सरकार से आम आदमी का सवाल: कब तक कश्मीरी पंडित होंगे आतंकवादियों का शिकार, सरकार का क्या हैं प्लान
दिल्ली न्यूज़: देश के कश्मीर घाटी में सालों से हो रहे इन हत्याओं पर आखिर कब लगेगा पूर्ण विराम। यह सोचने वाली बात है कि सालों से कश्मीर घाटी में पंडितों को मारा जा रहा है, लेकिन अब तक इस पर कोई रोक क्यों नहीं लगा सकी है भारत सरकार, दूसरी ओर एक बार फिर से कश्मीर पंडितों को निशाना बनाया जा रहा है, बड़ी मुश्किलों के बाद जाकर उन्हें घाटी में बसाने का प्रयास किया जा रहा था, जिसमें काफी हद तक कुछ कामयाबी मिलने लगी थी, मगर हाल ही में हुए एक हत्या से इस उम्मीद की किरण फिर से धुंधली नजर आने लगी है। इसका मुख्य कारण है मंगलवार को हुए शोपियां के सेब बाग में आतंकी गोलाबारी में एक कश्मीरी पंडित की जान चली गई, वहीं अन्य एक व्यक्ति भी घायल हो गया।
आतंकी संगठनों का खासतौर से निशाना कश्मीरी पंडित है: रिपोर्ट्स की माने तो मृतक और घायल दोनों ही अल्पसंख्यक समुदाय से संबंध रखते है, जिसमें मृतक की पहचान सुनील कुमार भट्ट के रूप में की गई है और घायल व्यक्ति पिंटू कुमार बताया गया है जो की मृतक का सगा भाई है। जिस तरह दहशतगर्दों ने इस हत्या के वारदात को अंजाम दिया है, उससे स्वाभाविक ही वहां के लोगों में डर का माहौल बना हुआ है। इससे एक बार फिर पंडितों के घाटी छोड़ने को लेकर चिंता पैदा हो गई है। इस घटना से यह भी साफ तौर से जाहिर है कि यह आतंकी नए-नए संगठन बना रहे हैं या पुराने संगठन ही नए नामों से सक्रिय हो रहे हैं और इन आतंकी संगठनों का खासतौर से निशाना कश्मीरी पंडित ही हैं। हालांकि लंबे समय से वहां सुरक्षाबलों की तैनाती बढ़ा दी गई है, खुफिया एजेंसियां को भी सक्रिय कर दिया गया हैं और सेना के तलाशी अभियान भी निरंतर चलते हैं, उसके बावजूद दहशतगर्दीयों पर तंज नहीं कसा जा सका है, वे नए नामों से सिर उठाने लगे हैं, तो इससे यही रेखांकित होता है कि इस दिशा में सरकार को नए ढंग से रणनीति बनाने की जरूरत है।
घाटी के मुसलमान भी चाहते थे कि: शोपियां की यह घटना इकलौता नहीं है। पिछले साल भी इसी तरह से एक दवा विक्रेता कश्मीरी पंडित की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। उसका परिवार शुरू से घाटी में ही रह रहा था। हाल ही में पिछले महीने भी एक कश्मीरी पंडित की इसी तरह हत्या कर दी गई। पिछले सात सालों में ऐसी कई घटनाएं हो चुकी हैं। इसके पहले कश्मीरी पंडितों की हत्या का सिलसिला कुछ समय के लिए थम से गया था और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के समय विस्थापित पंडितों को दुबारा घाटी में लौटाने और बसाने का अभियान भी वापस से चलाया गया था। इसके अलावा दूसरी ओर घाटी के मुसलमान भी चाहते थे कि वे लौट कर अपनी जगह-जमीन पर फिर से कब्जा जमा लें। मगर कुछ सालों से, खासकर जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त होने के बाद से जिस तरह की कटुता का माहौल वहां पैदा हुआ है, उसकी ही प्रतिक्रिया में भी पंडितों की हत्याएं हो रही है। इससे पहले घाटी से पंडितों के पलायन को लेकर एक फिल्म बनाई गई थी, जिस पर पूरे देशभर में चर्चा का विषय बना हुआ था।
लाखों लोगों का सरकार से एक ही सवाल: यहां तक की कश्मीरी पंडितों को घाटी में फिर से बसाने के लिए उन्हें सरकारी नौकरियों में जगह सुरक्षित रखने को लेकर भी प्रावधान दिया गया। इस तरह के कई विस्थापित पंडितों को वहां नौकरियां मिलने और वे अपने पैतृक घरों को सुधार कर वहां रहने का किया गया। बडगाम में भी जिस युवक की हत्या की गई थी, वह भी इसी योजना के तहत वहां रहने गया था। अब इस घटना से वहां इस तरह वापस गए लोगों में दहशत पैदा होना स्वाभाविक है। इसलिए सरकार की जवाबदेही को लेकर लोगों के सवाल उठने लगे हैं कि क्या केवल नौकरी देने और विस्थापितों को कश्मीर में वापस लौटाने की कोशिश से इस दिशा में कामयाबी मिलेगी, क्या उनकी सुरक्षा के लिए भी पुख्ता इंतजाम किए जाएंगे! जब तक वे खुद को वहां सुरक्षित महसूस नहीं करेंगे, भला कैसे वह वहां टिके रह सकेंगे। हैरानी की बात यह है कि बडगाम में हुए हमले में किस तरह तहसीलदार के कार्यालय में घुस कर वहां काम कर रहे युवक को गोली मार कर ये दहशतगर्दी कितनी आसानी से निकल गए।