बढ़ते जा रही है चना किसानों की समस्या, दलहनी खेती पर भारी पड़ेगी नीतिगत खामियां
जो दलहनी फसलों की खेती की राह का रोड़ा बन सकती है।
दलहनी फसलों की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार जहां कई तरह की सहूलियतें दे रही है वहीं उचित मूल्य दिलाने की नीतियों में खामियों से योजना को धक्का लग सकता है। खुले बाजार में प्रमुख फसल चना का दाम एमएसपी के मुकाबले 800 रुपये नीचे चल रहा है। मसूर को छोड़ बाकी दलहनी फसलों के मूल्य संतोषजनक नहीं हैं। दलहनी फसलों के कुल उत्पादन में चना की हिस्सेदारी लगभग 50 फीसद है। सरकारी एजेंसी की खरीद बिक्री नीति के चलते सिर्फ मुट्ठीभर किसानों को इसका लाभ मिल पा रहा है। दीर्घकालिक नीति के अभाव में दालों में आत्मनिर्भरता का दावा विफल हो सकता है।
दरअसल, सरकारी एजेंसी नैफेड पर नौ महीने के भीतर अपना स्टॉक खाली करने का दबाव रहता है। उसे हर हाल में बफर स्टॉक को बेचना पड़ता है। एजेंसी रोजाना टेंडर जारी करती थी, जिसे बुधवार से सप्ताह में तीन दिन कर दिया गया है। एजेंसी की इस कार्य प्रणाली से दाल की मंडियों में कीमतें और नीचे जा रही हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक फसल वर्ष 2021-22 में कुल 139 लाख टन चना का उत्पादन हुआ है।
सरकारी एजेंसी नैफेड के पास कुल 30 लाख टन का बफर स्टॉक है। इसमें सात लाख टन पुराना चना भी शामिल है। यानी केवल 17 फीसद स्टॉक की खरीद ही नैफेड ने की है और 83 फीसद चना खुले बाजार में बिका है। मध्य प्रदेश की मंडियों से जुड़े एक व्यापारी का कहना है कि खुले बाजार में नैफेड के लगातार सक्रिय रहने से कीमतें लगातार नीचे जा रही हैं। चना का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 5230 रुपये प्रति क्विंटल है, जबकि खुले बाजार में चना 800 रुपये प्रति क्विंटल नीचे बोला जा रहा है। इसकी देखादेखी 6000 रुपये प्रति क्विंटल वाली मटर 4000 रुपये के स्तर पर लुढ़क गई है। खुले बाजार में दालों की कीमतों में गिरावट से दलहन किसानों का उत्साह घट सकता है। सरकार की मौजूदा नीति तात्कालिक है, जो दलहनी फसलों की खेती की राह का रोड़ा बन सकती है।