सराय आजादपुर मंडी के पास स्थित मुगलों का आखिरी होटल थी बादली की सराय, जानिए पूरी कहानी
दिल्ली स्पेशल न्यूज़: दिल्ली के कई इलाके ऐसे हैं जो 1857 की क्रांति के लिए जाने जाते हैं। इन्हीं में से एक है मुगलों का आखिरी होटल यानि बादली की सराय। जिसे एक महिला द्वारा चलाया जाता था। यह सराय आजादपुर मंडी के पास स्थित है। हालांकि वर्तमान में यह इमारत संरक्षित तो की गई है लेकिन ये भी सच है कि धीरे-धीरे ये अपना ऐतिहासिक महत्व खो रही है, जिसे पीछे की वजह पर्यटकों का इसके प्रति रूझान ना होना है। जबकि एक समय था जब नॉर्थ-वेस्ट की ओर से आने वाले राहगीर इसी सराय में अपनी रात गुजारा करते थे। इस सराय के दो ओर भी नाम हैं पहला सराय पीपलथला व दूसरा छबीली सराय।
छबीली भटियारी चलाती थी होटल: बता दें कि इस सराय को छबीली भटियारी की सराय इसलिए कहा जाता था क्योंकि इसे छबीली चलाया करती थी। वो यहां आने वालों से सेवा के बदले पैसे लिया करती थी। आज भी गांव के लोग उसे छबीली या कल्लो की सराय कहते हैं। इस सराय को 1650 में शाहजहां ने सराय के रूप में बनाया गया था। लेकिन बाद में इसे होटल बना दिया गया था लेकिन ये होटल 1857 की क्रांति में तहस-नहस हो गया और आज इस सराय की देखभाल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) का रहा है। हालांकि यहां बने कमरे वक्त के थपेड़ों के साथ गायब हो गए हैं सिर्फ दो गेट बचे हैं जो आमने-सामने बने हैं।
बादली की सराय हुई 1857 की क्रांति के दौरान तहस-नहस: इतिहासकारों के अनुसार इसी सराय में जून 1857 में क्रांतिकारियों व ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच युद्ध हुआ था। ईस्ट इंडिया कंपनी की ओर से लड़ाई गोरखा रेजिमेंट ने लड़ी थी। हार की मुख्य वजह इतिहासकार बहादुरशाह जफर के बेटे मिर्जा मुगल को क्रांतिकारियों द्वारा अपना नेता नहीं माना जाना था। बावजूद इसके बड़ी घटना के तौर पर क्रांतिकारियों द्वारा बादली गांव और सराय पर कब्जा करना था। जिसके बाद यहां अंग्रेजों व क्रांतिकारियों के बीच जमकर लड़ाई हुई। इतिहासकार शाऊल डेविड के अनुसार विद्रोही बल की संख्या लगभग 9,000 थी और तीस बंदूकें। जबकि अंग्रेजों के 2000 सैनिक व 22 बंदूकें थी। इस दौरान अंग्रेजी सेना के 51 सैनिक मारे गए और 131 घायल हुए और करीब 1 हजार क्रांतिकारियों की मौत हुई। जिसके बाद बादली की सराय पूरी तरह खून में लथ-पथ हो गई। इसके बाद इस सराय यानि आखिरी मुगल होटल को बंद कर दिया गया। बड़ी संख्या में बादली की सराय में अंग्रेजी सैनिकों की मौत हुई थी। ईस्ट इंडिया कंपनी ने जीत के बाद यहीं अंग्रेज सैनिकों को दफना दिया था और इसका नाम बदलकर म्युनिटी मेमोरियल रख दिया था लेकिन बाद में इसका नाम सराय पीपल थला पड़ा।