देश में सबसे अच्छी स्थिति में रेशम का व्यवसाय, किसानों को सरकार की योजनाओं का मिल रहा लाभ
किसानों को सरकार की योजनाओं का मिल रहा लाभ
भारत में रेशम उद्योग (Silk Industry) अपने सबसे अच्छे दौर से गुजर रहा है. इससे रेशम कीट पालन (Sericulture) करने वाले किसानों को भी लाभ मिल रहा है. देश के करोड़ों लोगों को रोजगार देने वाला रेशम कीट पालन का क्षेत्र महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में अहम भूमिका अदा करता है. रेशम कीट पालन को बढ़ावा देने के लिए सरकार की तरफ से किसानों को भरपूर सहयोग दिया जा रहा है. रेशम उद्योग को बढ़ावा देने के लिए 1949 में रेशम बोर्ड (Silk Board) की स्थापना की गई थी.
वर्तमान में करीब 9 करोड़ 18 लाख लोगों को रोजगार देने में रेशम अपनी भूमिका अदा कर रहा है, जिसमें महिलाओं की संख्या पुरुषों से कहीं ज्यादा है. रेशम कीट पालन कृषि पर आधारित एक कुटीर उद्योग है. ग्रामीण क्षेत्र में कम लागत में इस उद्योग से शीध्र उत्पादन लिया जा सकता है. इसके अलावा कृषि कार्य और अन्य घरेलू कार्यों के साथ ही इस उद्योग को आसानी से किया जा सकता है.
इन राज्यों में होता है उत्पादन
उत्पादन की प्रक्रिया के अनुसार रेशम दो प्रकार का होता है. पहला, शहतूती रेशम यानी मलबरी सिल्क और दूसरा गैर शहतूती रेशम यानी नॉन मलबरी सिल्क.
भारत में शहतूत रेशम का उत्पादन कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, जम्मू-कश्मीर और पश्चिम बंगाल में किया जाता है. बिना शहतूत वाले रेशम का उत्पादन झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, उत्तर प्रदेश और उत्तर पूर्वी राज्यों में किया जाता है.
वर्तमान में रेशम का व्यवसाय अपने सबसे अच्छी स्थिति में है. लोगों में बढ़ती जागरूकता और सरकारी योजनाओं का साथ पाकर वो किसान भी इन्हें आसानी से कर पा रहे हैं, जो किसान पारंपरिक खेती में सफलता अर्जित नहीं कर पा रहे थे.
रेशम कीट का वैज्ञानिक नाम बॉम्बिक्स मोरी है. इसे पालने के लिए शहतूत का पौधा सबसे जरूरी है. शहतूत एक बहुवर्षीय पेड़ होता है. इस पौधे को एक बार लगाने पर अगले 15 साल तक पत्तियां देते रहता है. शहतूत के पत्ते ही रेशम कीट का मुख्य भोजन है.
रेशम कीट पालन के लिए इन बातों का रखना होता है ध्यान
अगर किसान रेशम कीट पालन के लिए शहतूत का बाग लगा रहे हैं तो उन्हें तो सही मापदंड का ध्यान रखना चाहिए. बाग तैयार हो जाने पर इन कीटों का पालन शहतूत की पत्तियों पर किया जाता है. हालांकि इस कीट का जीवन काल ज्यादा नहीं होता. ये केवल दो या तीन दिन तक ही जीवित रहते हैं.
इतने दिनों के भीतर ही मादा कीड़े शहतूत की पत्तियों पर 400 तक अंडे दे देती हैं. फिर हर अंडे से करीब 10 दिन में छोटा मादा कीट लार्वा निकलता है. फिर ये मादा कीड़ा 40 दिन में ही लंबा और मोटा होने लगता है. ये कीड़ा अपने सीर को इधर-उधर हिलाकर चारों तरफ अपनी लार गिराता है. इसी से धागे का कोकुन या कोया बन जाता है. जब यह हवा के संपर्क में आता है तो सूखकर धागे का रूप ले लेता है, जो करीब 1000 मीटर लंबाई का होता है. इसी धागे से रेशमी वस्त्र बनाए जाते हैं.
कोकुन से धागा निकालना भी अपने आप में कला है. इसमें तीन चरणों को पूरा करना होता है. बेहतर गुणवत्ता वाले रेशम के लिए गर्म हवा में सूखाया जाता है. कोकून के भंडारण को लेकर भी विशेष ध्यान रखना पड़ता है. कोकून के भंडारण के लिए कमरे का तापमान 20 डिग्री सेल्सियस या इससे कम होना चाहिए. कोकून की छंटाई के दौरान खराब या डबल कोकून को अलग कर दिया जाता है. इसके बाद रेशम के रेशे निकाले जाते हैं. इन्हीं का इस्तेमाल विभिन्न प्रकार के वस्त्र निर्माण में किया जाता है.