पेट्रोल-डीजल की कीमत चिंता का विषय, लेकिन सरकार की मोटी कमाई कोयले से भी, जानें आम जनता पर कितना पड़ता है असर

पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों को लेकर आम जनता, सरकार से लेकर विपक्ष के लिए चिंता का विषय बनी हुई हैं

Update: 2021-03-15 07:23 GMT

पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों को लेकर आम जनता, सरकार से लेकर विपक्ष के लिए चिंता का विषय बनी हुई हैं. इसे लेकर राजनीति चरम पर है. लेकिन क्या आपको पता है कोयला जिसे आम आदमी ज्यादा अहमियत नहीं देता है. सरकार टैक्स के रुप में कोल सेक्टर से भी मोटी कमाई करती है. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि कोयले पर 94 फीसदी केवल लेवी और टैक्स के रुप में वसूला जाता है. जिससे आम जनतार पर हर साल करीब 25000 करोड़ रुपए का भार पड़ता है. आखिर क्या है इस काले हीरे से कमाई का फैक्टर और किस मद में देना होता है कितना टैक्स आइए जानते हैं.

दरअसल देश में बनने वाली बिजली के कुल स्रोत का करीब 53 फीसदी हिस्सा आज भी कोयले से ही तैयार होता है.वहीं बाकी 47 फीसदी हिस्से में लिगनाइट, गैस, डीजल और इलेक्ट्रिक का इस्तेमाल किया जाता है. कोयले पर ज्यादा टैक्स की एक वजह इसका जीएसटी के दायरे में होना भी है.
94 फीसदी है लेवी और टैक्स का हिस्सा
आमतौर पर पेट्रोल और डीजल पर राज्य और केंद्र सरकार के टैक्स का हिस्सा इसकी कीमत का करीब करीब आधा होता है. लेकिन कोयले पर लेवी और सारे टैक्स को मिला दिया जाए तो यह करीब 94 फीसदी बैठती है. जिसमें 14 फीसदी रायल्टी, 5 फीसदी जीएसटी, 400 रुपए प्रति टन जीएसटी कंपनशेशन सेस, कुल रायल्टी पर दो फीसदी नेशनल मिनरल एक्सपोलेरेशन टैक्स, 30 फीसदी का मिनरल फाउंडेशन टैक्स शामिल होता है.
यहा भी देना होता है टैक्स
इसके अलावा कोयले पर 23 रुपए प्रति टन पर्यावरण और विकास लेवी के रुप में लिया जाता है. वहीं दो रुपए प्रति टन का सीमा कर भी चुकाना होता है. वहीं अगर कोयले का उत्पादन वेस्टर्न कोलफिल्ड से हो रहा है तो इसपर प्रति टन 57 रुपए का फोरेस्ट टैक्स शामिल होता है. टैक्स का सिलसिला केवल यही खत्म नहीं होता. एक बार कोयले का उत्पादन हो जाए उसके बाद इसपर क्रेशिंग, ट्रक से ढुलाई और निकासी पर भी टैक्स देना होता है.
ऐसे पड़ता है 25000 करोड़ का भार
बिजली क्षेत्र से जुड़े रेगुलेटरी बॉडीज की बेवसाइट पर दिए गए आंकड़ों के मुताबिक कोयला उत्पादन से लेकर बिजली बनाने तक की प्रक्रिया में अलग अलग टैक्स और लेवी लगने के चलते ग्राहकों पर हर साल करीब 25000 करोड़ रुपए का भार पड़ता है. आपको यह जानकर भी आश्चर्य होगा कि कोयला पर जीएसटी लगता है जबकि बिजली पर जीएसटी लगती है. कोयला दरअसल कच्चा माल है इसलिए इसे जीएसटी के दायरे में रखा गया है जबकि बिजली फाइनल प्रोडक्ट होता है इसलिए इसपर जीएसटी वसूला जाता है.


Tags:    

Similar News

-->