कार की स्पीड नेग्लिजेंस एक्ट को साबित नहीं करती : दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कथित हिट एंड रन के एक मामले में कार चालक के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया और कहा कि टक्कर मारने वाली गाड़ी को बहुत तेज रफ्तार में चलाने के आरोप लापरवाही पूर्ण कृत्य की बात को स्वत: साबित नहीं करते हैं.

Update: 2022-08-12 14:19 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने कथित हिट एंड रन के एक मामले में कार चालक के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया और कहा कि टक्कर मारने वाली गाड़ी को बहुत तेज रफ्तार में चलाने के आरोप लापरवाही पूर्ण कृत्य की बात को स्वत: साबित नहीं करते हैं.

भारतीय दंड संहिता की धाराओं 279 और 304 ए के तहत दर्ज एक प्राथमिकी पर विचार करते हुए न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी ने कहा कि इस तरह के मामले में तेज रफ्तार या लापरवाही पूर्ण कृत्य की मौजूदगी एक आवश्यक घटक है और इस मामले में किसी गवाह ने यह दावा नहीं किया कि आरोपी की कार इस तरह से चलाई जा रही थी कि किसी व्यक्ति को चोट पहुंचे.
वहीं प्राथमिकी के अनुसार तेजी से आई कार ने पीड़ित को उस वक्त टक्कर मार दी जब वह सड़क पार कर रहा था. इसमें दावा किया गया कि टक्कर के कारण पीड़ित गिर गया और चालक मौके से भाग गया. अदालत ने 5 अगस्त के आदेश में कहा था कि इस अदालत ने बार-बार यह रुख व्यक्त किया है कि टक्कर मारने वाले वाहन के बहुत तेजी से चलाये जाने के आरोप आईपीसी की धाराओं 279/304 ए के तहत अंधाधुंध और लापरवाही पूर्ण कृत्य किये जाने की बात स्वत: साबित नहीं करते.
गौरतलब है कि तेज रफ्तार में एक व्यक्ति को टक्कर मारने के बाद आरोपी कार चालक मौके से फरार हो गया था. हालांकि उसकी गाड़ी का नंबर वहां मौजूद लोगों ने नोट कर लिया था और उसे पुलिस को दे दिया. बाद में पुलिस ने आरोपी की तलाश कर उसके खिलाफ हिट एंड रन सहित अन्य धाराओं में मामला दर्ज कर गिरफ्तार किया था. आरोपी ने पुलिस की ओर से दर्ज एफआईआर को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. हाईकोर्ट ने मामले में सुनवाई करने के बाद मामले में दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया.


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