वैज्ञानिकों की सलाह मानकर फायदे में रहेंगे किसान

फरवरी के अंतिम सप्ताह से मार्च के पहले सप्ताह तक कई कई महत्वपूर्ण फसलों (Crops) की बुवाई का उचित समय है.

Update: 2022-02-23 08:36 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क |  फरवरी के अंतिम सप्ताह से मार्च के पहले सप्ताह तक कई कई महत्वपूर्ण फसलों (Crops) की बुवाई का उचित समय है. समय से बुवाई करके किसान भाई-बहन अच्छा फायदा उठा सकते हैं. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा के वैज्ञानिकों ने किसानों (Farmers) को सलाह दी है कि इस मौसम में मूंग और उड़द की फसलों की मार्च में बुवाई के लिए किसान किसी प्रमाणित स्रोत से उन्नत बीजों (Seed) को खरीद लें. बुवाई से पूर्व बीजों को फसल विशेष राईजोबीयम तथा फास्फोरस सोलूबलाईजिंग बेक्टीरिया से अवश्य उपचार करें. इसकी प्रमुख किस्मों में मूंग–पूसा विशाल, पूसा बैसाखी, पीडीएम-11, एसएमएल-32, पंत उड़द-19, पंत उड़द-30, पंत उड़द-35 एवं पीडीयू-1 आदि शामिल हैं.

                         
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                                                                                                                                                                                                        इस सप्ताह तापमान बढ़ने की संभावना को देखते हुए किसानों को सलाह है कि भिंडी की अगेती बुवाई की तैयारी करें. इनकी प्रमुख किस्मों में ए-4, परबनी क्रांति, अर्का अनामिका आदि शामिल हैं. बुवाई से पहले खेतों में पर्याप्त नमी का ध्यान रखें. फ्रेंच बीन एवं गर्मी के मौसम वाली मूली इत्यादि की सीधी बुवाई के लिए वर्तमान तापमान अनुकूल है. क्योंकि बीजों के अंकुरण के लिए यह तापमान उपयुक्त हैं. मौसम को ध्यान में रखते हुए किसान टमाटर, मिर्च, कद्दूवर्गीय सब्जियों के तैयार पौधों की रोपाई इस सप्ताह कर सकते हैं.
फसलों में हल्की सिंचाई करने की सलाह
साप्ताहिक मौसम पर आधारित कृषि संबंधी यह सलाह 27 फरवरी तक के लिए जारी की गई है. फसलों की बुवाई और रोपाई की यह सलाह पूसा के कृषि भौतिकी संभाग के वैज्ञानिकों ने दी है. इस सप्ताह तापमान बढ़ने तथा तेज हवाएं चलने की संभावना को देखते हुए किसानों को सलाह है कि फसलों तथा सब्जियों (Vegetables) में आवश्यकतानुसार हल्की सिंचाई करें.
गेहूं की फसल में रोगों का रखें ध्यान
मौसम को ध्यान में रखते हुए गेहूं की फसल में रोगों, विशेषकर रतुआ की निगरानी करते रहें. काला, भूरा अथवा पीला रतुआ आने पर फसल में डाइथेन एम-45 (2.5 ग्राम/लीटर पानी) का छिड़काव करें. पीला रतुआ के लिये 10-20 डिग्री सेल्सियस तापमान उप्युक्त है. 25 डिग्री सेल्सियस तापमान से उपर रोग का फैलाव नहीं होता. भूरा रतुआ के लिए 15 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान के साथ नमी युक्त जलवायु आवश्यक है. काला रतुआ के लिये 20 डिग्री सेल्सियस से उपर तापमान ओर नमी रहित जलवायु आवश्यक है.
सब्जियों एवं सरसों में चेपा रोग
वर्तमान शुष्क तथा बढ़ते तापमान को ध्यान में रखते हुए किसान सभी सब्जियों तथा सरसों की फसल (Mustard Crop) में चेपा के आक्रमण की निगरानी करें. इस कीट के नियंत्रण के लिए वे सब्जियों में इमिडाक्लोप्रिड @ 0.25-0.5 मि.ली./लीटर पानी की दर से सब्जियों की तुडाई के बाद करें. सब्जियों की फसलों पर छिड़काव के बाद एक सप्ताह तक तुड़ाई न करें. बीज वाली सब्जियों पर चेपा के आक्रमण पर विशेष ध्यान दें. इस मौसम में प्याज की समय से बोयी गई फसल में थ्रिप्स के आक्रमण की निरंतर निगरानी करते रहें.
फल छेदक कीट से करें बचाव
इस मौसम में बैंगन की फसल को प्ररोह एवं फल छेदक कीट से बचाव हेतु ग्रसित फलों तथा प्रोरहों को इकट्ठा कर नष्ट कर दें. यदि कीट की संख्या अधिक हो तो स्पिनोसेड कीटनाशी 48 ई.सी. @ 1 मि.ली./ 4 लीटर पानी की दर से छिड़काव करें. इस मौसम में गेंदे में पूष्प सड़न रोग के आक्रमण की सम्भावना में वृद्धि हो जाती है, इसलिए किसान फसल की निगरानी करते रहें. यदि लक्षण दिखाई दें तो बाविस्टिन 1 ग्राम\लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें


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