होम और ब्यूटी सर्विस उपलब्ध करवाने वाली एक भारतीय कंपनी ने प्रदर्शन कर रहीं अपनी महिला कर्मचारियों पर केस कर दिया है. ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी 'गिग कंपनी' ने अपने कर्मचारियों पर ही केस कर दिया है.'अर्बन कंपनी' एक भारतीय स्टार्टअप है जो सौंदर्य और स्वच्छता संबंधी सेवाएं उपलब्ध करवाती है. 'अर्बन कंपनी' ऊबर की तर्ज पर काम करती है. यहां ब्यूटिशियन, क्लीनर और अन्य घरेलू कामों के लिए सेवाएं उपलब्ध करवाने पेशेवर अपना अकाउंट बनाते हैं और ग्राहक उनकी सेवाएं सीधे उनसे संपर्क करके ले सकते हैं. कंपनी की महिला कर्मचारी नए नियमों के खिलाफ प्रदर्शन कर रही हैं. उनका दावा है कि ये नियम उनकी आय को प्रभावित करते हैं. अर्बन कंपनी की नई नीतियों के मुताबिक उसके जरिए काम पाने वाले साझीदारों को उसकी सेवाओं को पैसे देकर सब्सक्राइब करना होगा. इसके बाद ही उन्हें निश्चित काम और अन्य सुविधाएं मिलेंगी.
इस प्लैटफॉर्म के जरिए काम पाने वाली महिलाओं का कहना है कि इससे उनकी आय कम हो जाएगी. कमाई घट जाएगी जिन महिलाओं पर मुकदमा किया गया है उनमें शामिल सीमा सिंह कहती हैं कि नए नियम हमारी काम करने की क्षमता को कम करते हैं और कमाई भी घटाते हैं. वह कहती हैं, "नई नीतियां हमारी कमाई कम कर देंगी और हमारे लिए गुजारा भी मुश्किल हो जाएगा. हमारे पास विरोध प्रदर्शन करने के अलावा कोई रास्ता नहीं था क्योंकि कंपनी हमारी बात सुन ही नहीं रही थी." 35 वर्षीय सीमा सिंह एक ब्यूटिशियन हैं और कंपनी के लिए चार साल से काम कर रही हैं. उन जैसी सैकड़ों महिलाएं हैं जिन्हें कंपनी पार्टनर कहती है. उनमें से दर्जनों महिलाएं इसी हफ्ते गुरुग्राम स्थित अर्बन कंपनी के हेडक्वॉर्टर के सामने जमा हो गईं. उन्होंने अनपे हाथों में तख्तियां और बैनर उठा रखे थे जिन पर नियमों को विरोध करते नारे लिखे थे.
सीमा सिंह बताती हैं कि ये महिलाएं दो रात तक वहां सर्द रात में बैठी और अपनी सुरक्षा के डर से वहां से उन्हें हटना पड़ा. वह कहती हैं, "उन्होंने हम पर मुकदमा कर दिया है इससे पता चलता है कि वे हमसे डरे हुए हैं." कंपनी ने दायर मुकदमे में कहा है कि विरोध करने वाले प्रदर्शनकारियों की गतिविधियां अवैध और गैरकानूनी हैं. इस खबर के लिए संपर्क किए जाने पर कंपनी ने कोई टिप्पणी नहीं की. पहली बार ऐसा केस दुनियाभर में ऐसी ऐप-आधारित कंपनियां काम कर रही हैं जहां विभिन्न पेशेवर अपने ग्राहकों से मिलते हैं. जैसे ऊबर के जरिए ड्राइवर काम पाते हैं या मेन्यूलॉग के जरिए फूड डिलीवरी होती है. इन वेबसाइट के साथ काम करने वाले पेशेवर अक्सर शिकायत करते हैं कि उनके अधिकारों का दमन किया जाता है, उन्हें समुचित मेहनताना नहीं मिलता और उनके काम के घंटों का कोई हिसाब नहीं है. इन कर्मियों को अमेरिका से लेकर नीदरलैंड्स तक कई देशों में कानूनी लड़ाइयों में जीत मिली है.
'गिग इकोनॉमी' कही जाने वाली इस व्यवस्था में भारत के लगभग 50 लाख लोग काम करते हैं. इन लोगों ने एक यूनियन भी बनाई है जिसमें ऊबर, ओला, जोमैटो और स्वीगि जैसी ऐप्स से जुड़े 35 हजार से ज्यादा लोग शामिल हैं. अक्टूबर में इन लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी कि सामाजिक सुविधाएं उनके लिए भी उपलब्ध होनी चाहिए. पॉलीटेक्निक इंस्टीट्यूट ऑफ पेरिस में समाजशास्त्र के प्रोफेसर अंतोनियो कासीली ने ट्विटर पर कहा कि अर्बन कंपनी का मुकदमा असामान्य है. उन्होंने लिखा, "गिग कर्मचारी श्रम कानून लागू करवाने के लिए कंपनियों पर केस करें ऐसा तो बार-बार हो रहा है लेकिन एक कंपनी ही अपने कर्मचारियों पर मुकदमा कर दे, यह पहली बार हुआ है." गिग इकोनॉमी में काम करने वाली महिलाओं पर अध्ययन कर रहीं इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज ट्रस्ट की अन्वेषा घोष कहती हैं, "कर्मचारियों के खिलाफ मुकदमा उनके प्रदर्शन को कुचलने का एक अतिवादी कदम है." भारत में गिग इकोनॉमी में काम करने वाले लोगों के लिए सामाजिक लाभ उपलब्ध करवाने वाला एक कानून 2020 में पास हुआ था लेकिन कई राज्यों ने अब तक उसे लागू नहीं किया है.