एनीमिया के कारण और निवारण जानें

Update: 2023-03-16 02:39 GMT
♦ लेख : रीनू ठाकुर, सहायक जनसंपर्क अधिकारी
रायपुर: शरीर में खून की कमी होना लोगों की आम समस्या बन गई है। यह विशेष रूप से छोटे बच्चों और गर्भवती महिलाओं को अधिक प्रभावित करती है। खून में हीमोग्लोबिन की मात्रा का एक स्तर से कम हो जाना चिकित्सीय भाषा में एनीमिया कहलाता है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार दुनिया भर में 5 साल से कम उम्र के 42 प्रतिशत बच्चे और 40 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं एनीमिक हैं। इस प्रकार एनीमिया वर्तमान समय की एक गंभीर वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है।
हीमोग्लोबिन, हीम अर्थात् आयरन और ग्लोब्यूलीन एक प्रोटीन से मिलकर बना होता है। यह लाल रक्त कोशिकाओं का एक अत्यंत आवश्यक घटक है। शरीर में हीमोग्लोबिन की आवश्यकता ऊतकों तक ऑक्सीजन ले जाने के लिए होती है। यदि रक्त में हीमोग्लोबिन बहुत कम हो या लाल रक्त कोशिकाएं असामान्य हों, तो शरीर के ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता कम हो जाती है। इससे भूख नहीं लगना, थकान, कमजोरी, चक्कर आना और सांस की तकलीफ जैसे कई लक्षण दिखाई देने लगते हैं।
एनीमिया एक ऐसी स्थिति है जिसमें लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या या उनमें हीमोग्लोबिन की मात्रा सामान्य से कम हो जाती है। शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए आवश्यक हीमोग्लोबिन की मात्रा व्यक्ति के उम्र, लिंग, निवास स्थल की ऊंचाई, शारीरिक अवस्था जैसे गर्भावस्था की स्थिति में भिन्न-भिन्न होती है। आयरन की कमी से होने वाला एनीमिया सबसे आम प्रकार है जो मुख्य रूप से महिलाओं को प्रभावित करता है। रक्त की अधिक आवश्यकता के कारण हीमोग्लोबिन की कमी गर्भावस्था के दौरान जटिलताएं पैदा कर सकता है। रक्त में हीमोग्लोबिन की सही मात्रा होने से बच्चे का उचित शारीरिक एवं मानसिक विकास होता है। शरीर चुस्त रहता है और मन में फुर्ती रहती है, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है।
एनीमिया के प्रमुख लक्षण -
ऽ त्वचा, चेहरे, जीभ एवं आँखों में लालिमा की कमी।
ऽ काम करने पर जल्दी ही थकावट हो जाना।
ऽ सांस फूलना या घुटन होना।
ऽ काम में ध्यान न लगना और बातें भूल जाना।
ऽ चक्कर आना।
ऽ भूख न लगना ।
ऽ चेहरे और पैरों में सूजन।
एनीमिया के कारण और निवारण -
बच्चों, महिलाओं और गर्भवती स्त्रियों में एनीमिया के अलग-अलग कारण हो सकते हैं। इन्हें जानकर दूर करने से एनीमिया से मुक्ति पाई जा सकती है।
बच्चों में एनीमिया के प्रमुख कारण -
ऽ जन्म के समय एनीमियाग्रस्त माता से।
ऽ जन्म के एक घण्टे में स्तनपान न कराए जाने से।
ऽ ऊपरी आहार बहुत जल्दी या देर से शुरू करना।
ऽ भोजन में आयरन तत्वों की कमी होना।
ऽ पेट में कीड़े होना।
ऽ साफ-सफाई की कमी होना।
गर्भवती महिलाओं में एनीमिया के प्रमुख कारण-
ऽ भोजन में आयरन तत्वों की कमी होना।
ऽ माहवारी के दौरान ज्यादा खून बहने से।
ऽ गर्भावस्था के दौरान शरीर में अधिक आयरन की जरूरत के कारण।
ऽ कम उम्र में गर्भधारण।
ऽ दो बच्चों के जन्म के बीच में दो साल से कम अंतराल होने पर।
ऽ गर्भपात के कारण।
ऽ मलेरिया या पेट में कीड़ों के कारण।
ऽ पीने के पानी में फ्लोरोसिस की अधिक मात्रा होने पर।
ऽ साफ-सफाई की कमी होने पर।
एनीमिया से होने वाली स्वास्थगत परेशानियां-
ऽ बच्चे का मानसिक एवं शारीरिक विकास कम होना।
ऽ किसी काम में ध्यान नहीं लगा पाना।
