एमएसएमई और प्राकृतिक खेती का संगम करेगा कमाल
रोजगार की संभावनाओं वाले दो क्षेत्र कृषि और एमएसएमई (लघु, सूक्ष्म और मध्यम उद्योग) का संगम कमाल करेगा।
लखनऊ: रोजगार की संभावनाओं वाले दो क्षेत्र कृषि और एमएसएमई (लघु, सूक्ष्म और मध्यम उद्योग) का संगम कमाल करेगा। एमएसएमई सेक्टर में एक जिला, एक उत्पाद (ओडीओपी) और कृषि क्षेत्र में जन,जमीन एवं जल के लिए मुफीद इको फ्रेंडली प्राकृतिक खेती की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इन दोनों के जरिए योगी सरकार हर परिवार, एक रोजगार के लक्ष्य को साधेगी।
ज्ञात हो कि देश की सर्वाधिक (करीब 90 लाख) इकाइयां यूपी में है। मुख्यमंत्री योगी ने अपने पहले कार्यकाल से ही संभावनाओं के इस क्षेत्र पर फोकस किया। पिछले वित्तीय वर्ष में इसी क्षेत्र के बूते निर्यात के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश ने लंबी छलांग लगाई। निर्यात में 30 फीसद वृद्धि हुई और यूपी देश का पांचवां सबसे बड़ा निर्यातक राज्य बन गया। इस निर्यात में भी ओडीओपी उत्पादों की हिस्सेदारी करीब 70 फीसद रही। यही नहीं, जनवरी 2018 में लांच होने के बाद से योगी-01 में ओडीओपी के जरिए 25 लाख लोगों को रोजगार/स्वरोजगार मिला। इसी सफलता के मद्देनजर लोक कल्याण संकल्प पत्र- 2022 में भजपा ने अगले पांच वर्षों में इसके माध्यम से रोजगार/स्वरोजगार एवं निर्यात का लक्ष्य बढ़ाकर दोगुना कर दिया।
ओडीओपी उत्पाद गुणवत्ता एवं कीमत में राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय बाजार के अनुरूप हों इसके लिए सरकार इनके लिए संबंधित जिलों में कॉमन फैसिलिटी सेंटर बनवा रही है। ओडीओपी के कई उत्पाद मसलन कालानमक धान, गुड़, दाल को सरकार अपने स्तर से भी लोकप्रिय बनाने का संभव प्रयास कर रही है।
रही प्राकृतिक या जैविक खेती की बात तो सरकार के प्रोत्साहन का ही नतीजा है कि 2016-17 की तुलना में 2027 में तीन गुना रकबे पर जैविक खेती का लक्ष्य सरकार ने रखा है। प्रदेश में जैविक खेती के लिए भरपूर बुनियादी सुविधाएं पहले से मौजूद हैं। सरकार इन सुविधाओं में लगातार विस्तार भी कर रही है। मसलन जैविक खेती का मुख्यालय नेशनल सेंटर फॉर ऑर्गेनिक फॉमिर्ंग (एनसीओएफ) गाजियाबाद में स्थित है। देश की सबसे बड़ी जैविक उत्पादन कंपनी उत्तर प्रदेश की ही है। यहां प्रदेश के एक बड़े हिस्से में अब भी परंपरागत खेती की परंपरा है। गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए इसके किनारों पर जैविक खेती की संभावनाओं को और बढ़ा देती है।
जैविक खेती को लोकप्रिय बनाने के लिए योगी-1 से ही प्रयास जारी हैं। इसके तहत योगी-1 में जैविक खेती के क्लस्टर्स बनाकर किसानों को जैविक खेती से जोड़ा गया। तीन वर्ष के लक्ष्य के साथ 20 हेक्टेयर के एक क्लस्टर से 50 किसानों को जोड़ा गया। प्रति क्लस्टर सरकार तीन साल में 10 लाख रुपए प्रशिक्षण से लेकर गुणवत्तापूर्ण कृषि निवेश उपलब्ध कराने पर खर्च करती है। जैविक उत्पादों के परीक्षण के लिए एक प्रयोगशाला लखनऊ में क्रियाशील है। मेरठ और वाराणसी में काम प्रगति पर है। पिछले दो वर्षों के दौरान 35 जिलों में 38,703 हेक्टेयर क्षेत्रफल पर जैविक कृषि परियोजना को स्वीकृति दी जा चुकी है। इसके लिए 22,86,915 किसानों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है। जैविक खेती के प्रति लोग जागरूक हों। इस बाबत सरकार ने कई कार्यशाला भी आयोजित की है।
योगी-2 में जैविक खेती को प्रोत्साहन देने के लिए जो लक्ष्य रखा है उसके अनुसार गंगा के किनारे के सभी 27 जिलों में 10 किलोमीटर के दायरे में जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाएगा। बुंदेलखंड के सभी 7 जिलों में गो आधारित जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाएगा। इससे इस पूरे क्षेत्र में निराश्रित गोवंश की समस्या हल करने में मदद मिलेगी। प्रदेश के हर ब्लॉक में जैविक खेती को विस्तार दिया जाएगा। ऐसे उत्पादों का अलग ब्रांड स्थापित करना, हर मंडी में जैविक आउटलेट के लिए अलग जगह का निर्धारण किया गया है। जरूरी हुआ तो सरकार जैविक खेती के लिए बोर्ड भी बना सकती है। सरकार का लक्ष्य अगले पांच साल में प्रदेश के 3,00,000 क्षेत्रफल पर जैविक खेती का विस्तार करते हुए 7,50,000 किसानों को इससे जोड़ने की है।
जैविक खेती के लिए खरीफ के मौजूदा सीजन ( 2022) से शुरू होने वाली योजना के तहत जिन ब्लाकों में जैविक खेती के लिए क्लस्टर बनेंगे उसमें से प्रत्येक में 1-1 चैंपियन फार्मर एवं लोकल रिसोर्स पर्सन, 10 कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन और 2 लोकल रिसोर्स पर्सन चयनित किए जाएंगे।
अपर मुख्य सचिव नवनीत सहगल कहते हैं कि कृषि को बढ़ावा देने के लिए इसके उत्पादों को ओडीओपी में शामिल किया गया। एमएसएमई जरिए भी रोजगार देने के प्रयास तेज हैं। सरकार की मंशा है कि राज्य के हर परिवार के एक सदस्य को रोजगार मिले उसी दिशा में कार्य हो रहा है।