यही सत्य कुछ और नही

रायपुर। मोखला के पाठक रोशन साहू ने एक कविता ई-मेल किया है.      ।। यही सत्य कुछ और नही ।। तुम बस दशरथ नन्दन होते तो,राजमहल न तज पाते। मन अवध न बन पाता, न तुम इतना आँसू पी पाते।। भूत अनुभूत समाहित हो तुम,अन्तस हरषा जाते हो। घट-घट वासी अविनाशी ईश्वर होने का …

Update: 2024-01-16 23:43 GMT

रायपुर। मोखला के पाठक रोशन साहू ने एक कविता ई-मेल किया है.

।। यही सत्य कुछ और नही ।।
तुम बस दशरथ नन्दन होते तो,राजमहल न तज पाते।
मन अवध न बन पाता, न तुम इतना आँसू पी पाते।।
भूत अनुभूत समाहित हो तुम,अन्तस हरषा जाते हो।
घट-घट वासी अविनाशी ईश्वर होने का दुख पाते हो।।
उस युग में वन-वन भटके,इस युग मे तेरा ठौर नही।
ह्रदय में घर करना सिखलाते,यही सत्य कुछ और नही।।
खुले गगन तले विग्रह तेरे,खुद के सिर छत न पाते हो।
तुम्हे मिटाने दुष्चेष्ठ कृत्य,बस तुम्ही सह पाते हो।।
तेरी इच्छा भृकुटि मात्र से ,जब होता निर्माण प्रलय।
दुश्मन को दुश्मन न माने,क्षमाशील तुम सदा अजय।।
विधि हो तुम्ही विधान हो,खुद विधान से बँध जाते हो।
आदि मध्य अनन्त हो मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाते हो ।।
कोई आक्रांता फिर से तुझे ,कर न सके बेघर कभी।
जिन पथ में चरण रज तेरे,रक्त की धार न बहे कभी।।
तुम स्वयं हो प्राण प्रतिष्ठित,जन मन हृदय अधिष्ठित हो ।
युगों युगों मर्यादा अभिनन्दित,तुम त्रैलोक्य वन्दित हो।।
हे राम रम्य निष्काम रम्य हे,तेरी प्रतीक्षा करे सभी।
सरयू जल हो आचमन ,रामत्व गुण पा सके सभी।।
गर्व नसाने हे परमेश्वर,अब गर्भ गृह आसन पा जाओ।
उतरे धरातल रामराज्य,अब ऐसी शासन ला पाओ।।

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