इस राज्य में ज्यादा लहराई धान की फसल, सरकारी खरीद में भी भारी उछाल

राज्य में ज्यादा लहराई धान की फसल

Update: 2021-12-18 16:03 GMT
नीति आयोग की मंशा उन फसलों को डिस्करेज करने की है, जिनमें ज्यादा पानी की खपत (Water Consumption) होती है. ऐसी ही फसलों में से एक है धान. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि एक किलो चावल पैदा करने में 3000 लीटर पानी लगता है. इसके बावजूद महाराष्ट्र में धान का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है. जबकि यह जल संकट वाला प्रदेश है. जिसके कई क्षेत्र सूखे के लिए कुख्यात हैं. आंकड़े बता रहे हैं कि यहां 2019-20 के मुकाबले लगभग 5 लाख मिट्रिक टन धान की पैदावार बढ़ गई है. आखिर ऐसा क्या है जिसकी वजह से यहां धान की खेती (Paddy Farming) घटने की बजाय बढ़ रही है?
सवाल ये है कि क्या धान की फसल महाराष्ट्र के किसानों की मजबूरी बन रही है या फिर इस पर पैसा अच्छा मिल रहा है. आखिर क्या वजह है कि धान के रकबे और उत्पादन में वृद्धि हो रही है. कहीं इसके पीछे न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर बढ़ रही खरीद तो नहीं है?
सरकारी खरीद में रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी
भारतीय खाद्य निगम से मिली जानकारी के अनुसार 2016-17 के दौरान महाराष्ट्र में सिर्फ 4.61 लाख मिट्रिक टन धान खरीदा गया था जो 2020-21 में बढ़कर 18.85 लाख मिट्रिक टन हो गया. यहां 2016-17 में सिर्फ 1,49,279 किसानों ने एमएसपी पर धान बेचा था. लेकिन 2018-19 में ऐसे किसानों की संख्या 2,69,148 जबकि 2020-21 में 6,24,292 हो गई. राज्य सरकार धान पर 700 रुपए प्रति क्विंटल का बोनस दे रही है. इस वजह से किसानों को लाभ मिल रहा है.
कितना हुआ उत्पादन?
महाराष्ट्र में 2019-20 के दौरान 28.97 लाख मिट्रिक टन धान का उत्पादन हुआ था. जो 2020-21 में 34.47 लाख टन हो गया. जबकि 2021-22 के पहले अग्रिम अनुमान के मुताबिक इस साल प्रदेश में रिकॉर्ड 34.55 लाख टन धान उत्पादन होने की संभावना है. उधर, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश जैसे राज्य अब धान का उत्पादन घटाना चाहते हैं.
यह तब है जब केंद्र सरकार धान की खेती को कम करने की कोशिश कर रही है. ताकि भविष्य में खेती के लिए पानी बचा रहे. सरकार चाहती है कि उन्हीं क्षेत्रों में ही धान की खेती पर जोर दिया जाए जहां पर बारिश बहुत अच्छी होती है. महाराष्ट्र में कोंकण के आसपास रायगढ़, रत्नागिरी और विदर्भ के कुछ क्षेत्रों में इसकी खेती होती है.
धान पैदा करना मजबूरी
हालांकि, महाराष्ट्र के किसान नेता डॉ. अज‍ित नवले का कहना है कि यहां के किसान मजबूरी में धान की खेती कर रहे हैं. यहां पर धान की ज्यादातर पैदावार ट्राइबल और उन क्षेत्रों में हो रही है जहां बारिश ज्यादा होती है. जहां पर सोयाबीन (Soybean) और कपास की फसल नहीं हो सकती. यहां पर धान की उत्पादकता कम है. इसलिए लागत अन्य राज्यों से ज्यादा आती है. जिन क्षेत्रों में धान ज्यादा उगाया जा रहा है वहां पर कैश क्रॉप उगाने के हालात नहीं हैं.
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