3 जुलाई को हिंदू संगठनों ने की थी मानेसर के मंदिर में महापंचायत। बिना पहचान पत्र वाले मुस्लिमों को वापस भेजने का हुआ था निर्णय। महापंचायत की धमकी के बाद डर से जा रहे हैं लोग।
तीन जुलाई को मानेसर में हुई महापंचायत के बाद लगभग 300 मुस्लिम परिवार पलायन करके अपने गृह राज्य असम चले गए हैं। बचे हुए परिवारों में भी डर व्याप्त है। इस पंचायत में बिना पहचान पत्र व बिना पुलिस वेरिफिकेशन के रह रहे पूर्वोत्तर के मुसलमानों की पहचान कर उन्हें वापस भेजने का निर्णय हुआ था। जिसके बाद से यह पलायन शुरू हुआ है।
इस बारे में पूछने पर मूल रूप से असम के बरपेटा जिले के रहने वाले नियामत अली ने बताया कि मानेसर में हुई महापंचायत के बाद लोगों ने काफी विचार-विमर्श किया और फिर
पलायन का फैसला किया। अपना आधार कार्ड दिखाते हुए उन्होंने पलायन करने वाले परिवारों का दर्द बयां किया। नियामत ने बताया कि उनके पास आधार कार्ड है लेकिन पुलिस वेरिफिकेशन नहीं हो पाया है जबकि महापंचायत में बिना पुलिस वेरिफिकेशन के रहने वालों को वापस भेजने का फैसला किया गया है। इस समय मानेसर में करीब 8-10 अल्पसंख्यक परिवार ही रह गए हैं। वह भी ठेकेदार से अपने कबाड़ के पैसे लेने के बाद अपने राज्य लौट जाएंगे।
कोई भी मांगने लगता है पहचान पत्र
महापंचायत में हुए फैसले व हिंदुओं की चेतावनी के बाद अब लगातार इन प्रवासियों को स्थानीय लोगों द्वारा डराया धमकाया जा रहा है। मौके पर मौजूद रिकबुल इस्लाम ने बताया कि अब जब भी वह बाहर जाते हैं तो उनसे वैध पहचान पत्र की मांग की जाती है। पहचान पत्र दिखाने पर उसे लोग हाथ से छीन लेते हैं और अपने पास रखकर पुलिस वेरिफिकेशन के बारे में सवाल करते हैं। पुलिस वेरिफिकेशन अब तक नहीं हो पाया है, इसलिए उनको धमकाया जा रहा है। बड़ी मुश्किल से आधार कार्ड वापस लेकर लौटे रिकबुल अब बाहर निकलने से भी डर रहे हैं।
आनन-फानन में छोड़ गए आशियाना
मौके पर मौजूद शराब की बोतलें व कबाड़ के अन्य सामान देखकर स्पष्ट था कि पलायन करने वाले सभी लोगों ने आनन-फानन में आशियाना छोड़ने का फैसला किया होगा। कुछ तो ऐसे भी थे जो कबाड़ तो बीनकर लाए लेकिन उसे ठेकेदार को नहीं दे सके। इस बीच महापंचायत मेें हुए फैसले के चलते उन्हें अपनी झुग्गी छोड़नी पड़ी। इस बारे में पूछने पर संद्रो बानो व रुकिया खातून ने बताया कि उनके पास आधार कार्ड है, इसलिए फिलहाल वह अपनी झुग्गी नहीं छोड़ेंगी।
स्थानीय लोग समझने लगे हैं रोहिंग्या
मोहम्मद शहरुल इस्लाम व अजीबुर रुक्मान ने लगभग एक स्वर में कहा कि स्थानीय लोग उन्हें रोहिंग्या तक समझने लगे हैं जबकि उनके पास भारत की नागरिकता है। शहरुल
इस्लाम ने कहा कि असम सरकार की तरफ से उनके लिए कुछ नहीं किया गया, दूसरी तरफ ब्रह्मपुत्र नदी के चलते लगातार मैदानी इलाकों में कटान जारी है। इसके चलते उनके पास अब रहने की जगह भी नहीं है। यही वजह है कि लोग लगातार असम व पूर्वोत्तर से अन्य राज्यों का रुख कर रहे हैं।
असम में बीनने के लिए कबाड़ भी नहीं :
कबाड़ बीनने के सवाल पर नियामत अली के साथ सभी ने एक सुर में कहा कि असम के शहर तो इतने विकसित भी नहीं हैं और न ही इतने उद्योग धंधे हैं। ऐसे में वहां तो इतना
कबाड़ भी नहीं मिलता कि जिसे बेचकर जीवनयापन किया जा सके। मानेसर के सेक्टर-1 में जगह-जगह कई झुग्गियां हैं, जिनमें से अधिकांश में असम, पश्चिम बंगाल समेत पूर्वोत्तर के अन्य प्रवासी अल्पसंख्यक परिवार रहते हैं। हाल के दिनों में अल्पसंख्यकों को तो पहचान पत्र व पुलिस वेरिफिकेशन के नाम पर धमकाया जा रहा है लेकिन हिंदुओं को कोई परेशान नहीं कर रहा है।