अमेरिका में मंथली आधार पर महंगाई में उछाल आ रहा है. दिसंबर के मुकाबले जनवरी में महंगाई में 0.6 फीसदी की तेजी आई है. यह इकोनॉमिस्ट के अनुमान के मुकाबले ज्यादा है. अक्टूबर के मुकाबले नवंबर में महंगाई दर में 0.7 फीसदी की तेजी दर्ज की गई थी, जबकि सितंबर के मुकाबले अक्टूबर में महंगाई में 0.9 फीसदी का उछाल आया था.
2 फीसदी के मुकाबले 7.5 फीसदी पर महंगाई दर
अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने इंफ्लेशन का टार्गेट 2 फीसदी रखा है. ऐसे में 7.5 फीसदी का इंफ्लेशन बहुत ज्यादा है. महंगाई बढ़ने में दो फैक्टर अहम हैं. पहला डिमांड बढ़ गया है, दूसरा सप्लाई की समस्या है. डिमांड के कारण इंफ्लेशन से साफ है कि इकोनॉमिक रिकवरी बहुत तेजी से हो रही है. रोजगार के मोर्चे पर सुधार देखा जा रहा है. जनवरी में रोजगार डेटा उम्मीद से बेहतर रहा. वहां वर्कर्स की शॉर्टेज शुरू हो गई है, जिसके कारण घंटे के कामकाज का चार्ज (hourly wages) बढ़ गया है.
भारत पर कैसे होता है अमेरिका में महंगाई बढ़ने का असर?
अमेरिका में महंगाई बढ़ने का भारत पर बहुत असर होता है. भारत बड़े पैमाने पर आयात करता है. अमेरिका समेत दुनिया के अन्य देशों में महंगाई बढ़ने से भारत का आयात बिल बढ़ जाएगा. इससे ट्रेड डेफिसिट बढ़ेगा और राजकोषीय घाटा और बढ़ेगा. रुपए में गिरावट आएगी. महंगाई पर कंट्रोल करने के लिए अमेरिकी फेडरल रिजर्व टैपर प्रोग्राम के साथ-साथ इंट्रेस्ट रेट में समय से पहले बढ़ोतरी करेगा. दिसंबर की बैठक में फेडरल रिजर्व ने इशारा दिया था कि मार्च तक इंट्रेस्ट रेट में किसी तरह का बदलाव नहीं किया जाएगा.
विदेश से फंड इकट्ठा करना महंगा होगा
इंट्रेस्ट रेट में बढ़ोतरी की मदद से फेडरल रिजर्व लिक्विडिटी कम करता है. अगर फेडरल रिजर्व इंट्रेस्ट रेट बढ़ाता है तो भारतीय कंपनियों के लिए विदेशों से फंड इकट्ठा करना महंगा हो जाएगा. फेडरल रिजर्व के उठाए कदम के अनुरूप रिजर्व बैंक को भी जल्द इंट्रेस्ट रेट बढ़ाने पर विचार करना होगा.
रुपए में मजबूती से एक्सपोर्ट को नुकसान पहुंचता है
अगर रिजर्व बैंक इंट्रेस्ट बढ़ाता है तो मनी सर्कुलेशन घटने के कारण रुपए की वैल्यु बढ़ जाएगी. करेंसी की वैल्यु बढ़ने से एक्सपोर्टर्स को परेशानी होगी. इससे भारत सरकार के रेवेन्यू में गिरावट आएगी. कुल मिलाकर अमेरिकी फेडरल रिजर्व के फैसले और वहां की महंगाई का असर भारत समेत दुनिया की सभी इमर्जिंग इकोनॉमी पर होता है.
बॉन्ड यील्ड 2 फीसदी के पार
अमेरिकी में बॉन्ड यील्ड अगस्त 2019 के बाद पहली बार 2 फीसदी के पार किया है. आर्थिक सुधार में तेजी के कारण यील्ड में तेजी देखी जा रही है. दरअसल, बढ़ती महंगाई ने बॉन्ड की कीमत को कम कर दिया है जिससे यील्ड बढ़ गया है. जब बॉन्ड की कीमत घटती है तो यील्ड बढ़ती है, जब बॉन्ड की कीमत बढ़ती है तो यील्ड घटती है. बॉन्ड यील्ड बढ़ने के कारण यह निवेशकों को ज्यादा आकर्षित करता है जिसके कारण बैंकों को डिपॉजिट पर इंट्रेस्ट रेट बढ़ाना होता है. डिपॉजिट पर ज्यादा इंट्रेस्ट देने पर बैंकों को लोन पर इंट्रेस्ट रेट भी बढ़ाना होगा.
फेडरल रिजर्व 3-4 बार इंट्रेस्ट रेट बढ़ा सकता है
माना जा रहा है कि बढ़ती यील्ड के कारण फेडरल रिजर्व इस साल 3-4 बार इंट्रेस्ट रेट में बढ़ोतरी कर सकता है. जानकारों का कहना है कि इंफ्लेशन में उछाल के कारण यील्ड में तेजी है. इससे शेयर बाजार के सेंटिमेंट पर बुरा असर होता है. जब निवेशक बॉन्ड में ज्यादा निवेश करने लगते हैं तो मांग बढ़ने के कारण भी यील्ड बढ़ जाती है.
11.6 लाख करोड़ कर्ज लेगी सरकार
बॉन्ड यील्ड के कारण सरकार के बॉरोइंग प्रोग्राम पर भी असर होता है. सरकार ने इस साल मार्केट से बड़े पैमाने पर कर्ज उठाने का ऐलान किया है. केंद्र सरकार अपने खर्च को पूरा करने के लिए वित्त वर्ष 2022-23 में बाजार से लगभग 11.6 लाख करोड़ रुपए का कर्ज लेगी. यह आंकड़ा चालू वित्त वर्ष के बजट अनुमान 9.7 लाख करोड़ रुपए से लगभग दो लाख करोड़ रुपए ज्यादा है.