Income Tax Day: भारत में 2 फीसदी से कम लोग देते हैं इनकम टैक्स, जानिए आयकर का इतिहास

Update: 2021-07-24 08:11 GMT

केंद्रीय प्रत्यक्ष कर (CBDT) बोर्ड के अनुसार साल 2018-19 में देश में सिर्फ 1.46 करोड़ लोगों ने इनकम टैक्स दिया था. यानी 130 करोड़ की जनसंख्या में 2 फीसदी लोग भी इनकम टैक्स नहीं देते. जबकि विदेश यात्रा करने वालों, महंगी प्रॉपर्टी खरीदने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है. आज इनकम टैक्स डे (24 जुलाई) के अवसर पर यह जानते हैं कि देश में क्या है टैक्स वसूली की हालत?

सरकार ने इस बारे में लेटेस्ट आंकड़े जारी नहीं किए हैं, लेकिन ऐसा नहीं लगता कि पिछले दो-तीन साल में इसमें कोई चमत्कारिक बढ़त हुई होगी. सीबीडीटी के अनुसार साल 2018-19 में सिर्फ 46 लाख इंडिविजुअल टैक्सपेयर्स ने अपनी आमदनी 10 लाख से ऊपर दिखाई थी. 1 करोड़ लोगों ने अपनी आमदनी 5 से 10 लाख रुपये के बीच दिखाई थी.
उस साल कुल 5.78 करोड़ लोगों ने आईटीआर दाख‍िल किया था और इसमें से 1.03 करोड़ लोगों ने अपनी आमदनी 2.5 लाख से नीचे दिखाई थी. करीब 3.29 करोड़ लोगों ने अपनी सालाना आय 2.5 लाख से 5 लाख के बीच दिखाई थी. गौरतलब है कि सरकार ने 5 लाख रुपये तक की सालाना आय को रीबेट के द्वारा करमुक्त कर दिया है.
समावेशी योगदान की बात भी अब करनी होगी
इनकम टैक्स पेयर्स को विशेष सहूलियत देने के लिए अभ‍ियान चलाने वाले ग्लोबल टैक्सपेयर्स ट्रस्ट के चेयरमैन मनीष खेमका कहते हैं, 'आजादी के 74 साल के बाद भी भारत के प्रत्यक्ष कर राजस्व में क़रीब 98% नागरिकों का कोई योगदान नहीं है, जबकि विकसित देशों में प्राय: 50% से ज्यादा नागरिक आयकर देते हैं. क्या सिर्फ 1.5 करोड़ करदाता भारत की 130 करोड़ जनता को अपने कंधों पर बैठाकर विकास की तेज दौड़ लगा सकते हैं? स्वाभाविक रूप से ऐसी अपेक्षा नासमझी ही होगी. अब समय है पुरातन शुतुरमुर्गी सोच से बाहर निकलने का. हमें वास्तव में इन्क्लूसिव ग्रोथ-समावेशी विकास चाहिए तो इन्क्लूसिव कॉन्ट्रिब्यूशन-समावेशी योगदान की बात भी अब करनी होगी.'
करोड़ों लोग विदेश यात्रा करते हैं
प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले साल एक टीवी चैनल के कार्यक्रम में कहा कि इस बार करीब 3 करोड़ भारतीयों ने विदेश यात्रा की लेकिन आयकर सिर्फ डेढ़ करोड़ लोगों ने ही अदा किया. पर्यटन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2019 में 2.69 करोड़ भारतीयों ने विदेश यात्रा की थी. यानी हर दिन 73 हजार से ज्यादा लोगों ने विदेश यात्रा की.
इसी तरह देश में कारों, लग्जरी कारों की बिक्री बढ़ती जा रही है. FADA के मुताबिक जून, 2021 में लग्जरी कारों की बिक्री में 167 फीसदी का इजाफा हुआ है. जून में कुल कारों की बिक्री संख्या 2.55 लाख से ज्यादा रही है. वित्त वर्ष 2020-21 में कुल कारों की बिक्री संख्या करीब 27 लाख (27,11,457) रही है.
कोरोना काल में भी देश में अक्टूबर से दिसंबर 2020 की तिमाही में आठ प्रमुख शहरों में मकानों की बिक्री दोगुनी होकर 61,593 तक पहुंच गई. प्रॉपटाइगर की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2020 के दौरान मकानों की बिक्री 1,82,640 यूनिट की हुई थी.
खेती पर कर न लगने से नुकसान
भारत में कृषि आय को करमुक्त रखा गया है. देश के करोड़ों किसानों की गरीबी को देखते हुए यह उचित है. लेकिन उन किसानों का क्या जो मर्सिडीज से चलते हैं, साल में खेती से करोड़ों रुपये की आय करते हैं? नीति आयोग के एक अध्ययन के मुताबिक़ भी देश के सिर्फ 4% अमीर किसानों को आयकर के दायरे में लाकर करीब 25 हज़ार करोड़ से ज्यादा राजस्व जुटाया जा सकता है.
