बेमेतरा: भारत में बहुत से फल व अनाज ऐसे हैं, जिनकी डिमांड अचानक से बढ़ रही है। बढ़ती हुई डिमांड को देखते हुए किसान भी इन फसलों को अपने खेतों में स्थान दे रहे हैं। रागी, जिसका दूसरा नाम मडुआ भी है, अचानक बाज़ार में इसकी बढ़ती मांग को देखते हुए किसान इसकी खेती करने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। मंडी में रागी की कीमत भी काफी अच्छी मिल रही है और साथ ही इसकी खेती करना ज्यादा कठिन भी नहीं है। यानी रागी की खेती कर किसान कम मेहनत के ही अच्छी कमाई कर सकते हैं। कलेक्टर बेमेतरा के निर्देशन में कृषि विभाग के अधिकारियों द्वारा जिले के विभिन्न विकासखंडों के किसानों को धान के बदले रागी फसल की खेती से अतिरिक्त आमदनी की जानकारी दिया जा रहा है। इसी क्रम में विकासखण्ड बेमेतरा के ग्राम जिया निवासी श्री घनश्याम वर्मा अपने 5 एकड़ खेत में बीज उत्पादन कार्यक्रम के तहत रागी फसल की खेती कर रहे हैं तथा बीज उत्पादन कार्यक्रम के तहत बीज निगम पथर्रा में पंजीकृत हैं। जिले में पूर्व वर्षो में मिलेट अंतर्गत रागी फसल का रकबा निरंक था किंतु इस वर्ष राष्ट्रीय कृषि विकास योजना अंतर्गत जिले में पहली बार 550 हेक्टेयर में रागी फसल की खेती की गई है तथा प्रमाणित बीज उत्पादन कार्यक्रम के तहत् किसानों का पंजीयन भी कराया गया है। इस प्रकार प्रमाणित रागी बीज की उपलब्धता से जिले को आत्मनिर्भर बनाने तथा रागी फसल का रकबा में वृद्धि करने का प्रयास किया गया।
रागी फसल के फायदे
रागी में कैल्शियम की मात्रा सर्वाधिक पायी जाती है जिसका उपयोग करने पर हड्डियां मजबूत होती है। रागी बच्चों एवं बड़ों के लिये उत्तम आहार हो सकता है। प्रोटीन, वसा, रेशा, व कार्बोहाइड्रेट्स इन फसलों में प्रचुर मात्रा में पाये जाते है। महत्वपूर्ण विटामिन्स जैसे थायमीन, रिवोफ्लेविन, नियासिन एवं आवश्यक अमीनो अम्ल की प्रचुर मात्रा पायी जाती है जोकि विभिन्न शारीरिक क्रियाओं के लिये आवश्यक होते है। रागी युक्त आहार कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाला होता है। कैल्शियम व अन्य खनिज तत्वों की प्रचुर मात्रा होने के कारण ओस्टियोपोरोसिस से संबंधित बीमारियों तथा बच्चों के आहार (बेबी फूड) हेतु विशेष रूप से लाभदायक होता है।