सेबी ने ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के लिए उठाये ये बड़े कदम, जाने बाते
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) के निदेशक मंडल ने लिस्टेड कंपनियों में प्रवर्तकों से कंट्रोलिंग शेयरहोल्डर्स की धारणा को अपनाने को सैद्धांतिक मंजूरी दी. इसके अलावा आरंभिक शेयर बिक्री के बाद न्यूनतम ‘लॉक इन’ अवधि में भी कमी की.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। मार्केट रेग्युलेटर सेबी (Sebi) ने नए जमाने की अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी कंपनियों के लिये स्वेट इक्विटी (Sweat Equity) नियमों में ढील और विभिन्न खुलासा नियमों समेत कई उपायों की घोषणा की. इन कदमों का मकसद स्टार्टअप को बढ़ावा, अनुपालन बोझ कम करना और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस बढ़ाना है. इसके साथ भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के निदेशक मंडल ने लिस्टेड कंपनियों में प्रवर्तकों से कंट्रोलिंग शेयरहोल्डर्स की धारणा को अपनाने को सैद्धांतिक मंजूरी दी. इसके अलावा आरंभिक शेयर बिक्री के बाद न्यूनतम 'लॉक इन' अवधि में भी कमी की.
सेबी निदेशक मंडल ने वैकल्पिक निवेश कोष के संचालन से संबंधित नियमन में संशोधन को भी मंजूरी दी. सेबी ने स्वेट इक्विटी की संख्या पर छूट प्रदान करने का निर्णय किया है जिसे 'इनोवेटर्स ग्रोथ प्लेटफॉर्म' (IGP) पर लिस्टेड नए जमाने की टेक्नोलॉजी कंपनियों को जारी किया जा सकता है. यह कदम ऐसे समय उठाया गया है जब कई स्टार्टअप विदेशी निवेशकों समेत अन्य से उल्लेखनीय निवेश आकर्षित कर रहे हैं.
प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक, आईजीपी पर लिस्टेड कंपनियों के मामले में स्वेट इक्विटी शेयरों की वार्षिक सीमा 15 फीसदी होगी, जबकि समग्र सीमा किसी भी समय चुकता पूंजी का 50 फीसदी होगी. यह बढ़ी हुई समग्र सीमा कंपनी के गठन की तारीख से 10 वर्षों के लिए लागू होगी. मुख्य बाजार में कारोबार करने वाली कंपनियों के लिए, वार्षिक स्वेट इक्विटी सीमा भी 15 फीसदी होगी, लेकिन कुल सीमा 25 फीसदी पर सीमित होगी.
क्या है स्वेट इक्विटी?
सेबी दो नियमों- सेबी (शेयर आधारित कर्मचारी लाभ और स्वेट इक्विटी) विनियमन, 2021 को एक करेगा. स्वेट इक्विटी से तात्पर्य किसी कंपनी द्वारा अपने कर्मचारियों को बिना नकदी के जारी किए गए शेयरों से है. स्टार्टअप और प्रवर्तक आमतौर पर अपनी कंपनियों के वित्तपोषण के लिए स्वेट इक्विटी का इस्तेमाल करते हैं.
इसके अलावा किसी कर्मचारी की मृत्यु या स्थायी अपंगता (जैसा कि कंपनी द्वारा परिभाषित किया गया है) की स्थिति में सभी शेयर लाभ योजनाओं के लिए न्यूनतम निर्धारित अवधि और 'लॉक-इन' अवधि को समाप्त कर दिया जाएगा.
IPO लाने वाली कंपनियों के प्रमोटरों को मिली राहत
सेबी निदेशक मंडल ने प्रवर्तक से कंट्रोलिंग शेयरहोल्डर्स की धारणा को अपनाने के प्रस्ताव पर सैद्धांतिक सहमति जतायी. साथ ही आरंभिक सार्वजनिक निर्गम के बाद प्रर्वतकों के लिये न्यूनतम 'लॉक इन' अवधि कम करने का निर्णय किया. सेबी ने 'लॉक इन' अवधि के बारे में कहा कि अगर इश्यू के उद्देश्य में किसी परियोजना के लिए पूंजीगत व्यय के अलावा अन्य बिक्री पेशकश या वित्तपोषण का प्रस्ताव शामिल है, तो IPO और FPO में आबंटन की तारीख से प्रवर्तकों का न्यूनतम 20 फीसदी का योगदान 18 महीने के लिये 'लॉक' किया जाना चाहिए. वर्तमान में, 'लॉक-इन' अवधि 3 वर्ष है.
