जून के मुकाबले 23 फीसद तक सस्ता हुआ क्रूड

Update: 2022-11-25 09:54 GMT

मुंबई: अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो स्थिति बन रही है, वह संकेत दे रही है कि आने वाले दिनों में कच्चे तेल की कीमतों में और गिरावट का रुख हो सकता है। सबसे बड़ा कारण यह है कि वैश्विक मंदी के कारण अमेरिका, चीन समेत आर्थिक रूप से संपन्न देशों में मैन्युफैक्चरिंग गतिविधियां धीमी पड़ रही हैं। इससे क्रूड की मांग घटने के संकेत मिल रहे हैं। दूसरा कारण यह है कि 05 नवंबर 2022 से अमेरिका और उसके सहयोगी मित्र देशों द्वारा रूसी क्रूड की कीमतों पर एक सीमा तय की जानी है। यह सीमा कितनी होगी, इसका खुलासा अभी नहीं किया गया है, लेकिन बाजार में अनुमान है कि यह कीमत 70 डॉलर प्रति बैरल से नीचे रहेगी। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, अमेरिका और सऊदी अरब के बाद रूस तीसरा सबसे बड़ा वैश्विक तेल उत्पादक है। रूस वैश्विक तेल उत्पादन का 12 प्रतिशत है। ऐसे में ऊर्जा विश्लेषकों का मानना ​​है कि अन्य प्रमुख तेल उत्पादक देशों के लिए कीमत 70 डॉलर प्रति बैरल से बहुत अधिक रखना आसान नहीं होगा।

दुनिया के दो सबसे बड़े तेल खरीदार चीन और भारत ने पहले ही साफ कर दिया है कि वे रूस से तेल खरीदना जारी रखेंगे। जाहिर है देश के भीतर पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कमी आने की संभावना है। यह और बात है कि अगस्त, 2022 से कच्चे तेल की सस्ती खरीद के बावजूद आम जनता को राहत नहीं मिल सकी है. पेट्रोलियम मंत्रालय के आंकड़ों पर नजर डालें तो अगस्त से नवंबर 2022 तक भारतीय कंपनियों ने क्रमश: 97.40 डॉलर, 90.71 डॉलर, 91.70 डॉलर और 90.01 डॉलर प्रति बैरल की दर से क्रूड खरीदा है। तेल कंपनियों ने आखिरी बार 06 अप्रैल 2022 को क्रूड के दाम में बढ़ोतरी की थी, उस महीने में 102.97 डॉलर प्रति डॉलर की दर से क्रूड खरीदा गया था। हालांकि तेल कंपनियों को रोजाना के आधार पर कीमतें तय करने की छूट दी गई है, लेकिन पिछले दो सालों से देखा जा रहा है कि तेल कंपनियां कुछ महीनों तक कीमतें नहीं बढ़ातीं और फिर कुछ दिनों तक लगातार दाम बढ़ा देती हैं।

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