क्रिप्टोकरेंसी का भारत में चलन आसान नहीं, सरकार को चीन और अमेेरिका से ज्यादा करना होगा बिजली का खर्च
क्रिप्टोकरेंसी की चर्चा चारों तरफ हो रही है.
क्रिप्टोकरेंसी की चर्चा चारों तरफ हो रही है. पिछले दिनों दुनिया के दूसरे सबसे अमीर शख्स एलन मस्क ने ट्वीट कर कहा कि अब टेस्ला की कार बिटक्वॉइन में नहीं मिलेगी. कंपनी ने बिटक्वॉइन में पेमेंट लेने की घोषणा फरवरी में की थी. मस्क ने कहा कि बिटक्वॉइन माइनिंग में एनर्जी कंजप्शन बहुत ज्यादा है जिसके कारण एनवायरनमेंट पर इसका बहुत बुरा असर होता है. इसलिए हमने यह फैसला किया है. ऐसे में बड़ा सवाल उठता है कि आखिर बिटक्वॉइन माइनिंग में कितनी एनर्जी चाहिए होती है?
AFP की रिपोर्ट के मुताबिक स्विटजरलैंड एक साल में जितनी एनर्जी कंज्यूम करता है,. उतनी ही एनर्जी बिटक्वॉइन माइनिंग में एक साल में लगती है. एलन मस्क ने ट्वीट कर कैम्ब्रीज बिटक्वॉइन इलेक्ट्रिसिटी कंजप्शन इंडेक्स का डेटा शेयर किया है. इसके मुताबिक, 15 मई की शाम 6.30 बजे सालाना आधार पर इस माइनिंग में करीब 150.04 TWh (टेरा वॉट आवर्स) एनर्जी लग रही है. अगर इसकी तुलना करते हैं तो गूगल एक साल के भीतर 12.20 TWh एनर्जी कंज्यूम करती है. पूरी दुनिया में जितने भी डेटा सेंटर्स हैं, कुल मिलाकर वो एक साल में 200 TWh एनर्जी कंज्यूम करती हैं. हालांकि इनमें बिटक्वॉइन माइनिंग को अलग रखा गया है. यह जानकारी इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी IEA की तरफ से शेयर की गई है.
Deutsche Bank के ऐनालिस्ट ने कहा कि अगर बिटक्वॉइन एक देश होता तो एक साल की माइनिंग में उतनी ही एनर्जी लगती जितनी एनर्जी स्विटजरलैंड एक साल में कंज्यूम करता है. इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी की 2016 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ग्लोबल इलेक्ट्रिसिटी प्रोडक्शन 25082 TWH रहा था जिसमें बिटक्वॉइन माइनिंग की हिस्सेदारी 0.60 फीसदी है. टोटल इलेक्टिस्ट्री कंजप्शन 20863 TWH रहा जिसमें बिटक्वॉइन की हिस्सेदारी 0.69 फीसदी है.
IEA डेटा के मुताबिक, 2018 में भारत का टोटल एनर्जी कंजप्शन 1277 TWH रहा था जबकि दुनियाभर में एनर्जी कंजप्शन 23398 TWH रहा था. अमेरिका का कंजप्शन 4033 TWH, रसिया का 929 TWH, जापाना का 940 TWH, फ्रांस का 450 TWH और चीन का 6453 TWH रहा. साल 2019-20 में भारत का ग्रॉस कंजप्शन 1383 TWH रहा. इस तरह भारत जितना एक साल में एनर्जी कंज्यूम करता है उसका आठवां भाग बिटक्वॉइन माइनिंग में खर्च हो जाती है.
दरअसल बिटक्वॉइन माइनिंग "Proof of work" प्रिंसिपल पर आधारित है जिसे 2008 में तैयार किया गया था. हर दस मिनट पर सिस्टम कुछ बिटक्वॉइन जेनरेट करता है. हालांकि इसके लिए पजल को क्रैक करना होता है. कीमत बढ़ जाने के कारण दुनिया भर के लोग इसकी माइनिंग में लगे हुए हैं. साइंस जर्नल नेचर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, चीन का ग्लोबल क्रिप्टोकरेंसी ट्रेड में 80 फीसदी योगदान है. इसकी माइनिंग के कारण जो पॉल्यूशन हो रहा है उससे देश का क्लाइमेट लक्ष्य बिगड़ सकता है.