह ने कहा कि गांधी जी की शिक्षा की पूरी परिकल्पना गतिशील परिकल्पना है जिसमें शरीर और मन का सर्वश्रेष्ठ रचनात्मक मेल होता है।
गांधी की शिक्षा परिकल्पना आज भी नई रचनात्मक संभावना को प्रकट करती है: डीयू वीसी रहते हुए अपने कई प्रयोगों का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि इन प्रयोगों से कई स्तरों पर, कई तरह के परिवर्तन हुए, कुछ टिकाऊ हुए, कुछ प्रतिकूलताओं में दब गई। लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि नई संभावनाएं पैदा हुईं। गांधी की शिक्षा परिकल्पना में ऐसी शक्ति है कि वह आज भी नयी रचनात्मक संभावना को प्रकट करती है। गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत ने कहा कि मौत की कोरोना आंधी सारी दुनिया को झकझोरने के बाद थमती नजर आ रही है, तो हमने खुद ही यूक्रेन में मानव निर्मित मौत की आंधी रच ली है।
कुमार प्रशांत ने कवयित्री मार्था मेडिरोज की कविता का पाठ किया: यूक्रेन सारी दुनिया की अंतरात्मा पर बोझ बना हुआ है। हर गांधी वाले को यूक्रेनी शहादत और यूक्रेनी संघर्ष को समर्थन देना चाहिए। कुमार प्रशांत ने हर व्याख्यान से पहले कविता पाठ की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए नोबल पुरस्कार प्राप्त ब्राजीली कवयित्री मार्था मेडिरोज की कविता का पाठ किया।