सेबी के अनुसार इसके अलावा, इन सभी मामलों में, प्रवर्तक की न्यूनतम योगदान से ऊपर की हिस्सेदारी मौजूदा एक वर्ष के बजाय छह महीने के लिए अवरुद्ध रहेगी. सेबी निदेशक मंडल ने एक सहज, प्रगतिशील और समग्र तरीके से प्रवर्तक की अवधारणा से 'कंट्रोलिंग शेयरहोल्डर्स' को अपनाने के प्रस्ताव पर सैद्धांतिक रूप से सहमति व्यक्त की.
कंपनियों के अधिग्रहण में भी प्रमोटर्स को राहत
इसके अलावा, सेबी ने अलग से कंपनियों का अधिग्रहण करने वालों और प्रवर्तकों के लिए कुछ खुलासा जरूरतों को समाप्त कर दिया है. नियामक ने नियमों में भी संशोधन किया है जिससे कॉरपोरेट बांड बाजार को प्रोत्साहन देने में मदद मिलेगी. बयान के अनुसार प्रणाली आधारित खुलासे (SDD) के क्रियान्यन के मद्देनजर अधिग्रहण नियमनों में संशोधन को मंजूरी दी गई.
नियामक ने कहा, अधिग्रहणकर्ता/प्रवर्तकों आदि के लिए कुछ खुलासा प्रतिबद्धताओं को एक अप्रैल, 2022 से समाप्त किया जा रहा है. यह 5 फीसदी प्रतिशत शेयरों के अधिग्रहण और उसके बाद दो प्रतिशत के किसी बदलाव और वार्षिक शेयरधारिता खुलासे के संदर्भ में लागू होगा.
वैकल्पिक निवेश फंड के लिए नियमन में संशोधन की मंजूरी
साथ ही बाजार नियामक ने एल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट फंड और शेयर बाजार समेत बाजार बुनियादी ढांचा संस्थान (MII) के लिये नियमन में संशोधन को मंजूरी दे दी. इसका मकसद कारोबार को सुगम बनने के साथ अनुपालन जरूरतों को सरल बनाना है. बयान के अनुसार निदेशक मंडल ने दो प्रस्तावों को मंजूरी दी. इसमें सभी पात्र शेयरधारकों के लिए 2-5 फीसदी शेयरधारिता के अधिग्रहण के लिए सेबी की बाद में मंजूरी की आवश्यकता को समाप्त करना शामिल है.
विज्ञप्ति में कहा गया है, 2 फीसदी से कम शेयरधारिता प्राप्त करने वाले व्यक्तियों की 'उपयुक्त और उचित' स्थिति के निर्धारण के संबंध में सूचीबद्ध शेयर बाजारों/डिपॉजिटरी पर लागू प्रावधान गैर-सूचीबद्ध शेयर बाजारों/डिपॉजिटरी पर भी लागू होंगे.
'एसोसिएशन ऑफ नेशनल एक्सचेंज मेंबर्स ऑफ इंडिया' (ANMI) के अध्यक्ष के के महेश्वरी ने कहा कि सेबी निदेशक के फैसले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पूंजी बाजार में कारोबार सुगमता के उद्देश्य के अनुरूप हैं. उन्होंने कहा, विशेष रूप से यह निर्णय कि पात्र शेयरधारकों के लिये 5 फीसदी तक के अधिग्रहण के लिए नियामक अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होगी, यह एमआईआई से अनुमोदन प्राप्त करने में बाधाओं को दूर करने वाला एक सकारात्मक कदम है.