झारखंड में हो रही मल्टीलेयर फार्मिंग, किसानों को होगा जबरदस्त फायदा

पीपीडी बीएयू सोसाइटी के सीइओ सिद्धार्थ जायसवाल ने बताया कि मल्टी लेयर फार्मिंगं पूरी तरह से प्राकृतिक खेती होती है

Update: 2021-10-12 03:47 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। झारखंड के किसान भी अब कृषि की नयी नयी तकनीक को अपना रहे हैं. यहां भी अब खेती में नये प्रयोग किये जा रहे हैं, ताकि उत्पादन बढ़ सके, बाजार के अनुरूप मांग पूरी हो सके और किसानों की आय दोगुनी हो सके. इसके अलावा राज्य में जैविक खेती को बढ़ावा देने का प्रयास किया जा रहा है. गैर पारंपरिक कृषि प्रणाली में भी अब पारपंरिक गोबर खाद का प्रयोग किया जा रहा है. किसानों को जागरूक करने के लिए और नयी पद्धति की खेती की जानकारी देने के लिए कृषि वैज्ञानिक भी जुटे हुए हैं, जो झारखंड की जलवायु, और मिट्टी के के अनुसार खेती पद्धति को विकसित कर रहे हैं. फाइ‍व लेयर फार्मिंग भी इसी का एक रुप है.

मल्टी लेयर फार्मिंग
पीपीडी बीएयू सोसाइटी के सीइओ सिद्धार्थ जायसवाल ने बताया कि मल्टी लेयर फार्मिंगं पूरी तरह से प्राकृतिक खेती होती है. इसमें जैविक खाद का प्रयोग किया जाता है. देसी बीज का प्रयोग किया जाता है. इससे पैदावार भी अच्छी हो रही है. दरअसल झारखंड अगर टमाटर की खेती करते हैं पूरी जमीन पर करते इसमें अगर उस फसल में कुछ बीमारी आ जाती है तो पूरे खेत में फैल जाती है. इसके कारण पूरी खेत की फसल या सब्जी बर्बाद हो जाती. पर मल्टी लेयर फार्मिंग विधि इससे अलग होती है, इससे किसानों को ज्यादा नुकसान नहीं होता है.
मल्टी लेयर फार्मं के फायदे
इस तकनीक में जमीन का इस्तेमाल बेहतर तरीके से होता है और एक एकड़ के प्लॉट पर भी एक प्रकार से अधिक सब्जियां उगा सकते हैं.
इसमें उत्पादन सामान्य खेती से अधिक फायदा होता है साथ ही अलग अलग वेरायटी के सामान मिल जाते हैं.
इसमें कोई किसान अगर रासायनिक खाद और कीटनाशक मिलाकर मोनो क्रॉपिंग कर रहा है तो उससे अधिक मुनाफा मल्टी लेयर फार्मिंग में होता है कयोंकि इसमें खाद और बीज खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है. देसी बीज के इस्तेमाल से ही खेती की जाती है. इसलिए हमेशा इसमें मुनाफा ज्यादा होता है. जानकार बताते हैं कि इस तकनीक से खेती करने पर किसानों कमाई 1.5 से 2 फीसदी तक बढ जाती है.
मल्टी लेयर फार्मिंग में बार बार खेत तैयार करने की जरूरत नहीं होती है. एक बार मल्टी लेयर लगाने के बाद पांच साल तक खेत में जुताई की जरुरत नहीं होती है , जबकि पारपंरिक खेती के लिए हर तीन महीने बाद खेती की जुताई करनी पड़ती है. इसमें पैसों की खर्च होती है.
इस तकनीक में एक एकड़ खेत में 25 प्रकार सी सब्जियां और फल उगा सकते हैं.
इस तकनीक में देसी बीज का इस्तेमाल होता है, जैविक खाद का इस्तेमाल होता है इससे जमीन बंजर नहीं होती है और लंबे समय तक खेती की जा सकती है.
दुबलिया में हो रही मल्टी लेयर खेती
पीपीडी बीएयू सोसाइटी के सीइओ सिद्धार्थ जायसवाल ने बताया कि कांके प्रखंड के दुबलिया में पायलट के तौर पर सामूहिक खेती के तौर पर मल्टी लेयर फार्मिंग की जा रही है. दुबलिया में बनाये गये फार्म में शहर के लोगों ने मिलकर खेती की है. यहां किसान आकर इस पद्धति के बारे में सीख सकते हैं. उसके बाद बड़े स्तर पर इस पद्धति को अपनाया जाएगा. मल्टी लेयर फार्मिंग में पूर्व पश्चिम दिशा में बेड तैयार किया जाता है ताकि दिन भर धूप मिलता रहे. इसमें पहले लेयर में जमीन के अंदर होने वाली सब्जिया जैसे आलू प्याज मूली उगाते हैं. दूसरे लेयर में जमीन से ठीक उपर होने वाली सब्जी जैसे पत्ता गोभी, तीसरे लेयर में झाड़ीनुमा सब्जिया जैसे टमाटर, पांचवे लेयर में लतरदार सब्जिया और फिर जमीन में जो जगह बचती है वहां पर साग लगाया जाता है.
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