सरकार ने संसद में दी ये अहम जानकारी, क्या जीएसटी के दायरे में आएगा पेट्रोल-डीजल,
वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने राज्यसभा को एक प्रश्न के लिखित उत्तर में कहा कि पेट्रोलियम उत्पादों पर उत्पाद शुल्क लगाने का मकसद संसाधन जुटाना है. यह संसाधन बुनियादी ढांच और विकास से जुड़े अन्य कार्यों पर खर्च होते हैं.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। माल एवं सेवा कर (जीएसटी) काउंसिल ने पेट्रोलियम उत्पादों को संशोधित कराधान व्यवस्था के तहत लाने की सिफारिश नहीं की है. हालांकि सरकार को पेट्रोल और डीजल को जीएसटी में शामिल करने के लिए कुछ प्रतिवेदन दिए गए हैं. यह जानकारी मंगलवार को संसद को दी गई. वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने राज्यसभा को एक प्रश्न के लिखित उत्तर में कहा कि पेट्रोलियम उत्पादों पर उत्पाद शुल्क लगाने का मकसद संसाधन जुटाना है. यह संसाधन बुनियादी ढांच और विकास से जुड़े अन्य कार्यों पर खर्च होते हैं.
मंत्री ने कहा कि शुल्क दरों में बदलाव अंतरराष्ट्रीय उत्पाद की कीमतों, विनिमय दर, टैक्स स्ट्रक्चर, मुद्रास्फीति और मौजूदा वित्तीय स्थिति को ध्यान में रखकर किया जाता है. उन्होंने कहा कि जीएसटी परिषद ने पेट्रोलियम उत्पादों को संशोधित कराधान व्यवस्था के तहत लाने की सिफारिश नहीं की है. हालांकि सरकार को पेट्रोल और डीजल को जीएसटी में शामिल करने के लिए कुछ प्रतिवेदन दिए गए हैं.
मंत्री ने कहा, पेट्रोल और डीजल को जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) के तहत लाने के लिए कुछ सुझाव प्राप्त हुए हैं. संविधान के अनुच्छेद 279 ए (5) में कहा गया है कि माल और सेवा कर काउंसिल उस तारीख की सिफारिश करेगी जिस पर कच्चे तेल, हाई स्पीड वाले डीजल, मोटर स्पिरिट (आमतौर पर पेट्रोल के रूप में जाना जाता है), प्राकृतिक गैस और एविएशन टर्बाइन फ्यूल (एटीएफ) पर जीएसटी लगाया जाएगा.
जीएसटी काउंसिल ने नहीं की सिफारिश
सीजीएसटी अधिनियम का हवाला देते हुए मंत्री ने कहा कि इन उत्पादों को जीएसटी में शामिल करने के लिए जीएसटी काउंसिल की सिफारिश की आवश्यकता होगी. चौधरी ने आगे कहा, अभी तक जीएसटी काउंसिल, जिसमें राज्यों का भी प्रतिनिधित्व है, ने इन वस्तुओं को जीएसटी के तहत शामिल करने की कोई सिफारिश नहीं की है.
उन्होंने कहा कि सरकार अंतर्राष्ट्रीय तेल की कीमतों को प्रभावित करने वाले कारकों पर कड़ी नजर रखती है और इन उत्पादों पर उत्पाद शुल्क दरों को जब भी आवश्यक हो, समायोजित करके हस्तक्षेप करती है.
सरकार ने उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए 4 नवंबर, 2021 से पेट्रोल पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क (उपकर सहित) में 5 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 10 रुपये प्रति लीटर की कमी की है.
सरकार को पेट्रोल-डीजल के GST में आने से नुकसान होगा?
पेट्रोल और डीजल के जीएसटी के दायरे में आने से राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार को भी नुकसान होगा. अगर तेल जीएसटी में आता है तो सबसे पहले राज्यों को भारी नुकसान झेलना पड़ेगा. अभी तक डीजल-पेट्रोल इसी वजह से जीएसटी के दायरे में नहीं आ पाया है, क्योंकि कोई भी राज्य अपना नुकसान नहीं कराना चाहता है.
राज्यों की अधिकतर आय डीजल-पेट्रोल पर लगाए जाने वाले टैक्स से ही होती है, इसलिए राज्य पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने का विरोध कर रहे हैं. इससे केंद्र सरकार को भी करीब 1 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होगा, जो जीडीपी के 0.4 फीसदी के बराबर है.
2019 में पेट्रोल पर टोटल एक्साइज ड्यूटी 19.98 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 15.83 रुपये प्रति लीटर था. सरकार ने पिछले साल दो बार एक्साइज ड्यूटी को बढ़ाया, जिसके चलते पेट्रोल पर यह बढ़कर 32.98 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 31.83 रुपये प्रति लीटर हो गया.
इस साल के बजट में पेट्रोल पर शुल्क को घटाकर 32.90 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 31.80 रुपये प्रति लीटर किया गया था. पिछले महीने पेट्रोल और डीजल की कीमतें अपने रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गईं, जिसके चलते पेट्रोल पर 5 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 10 रुपये प्रति लीटर की कटौती की गई.