ऽ मेहनत करने की क्षमता कम होना।
ऽ बीमारी से संक्रमण का खतरा बढ़ जाना।
ऽ माहवारी में अत्याधिक रक्तस्त्राव।
ऽ प्रसव के दौरान मृत्यु की संभावना।
ऽ नवजात बच्चे का कम वजन और खून की कमी होना।
एनीमिया से बचाव के लिए सही पोषण -
ऽ स्वस्थ शरीर और तेज़ दिमाग के लिए सभी आयु वर्ग को आयरन युक्त आहार का सेवन करना चाहिए।
ऽ सोयाबीन, काले चने और दालें जैसे मसूर, उड़द, अरहर, चना आदि को भोजन में प्राथमिकता दे।
ऽ पत्तेदार सब्जियाँ जैसे चौलाई, पालक, सहजन, सरसों, चना, अरबी, और मेथी के साग तथा प्याज की कली और पुदीना को दैनिक आहार में शामिल करें।
ऽ अन्य सब्जियाँ जैसे कच्चा केला, सीताफल आदि का सेवन करें।
ऽ रामदाना और तिल जैसे बीज खाएं।
ऽ मांसाहारी होने पर अण्डा, मीट, कलेजी, मछली आदि का सेवन करें।
जरूर खाएँ -
ऽ आयरन युक्त भोजन के साथ विटामिन सी युक्त चीजें खाने से आयरन का बेहतर समावेश होता है। इसलिए खाने में पत्तागोभी, फूल गोभी, तरबूज, संतरा, नींबू, आंवला, टमाटर आदि खाएँ।
ऽ खमीर युक्त या अंकुरित आहार।
गर्भवती महिलाओं के लिए जरूरी-
ऽ खून की कमी को रोकने के लिए चिकित्सक की सलाह से गर्भावस्था के महीने से 180 दिन (6 महीने) तक हर रोज आयरन की एक लाल गोली जरूर लें।
ऽ यदि आपको मितली आए या जी मिचलाए तो भी गोलियों को लेना जारी रखें, ये दुष्प्रभाव ज्यादा देर नहीं रहेंगे।
ऽ भोजन के लगभग एक से 2 घण्टे के बाद आयरन की गोली खाने से दुष्प्रभाव कम हो जाएँगे।
ऽ इसे कभी भी खाली पेट न लें। इसे दूध, चाय, कॉफी या कॅल्शियम की गोली के साथ भी न लें।
ऽ पेट के कीड़ों से बचाव हेतु एल्बेण्डाजोल की गोली गर्भधारण के दूसरी तिमाही में एक बार जरूर लें।
ऽ यदि थकान महसूस हो, काम में ध्यान न रहें, ज़रूरी बातें भूलने लगें या सांस फूलने लगे तो नजदीकी स्वास्थ्य केन्द्र में जाकर एनीमिया की जाँच कराएँ एवं उपचार लें।
इनसे दूर रहें -
ऽ जंक फूड और तला हुआ आहार।
ऽ सोडा, चाय, कॉफी आदि।
ऽ नशीले पदार्थ।
बच्चों के शारीरिक विकास के लिए शरीर में हीमोग्लोबिन की सही मात्रा बहुत जरूरी है। शरीर में आयरन की आजीवन मात्रा बनी रहने के लिए जन्म के पहले 3 मिनट निर्णायक होते हैं। इसके लिए स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को जन्म के 3 मिनट बाद ही बच्चे की गर्भनाल काटने की सलाह दी जाती है। बच्चे के 6 महीने होने पर, ऊपरी आहार देने के साथ ही स्तनपान जारी रखना जरूरी होता है। बच्चों को मसला हुआ ऊपरी आहार, जैसे- दलिया, खिचड़ी, दही, केला, आम, सूजी की खीर आदि दें। आयरन युक्त भोजन के साथ समय पर बच्चों को आयरन की खुराक देना भी आवश्यक है। 6 महीने से अधिक आयु के बच्चे को पेट के कीड़ों से बचाव के लिए एल्बेण्डाजोल की गोली साल में दो बार खिलाएँ। हफ्ते में दो बार फोलिक एसिड सिरप की खुराक ज़रूर दें। इसी तरह स्वस्थ बच्चे और सुरक्षित प्रसव के लिए गर्भवती महिलाओं में भी हीमोग्लोबिन का सही मात्रा में होना आवश्यक है। इसके लिए उन्हें चिकित्सीय परामर्श के अनुसार आयरन टैबलेट, एल्बेण्डाजोल की गोली और आयरन सिरप जरूर लेना चाहिए। ध्यान रखंे कि आयरन का सिरप कभी भी खाली पेट नहीं लें। आयरन सिरप व एल्बेण्डाजोल की गोली नज़दीकी स्वास्थ्य केंद्र और आँगनबाड़ी से निःशुल्क प्राप्त की जा सकती है। आयरन की गोली नियमित रूप से लेने पर जच्चा और बच्चा खून की कमी और इससे होने वाले खतरे से बच सकते हैं। इसी तरह धात्री महिलाएं भी प्रसव के 6 महीने तक नियमित आयरन की गोली लें।
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