बदलते समय के साथ सीबीआई को भी बदलना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2022-12-06 06:31 GMT

दिल्ली कोर्ट रूम न्यूज़: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दुनिया बदल गई है और सीबीआई को भी बदलना चाहिए। शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी निजी डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और उनकी सामग्री की जब्ती, जांच और संरक्षण पर जांच एजेंसियों के लिए दिशानिर्देश देने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए की। जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एएस ओका की पीठ में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि निजता के मुद्दे पर दुनियाभर में जांच एजेंसियों के मैनुअल को अपडेट किया जा रहा है। इस पर जस्टिस कौल ने कहा, दुनिया बदल गई है, सीबीआई को भी बदलना चाहिए। जस्टिस ओका ने कहा, उन्होंने सीबीआई मैनुअल देखा है और इसे अपडेट करने की आवश्यकता हो सकती है। सीबीआई मैनुअल जांच के दौरान अपनाई जाने वाली प्रक्रिया बताता है।

इस मामले में पिछले महीने दाखिल हलफनामे में केंद्र ने कहा था कि कानून को लागू करने और अपराधों की जांच से संबंधित मुद्दे पर हर तरफ से सुझाव/आपत्तियां लेना उचित होगा, क्योंकि कानून और व्यवस्था राज्य का मुद्दा है। हलफनामे में कहा गया था कि जहां तक याचिकाकर्ताओं की आशंकाओं का संबंध है, उनमें से अधिकांश को सीबीआई मैनुअल 2020 के पालन से दूर किया जा सकता है। साथ ही कहा कि सीबीआई मैनुअल के महत्व को इस कोर्ट की ओर से पहले भी नोटिस किया गया है और उसी के अनुरूप मैनुअल को फिर से तैयार किया गया और 2020 में प्रकाशित किया गया। मामले की अगली सुनवाई सात फरवरी को होगी।

गुरु को परमात्मा घोषित कराने पहुंचे शीर्ष अदालत, एक लाख जुर्माना

सुप्रीम कोर्ट ने देशवासियों को धार्मिक गुरु श्रीश्री ठाकुरजी अनुकूल चंद्र को परमात्मा मानने का निर्देश देने की मांग वाली अजीबोगरीब याचिका सोमवार को खारिज कर दी। कोर्ट ने याचिकाकर्ता उपेंद्र नाथ दलाई से कहा, आप चाहें तो उन्हें परमात्मा मान सकते हैं। इसे दूसरों पर क्यों थोपा जाना चाहिए। साथ ही याचिकाकर्ता पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा, भारत में सभी को अपने धर्म का पालन करने का पूरा अधिकार है। भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है। आप यह नहीं कह सकते कि सभी को केवल एक धर्म का पालन करना है। यह एक सस्ती लोकप्रियता हासिल करने वाली याचिका है। यह याचिका पूरी तरह से गलत है। याचिकाकर्ता ने भाजपा, आरएसएस, विहिप, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, नेशनल क्रिश्चियन काउंसिल, श्री पालनपुरी स्थानकवासी जैन एसोसिएशन, बुद्धिस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया, पुरी जगन्नाथ मंदिर प्रबंधन समिति, ऑल इंडिया इस्कॉन कमेटी, रामकृष्ण मठ, गुरुद्वारा बंगला साहिब को मामले में पक्षकार बनाया था।

ताजमहल…हम यहां इतिहास सुधारने नहीं बैठे

सुप्रीम कोर्ट ने ताजमहल की सही उम्र निर्धारित करने की मांग वाली याचिका पर विचार करने से सोमवार को मना कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा, हम यहां इतिहास सुधारने के लिए नहीं बैठे हैं। इतिहास को यूं ही जारी रहने दिया जाए। चिका में स्मारक के बारे में इतिहास की किताबों से 'गलत तथ्यों' को हटाने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को निर्देश देने की भी मांग की गई थी।

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा, यह किस तरह की जनहित याचिका है? जनहित याचिका में किसी भी बात की जांच की मांग नहीं की जा सकती। अदालत कैसे तय करेगी कि ऐतिहासिक तथ्य सही हैं या गलत? इसके बाद याचिकाकर्ता ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी, पीठ ने इसकी अनुमति दे दी।

ऐसी ही याचिका पहले भी की गई थी खारिज

पीठ ने याचिकाकर्ता सुरजीत सिंह यादव को एएसआई के समक्ष एक अभ्यावेदन दायर करने की स्वतंत्रता दी है।

दो महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने इसी तरह की एक जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था, जिसमें ताजमहल के 'वास्तविक इतिहास' का पता लगाने और स्मारक के बंद कक्षों को खोलने की मांग की गई थी।

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