बिजली कंपनियों के साथ बैठक में सरकार ने दी चेतावनी,कहा- 'महंगे कोयले का बहाना मंजूर नहीं'
एक तरफ देश के दर्जनों पावर प्लांट के समक्ष कोयला संकट है।
नई दिल्ली। एक तरफ देश के दर्जनों पावर प्लांट के समक्ष कोयला संकट है और सरकार किसी तरह से उन्हें कोयले की आपूर्ति करने में जुटी हुई है। दूसरी तरफ आयातित कोयले से चलने वाले कुछ पावर प्लांट एक महीने का स्टाक होने के बावजूद पर्याप्त बिजली नहीं बना रहे। कारण यह है कि महंगे आयातित कोयले से लागत कई गुना बढ़ गई है। बढ़ी कीमत पर वे बिजली बेचने की स्थिति में नहीं है। इस बात का पता लगने के बाद केंद्र सरकार ने इन बिजली प्लांट को सख्त चेतावनी दी है कि उन्हें हर कीमत पर कोयले की उपलब्धता बढ़ानी होगी और बिजली प्लांट भी चलाना होगा। केंद्र ने साफ तौर पर चेतावनी दी है कि अगर बिजली कंपनियां बिजली खरीद समझौते (पीपीए) के तहत बिजली की आपूर्ति नहीं करती हैं तो वह तुरंत हस्तक्षेप करेगा।
बिजली मंत्रालय ने सात अक्टूबर, 2021 को आयातित कोयले से बिजली बनाने वाले संयंत्रों और राज्य सरकारों के साथ एक अहम बैठक बुलाई थी। बैठक में बिजली सचिव ने बिजली कंपनियों के साथ ही राज्य सरकारों को भी आड़े हाथों लिया और साफ तौर पर कहा कि बिजली उत्पादक कंपनियों को अगर पीपीए के तहत पर्याप्त बिजली बनाने का काम करना है तो राज्य भी यह सुनिश्चित करें कि कंपनियों को समय पर निर्धारित दरों पर भुगतान हो। कोयले की कमी का बहाना बनाने वाली बिजली कंपनियों से दो टूक कहा गया कि आयातित कोयले की कीमत ज्यादा होने का बहाना नहीं चलेगा।
बिजली उत्पादक कंपनियों पर एक लाख करोड़ रुपये का बकाया
सनद रहे कि अभी राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों (डिस्काम) का बिजली उत्पादक कंपनियों पर एक लाख करोड़ रुपये का बकाया है। वैसे इस बैठक के बाद देश में कोयले की आपूर्ति काफी सुधरी है। बुधवार को पीक आवर टाइम में बिजली की आपूर्ति व मांग में सिर्फ 6,000 मेगावाट का अंतर था जो कुछ दिन पहले 12 हजार मेगावाट का था। बैठक में टाटा पावर, अदाणी पावर, एस्सार पावर के प्रतिनिधियों के अलावा महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, पंजाब के अधिकारियों ने हिस्सा लिया था।
लागत वसूलने की अनुमति दे राज्य
बैठक में टाटा पावर की तरफ से बताया गया कि आयातित कोयले की लागत काफी अधिक होने की वजह से उनकी 4,000 मेगावाट क्षमता की मुंद्रा टीपीएस की कोई भी इकाई काम नहीं कर रही है। जबकि उसके पास 10 लाख टन कोयला है जिससे एक महीने तक इकाई चल सकती है। उत्पादित बिजली की लागत और बिक्री मूल्य में 2.50 रुपये प्रति यूनिट के अंतर को देखते हुए कंपनी ने राज्य सरकार से कहा है कि उसकी लागत वसूलने की अनुमति दे।
कोयले की कीमत अधिकतम 90 डालर प्रति टन ही हो सकती है
एस्सार गुजरात ने बताया कि 1200 मेगावाट की उसकी इकाई अप्रैल, 2021 से बंद है। कोयला महंगा होना कारण है। कंपनी ने राज्य सरकार से आग्रह किया है कि अधिकतम कीमत पर बिजली बेचने की सीमा समाप्त की जाए ताकि वे अपनी लागत को वसूल सकें। उनके पीपीए के मुताबिक कोयले की कीमत अधिकतम 90 डालर प्रति टन ही हो सकती है। अगर राज्य सरकार उनकी मांग पर तैयार भी हो जाती है तो उन्हें प्लांट को नए सिरे से चलाने के लिए तीन हफ्ते का समय लगेगा।
पावर प्लांट की दो इकाइयां बंद
अदाणी समूह ने बताया कि लागत बढ़ने की वजह से मुंद्रा स्थित 4,650 मेगावाट के पावर प्लांट की दो इकाइयां बंद हैं। प्लांट के पास 1.5 लाख टन कोयला है। कोयले की दूसरी खेप भी उनके पास पहुंच रही है। इस प्लांट से बिजली की लागत अभी आठ रुपये प्रति यूनिट है। अदाणी समूह की उडिपी स्थित 1,200 मेगावाट क्षमता के प्लांट के पास अभी कोयले का कोई स्टाक नहीं है। 16 अक्टूबर को ही उनके पास कोयला पहुंचेगा और उसके बाद वो फैसला करेंगे।गुजरात चुनेगा यह विकल्प
इन मुद्दों के बारे में राज्यों से पूछा गया तो गुजरात सरकार ने बताया कि वे पीपीए के तहत निर्धारित बिजली की अधिकतम बिक्री मूल्य की सीमा खत्म करने पर विचार कर रही है। गुजरात का कहना है कि वह अपने यहां के प्लांट से उत्पादित बिजली को खुले बाजार में बेचने के बजाय ज्यादा मूल्य पर स्वयं खरीदने का विकल्प चुनेगा।हरियाणा सरकार भी इस बात के लिए तैयार है कि जो बिजली वह नहीं खरीद सकती है उसे खुले बाजार में बेचा जा सकता है। राजस्थान और महाराष्ट्र सरकार की तरफ से बताया गया कि वे भी पीपीए के जरिये ही बिजली खरीद का विकल्प चुनेंगे।पंजाब ने कहा है कि वो कंपनियों को बाहर बिजली बेचने की अनुमित देने को तैयार हैं बशर्ते पहले बिक्री का आफर राज्य सरकार को दिया जाना चाहिए।