चालू खाते का घाटा FY22 में बढ़ सकता है, 1.9 फीसदी रहने का अनुमान

देश में नवंबर के दौरान व्यापार घाटे के रिकॉर्ड 23.27 अरब डॉलर पर पहुंचने के बीच यह अनुमान बढ़ाया गया है. इससे पहले, बार्कलेज ने पहले चालू वित्त वर्ष के लिए 45 अरब डॉलर के सीएडी का अनुमान जताया था.

Update: 2021-12-03 05:45 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। विदेशी ब्रोकरेज कंपनी बार्कलेज ने भारत के लिये 2021-22 में करंट अकाउंट डेफिसिट (CAD) के अनुमान को बढ़ाकर 60 अरब अमेरिकी डॉलर कर दिया है, जो सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 1.9 फीसदी है. देश में नवंबर के दौरान व्यापार घाटे के रिकॉर्ड 23.27 अरब डॉलर पर पहुंचने के बीच यह अनुमान बढ़ाया गया है. इससे पहले, बार्कलेज ने पहले चालू वित्त वर्ष के लिए 45 अरब डॉलर के सीएडी का अनुमान जताया था. सरकारी आंकड़े के मुताबिक नवंबर, 2021 के दौरान निर्यात सालाना आधार पर 26.5 फीसदी बढ़कर 29.88 अरब अमेरिकी डॉलर रहा. वहीं आयात भी 57.2 फीसदी बढ़कर 53.15 अरब डॉलर पर पहुंच गया जिससे व्यापार घाटा 23.27 अरब डॉलर हो गया है.

बार्कलेज की रिपोर्ट के अनुसार देश का आयात और निर्यात के बीच अंतर यानी व्यापार घाटा बढ़ रहा है और अस्थिर बना हुआ है. ऐसा कमजोर निर्यात और घरेलू गतिविधियों में वृद्धि तथा जिंसों की ऊंची कीमतें के कारण हो रहा है.
2 फीसदी के करीब रह सकता है CAD
वहीं कच्चे तेल की कीमतों में हालिया सुधार से घाटे की प्रवृत्ति को हल्का समर्थन मिल सकता है. औसत आधार पर स्थायी व्यापारिक घाटा प्रति माह लगभग 16 से 17 अरब डॉलर का है, जिससे सीएडी 2 फीसदी के करीब रह सकता है.
रिपोर्ट में कहा गया कि वर्तमान स्थिति के आधार CAD सालाना आधार पर 3 फीसदी के करीब चल रहा है. छोटी अवधि में कुछ कटौती को ध्यान में रखते हुए हम अपने सीएडी पूर्वानुमान को बढ़ाकर 60 अरब डॉलर कर रहे हैं. यह जीडीपी का 1.9 प्रतिशत है. पहले यह अनुमान 45 अरब डॉलर का था.
क्या होता है चालू खाता का घाटा
करंट अकाउंट डेफिसिट किसी देश के व्यापार की माप है जहां आयात होने वाली वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य उसके द्वारा निर्यात की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य से अधिक हो जाता है. करंट अकाउंट किसी देश के विदेशी ट्रांजेक्शन का प्रतिनिधित्व करते हैं और कैपिटल अकाउंट की तरह किसी देश के भुगतान संतुलन का एक कंपोनेंट हैं.
इकोनॉमिस्ट के मुताबिक करंट अकाउंट डेफिसिट देश की कुल जीडीपी का 2.5 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए. करंट अकाउंट डेफिसिट जितना ज्यादा होगा, इसका मतलब है कि भारत को उतना ज्यादा पैसा विदेशों को चुकाना होगा.
भारत विदेशों से व्यापार डॉलर में करता है, तो भारत को ज्यादा डॉलर खर्च करने पड़ेंगे. भारत के पास निर्यात से मिला पैसा आयात की तुलना में कम है, तो भारत को अपने विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर खर्च करने पड़ेंगे और ये अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदायक है.
दूसरी तिमाही में 8.4% रही जीडीपी ग्रोथ
जुलाई-सितंबर तिमाही में देश की जीडीपी -7.4% से बढ़कर 8.4 फीसदी हो गई है. इससे पहले जून तिमाही में भारत की जीडीपी 20.1 फीसदी रही थी. 2021-22 में जीडीपी ऐट कॉन्स्टैंट प्राइसेज 35.73 लाख करोड़ रुपये रहा है. इससे पहले 2020-21 की दूसरी तिमाही में यह आंकड़ा 32.97 करोड़ रुपये पर रहा था.
जून तिमाही में भारत की अर्थव्यवस्था अब तक की सबसे तेज दर के साथ बढ़ी थी. इसमें एक साल पहले की रिकॉर्ड गिरावट की वजह से कम आधार वजह थी. इसके साथ मैन्युफैक्चरिंग और कंस्ट्रक्शन सेक्टर में भी रिकवरी आई थी.


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