नई दिल्ली: स्विस चैलेंज प्रक्रिया को नियंत्रित करने वाले मौजूदा नियम मूल बोली लगाने वालों के पक्ष में असंतुलित हैं, जिससे ऋणदाताओं का अधिकतम ऋण वसूली का उद्देश्य पूरा नहीं हो पाता है। यह स्विस चैलेंज प्रक्रिया से करीब से जुड़े विभिन्न बैंकिंग और उद्योग विशेषज्ञों की राय है।
स्विस चैलेंज में पहले कोई एक कंपनी अपनी ओर से प्रस्ताव पेश करती है। उसके बाद सरकार या ऋणदाता (अधिकतर मामलों में बैंक) प्रतिस्पर्द्धात्मक बोली आमंत्रित करने का विकल्प चुनते हैं जिसके लिए मूल प्रस्ताव देने वाले को भी आमंत्रित किया जाता है। मौजूदा नियमों की खामियों पर प्रकाश डालते हुए एक विश्लेषक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, मास्टर डायरेक्शन - भारतीय रिजर्व बैंक (ऋण एक्सपोजर का हस्तांतरण) दिशानिर्देश, 2021 द्वारा शासित मौजूदा नियमों में, मूल बोली लगाने वाले को स्विस चैलेंज प्रक्रिया में 'पहले इनकार का अधिकार' (आरओएफआर) के तहत असीमित अधिकार दिए गए हैं। उसके इनकार के बिना किसी और को विजेता घोषित नहीं किया जा सकता।
यह मूल बोली लगाने वाले के लिए प्रक्रिया शुरू होने से काफी पहले ही स्विस चैलेंज प्रक्रिया में अंतिम विजेता बनने की एक तरह की गारंटी है। यह स्विस चैलेंज प्रक्रिया में गंभीर संभावित बोलीदाताओं की भागीदारी को प्रतिबंधित करता है, क्योंकि वे जानते हैं कि असीमित आरओएफआर के साथ मूल बोलीदाता ही विजेता होगा जिससे अधिकतम ऋण वसूली का लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सकेगा।
विश्लेषक ने कहा कि यही मुख्य कारण है कि अतीत में बैंकों द्वारा आयोजित विभिन्न स्विस चैलेंज प्रक्रियाएं संभावित बोलीदाताओं से किसी भी प्रतिस्पर्धी बोली को आकर्षित करने में विफल रही हैं, जिससे उन्हें मूल बोलियों को विजेता बोलियों के रूप में स्वीकार करने के लिए मजबूर होना पड़ा। इससे तनावग्रस्त संपत्तियों में उनके बकाया ऋण का बड़ा हिस्से उन्हें बट्टे खाते में डालना पड़ेगा। विश्लेषक ने कहा, "स्विस चैलेंज प्रक्रिया के माध्यम से ऋणदाताओं को अधिकतम मूल्य प्राप्त करने के लिए इस खंड में संशोधन की आवश्यकता है।"
इस पर और विस्तार से बताते हुए उन्होंने कहा कि मूल बोली लगाने वाले को चुनौती देने वाली बोली से मिलान करने की अनुमति तभी दी जानी चाहिए, जब वह बोली उसकी मूल बोली से 10 प्रतिशत तक अधिक है। यदि अंतर 10 प्रतिशत से ज्यादा है, तो उच्चतम चुनौती वाली बोली विजेता बोली बन जानी चाहिए। इसी भावना को दोहराते हुए, एक अन्य बैंकर ने कहा कि ऋणदाताओं ने जेवर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा परियोजना के आवंटन के लिए अपनाई गई स्विस चैलेंज प्रक्रिया में इस फॉर्मूले को सफलतापूर्वक क्रियान्वित किया गया है। इस प्रक्रिया में, प्रमुख बोलीदाता दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा लिमिटेड (डायल) के पास पहले इनकार का अधिकार था, लेकिन उच्चतम चुनौती देने वाली बोली के 10 प्रतिशत की सीमा के भीतर। पहले इनकार के इस सीमित अधिकार ने अन्य बोलीदाताओं को चैलेंज प्रक्रिया में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया, जिसमें ज्यूरिख एयरपोर्ट इंटरनेशनल विजेता के रूप में उभरा।
एक अन्य विश्लेषक ने यह भी सुझाव दिया कि मूल बोली लगाने वाले को आधार बोली राशि का 25 प्रतिशत अग्रिम भुगतान के रूप में आधार बोली के साथ जमा करने के लिए भी कहा जाना चाहिए। साथ ही, ऋणदाताओं को सभी बोलीदाताओं को आधार बोली के आवश्यक तत्वों का सार्वजनिक रूप से खुलासा करके स्विस चैलेंज प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता लानी चाहिए।