यह काले धन को सफेद करने का भी एक माध्यम बन गया है. ऐसी कई रिपोर्ट सामने आई हैं, जिसके मुताबिक हजारों लोगों ने खेती से हर साल करोड़ों रुपये की आय दिखाई है और एक पैसे का टैक्स नहीं दिया है. जानकार कहते हैं कि इसमें ब्लैक मनी को व्हाइट करने के एक तरीके के रूप में इस्तेमाल करने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता.
मनीष खेमका कहते हैं, 'भारत के छोटी जोत वाले 90% गरीब किसानों की हालत आज भी ख़राब है. उनकी मदद के लिए ऐसे अमीर किसानों पर आयकर लगाना आवश्यक है. केंद्र सरकार 'गरीब किसान कल्याण कोष' बनाकर यह पहल कर सकती है. इससे खेती की आड़ में काले धन को सफ़ेद करने का खेल भी रुकेगा.'
आमदनी छुपाने वालों का देश
ऐसा माना जाता है कि भारत में लोग टैक्स से बचने के लिए आमदनी छुपाने के लिए तरह-तरह की जुगत करते हैं. लोगों को टैक्स के दायरे में लाने के लिए आयकर विभाग को तरह-तरह के उपाय करने पड़ते हैं. देश में अब भी एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो इनकम टैक्स देने से बचता है. अक्सर आयकर विभाग के छापों से इसीलिए चौंकाने वाले खुलासे होते हैं. हाल में इनकम टैक्स विभाग से यह खुलासा हुआ कि कानपुर में 256 ठेले और खोमचे वाले करोड़पति हैं. इतनी कमाई के बावजूद ये एक पैसा इनकम टैक्स या जीएसटी के लिए नहीं दे रहे हैं. इन सभी को नोटिस भेजने की तैयारी की जा रही है. 
ब्रिटिश अर्थशास्‍त्री की देन इनकम टैक्‍स
जनवरी से मार्च तक लोग इनकम टैक्‍स को लेकर परेशान रहते हैं और अपना टैक्‍स फाइल करना नहीं भूलते हैं. इस खास दिन का मकसद सिर्फ इतना है कि लोग अपने टैक्‍स के प्रति जागरुक रहें. लेकिन क्‍या आप जानते हैं कि इस सिस्‍टम की शुरुआत कैसे और क्‍यों हुई थी. इनकम टैक्‍स को देश में लाने का श्रेय ब्रिटिश अर्थशास्‍त्री जेम्‍स विलसन को जाता है. जेम्‍स विलसन ही वो पहले व्‍यक्ति थे जिन्‍होंने पहला बजट पेश किया था. जेम्‍स ने जब 18 फरवरी 1860 को बजट पेश किया तो उसमें उन्‍होंने तीन तरह के टैक्‍स भी पेश किए-इनकम टैक्‍स, लाइसेंस टैक्‍स और तंबाकू ड्यूटी. इनमें से सिर्फ एक को ही मंजूरी मिली और बाकी दो भारत के गर्वनर जनरल चार्ल्‍स कैनिंग ने खारिज कर दिए थे.
जेम्स विलसन सन् 1860 में जब पहली बार इनकम टैक्स एक्ट लाए तो उस पर बड़ा विवाद हुआ. विलसन के इसके पक्ष में तर्क दिया और कहा कि ब्रिटिश, भारतीयों को व्यापार करने के लिए सुरक्षित माहौल मुहैया कराते हैं. इसलिए इसके बदले में इनकम टैक्स के रूप में एक फीस लेना गलत नहीं है. विलसन 28 नवंबर, 1859 को भारत आए थे. तब अंग्रेज 1857 में आजादी की पहली लड़ाई से निपट चुके थे. इससे निपटने में अंग्रेजों को भारी संसाधन खर्च करने पड़े थे. खासकर सेना पर हुए खर्च के कारण सरकार कर्ज में डूब चुकी थी. उस वक्त विलसन ने इनकम टैक्स एक्ट लाकर अंग्रेजों को बड़ी राहत दी थी.
कनाडा के दो रिसर्चर्स ने विलसन की तरफ से उनकी मैगजीन में लिखे गए कुछ आर्टिकल्‍स का जिक्र किया है जो भारत पर सन् 1843 से लेकर 1860 तक लिखे गए थे. इन आर्टिकल्‍स के मुताबिक, 19वीं सदी में कई मतभेदों के बावजूद अर्थव्यस्था में सरकारी हस्तक्षेप को अपनाया और टैक्सेशन को बढ़ाया गया था. आर्टिकल के मुताबिक, इस अंतर को नस्ल के प्रति रुख से समझा जा सकता है. विलसन के बजट ने भारत को वित्तीय शासन का एक अहम औजार दे दिया, लेकिन यह इनकम टैक्स एक्‍ट कारोबारियों के साथ-साथ जमींदारों को भी रास नहीं आया. लोगों में इनकम टैक्स के भुगतान के प्रति अरुचि आजादी के 70 साल बाद आज भी बरकरार है.


Tags:    

Similar News

-->