मोटे अनाज अब महीन से मुकाबले को तैयार

Update: 2022-12-28 05:11 GMT
लखनऊ (आईएएनएस)| अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष (2023) में मोटे अनाज (बाजरा, ज्वार, सावां, कोदो) अब महीन अनाजों (गेहूं एवं धान) से मुकाबले के लिए तैयार हैं। सब कुछ ठीक रहा तो मोटे कहकर जिन अनाजों को हमने उपेक्षित कर दिया था, वे कथित महीन अनाजों को मात देने में सफल भी रहेंगे। गेहूं एवं धान इनके सामने कहीं नहीं टिकते। ऊपर से सरकार इनको अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष की वजह से भरपूर संरक्षण भी दे रही है। इंटरनेशनल मिलेट्स ईयर (2023) के मद्देनजर मोदी एवं योगी सरकार मोटे अनाजों पर मेहरबान है। योगी सरकार पहले ही इन अनाजों को लोकप्रिय बनाने की कार्ययोजना तैयार कर चुकी है। पहली बार सरकार 18 जिलों में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर बाजरे की खरीद भी कर रही है।
केंद्र सरकार ने केंद्रीय पूल में मिलेट्स खरीद का लक्ष्य बढ़ा दिया है। 2021 का लक्ष्य 6.5 लाख टन था। 2022 के लिए इसे बढ़ाकर 13 लाख टन कर दिया गया। खरीफ सीजन में नवंबर तक लक्ष्य से अधिक खरीद हो चुकी थी। नेशनल फूड सिक्योरिटी मिशन (एनएफएसएम) के तहत देश के 14 प्रमुख मिलेट्स उत्पादक राज्यों के 212 जिलों में पोषक फूड मिशन योजना लागू की जाएगी। इस योजना के तहत मोटा अनाज उगाने वाले किसानों को बेहतर प्रजाति के बीज, खेती के उन्नत तौर तरीकों, फसल संरक्षण के उपाय, उत्पादन के भंडारण के उचित तरीकों और प्रसंस्करण के बारे में जानकारी दी जाएगी।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन-न्यूट्री सीरियल्स घटक में अलग फसलों के लिए यूपी के कुल 24 जिले शामिल हैं। मसलन ज्वार के लिए जिन 5 जिलों को चुना गया है उनमें बांदा, चित्रकूट, हमीरपुर, कानपुर देहात एवं कानपुर नगर शामिल हैं। बाजरा के लिए जिन 19 जिलों को चुना गया है उनमें आगरा, अलीगढ़, प्रयागराज, औरैया, बदायूं, बुलंदशहर, एटा, इटावा, फिरोजाबाद, गाजीपुर, हाथरस, जालौन, कानपुर देहात, कासगंज, मैनपुरी, मथुरा, मीरजापुर, प्रतापगढ़ एवं संभल शामिल हैं। सावां एवं कोदो के लिए एनएफएसए योजना के तहत सिर्फ एक जिला सोनभद्र को चुना गया है। केंद्र की इस योजना का लाभ इन जिले के किसानों को भी मिलेगा।
उल्लेखनीय है कि बाजरा एवं ज्वार भारत के दो प्रमुख मोटे अनाज हैं। भारत में तीन प्रमुख राजस्थान, उत्तर प्रदेश एवं महाराष्ट्र बाजरा उत्पादक राज्य हैं। रकबे के हिसाब से राजस्थान (43.48 लाख हेक्टेयर) के बाद उत्तर प्रदेश दूसरे नंबर (9.04 लाख हेक्टेयर) पर है। महाराष्ट्र में 6.88 लाख हेक्टेयर में बाजरे की खेती होती है। प्रति हेक्टेयर प्रति किग्रा उपज के लिहाज से उत्तर प्रदेश इन दो राज्यों से आगे हैं। उत्तर प्रदेश की उपज 2156 किग्रा है तो राजस्थान एवं महाराष्ट्र की उपज क्रमश: 1049 और 955 किग्रा प्रति हेक्टेयर है। इस लिहाज से उत्तर प्रदेश में रकबा और उपज दोनों बढ़ाने की खासी संभावना है। खासकर रकबा बढ़ाने की।
रही ज्वार की बात, तो भारत में महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, तमिलनाडु एवं उत्तर प्रदेश इसके प्रमुख उत्पादक राज्य हैं। रकबे के मामले में कर्नाटक एवं प्रति हेक्टेयर प्रति कुन्तल उपज के मामले में कर्नाटक नंबर एक पर है। उत्तर प्रदेश में इसमें भी रकबा और उपज बढ़ाने की खासी संभावनाएं हैं। योगी सरकार की मंशा भी यही है। इसलिए सरकार ने 20121 (1.71 लाख हेक्टेयर) की तुलना में 2023 में ज्वार के रकबे का आच्छादन क्षेत्र का लक्ष्य 2.24 लाख हेक्टेयर रखा है। इसी तरह लुप्तप्राय हो रहे सावां, कोदो के आच्छादन का लक्ष्य भी 2023 के लिए करीब दोगुना कर दिया है।
दरअसल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर भारत द्वारा 2018 में मिलेट वर्ष मनाने के बाद से ही योगी सरकार मोटे अनाजों को लोकप्रिय बनाने की पहल कर चुकी थी। नतीजतन इन फसलों का रकबा, उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि हुई है। इन नतीजों से उत्साहित होकर सरकार ने अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष के लिए खुद के सामने चुनौतीपूर्ण लक्ष्य भी रखा है। इसे हासिल करने के लिए क्लस्टर में खेती पर खास फोकस होगा।
उत्पादन में गुणवत्तापूर्ण बीज के महत्व के मद्देजर सरकार ने किसानों को बाजरा, ज्वार, कोदो एवं सावां के क्रमश: 5000, 7000 एवं 200-200 कुन्तल बीज उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा है। बोने वाले हर किसान को बेहतर बीज उपलब्ध कराने के साथ प्रगतिशील किसानों को प्रदर्शन के लिए नि:शुल्क मिनीकिट भी दिए जाएंगे। अधिक से अधिक किसान इनकी खेती करें इसके लिए इनकी खूबियों पर फोकस करते हुए आक्रामक अभियान (रोड शो, होडिर्ंग्स, वाल पेंटिग्स) भी चलाया जाएगा। राज्य, जिला एवं ब्लॉक स्तर पर राष्ट्रीय मिलेट्स दिवस, प्रमुख उत्पादक जिलों में एमएसपी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में मिलेट्स को बढ़ावा, समेकित बाल विकास एवं पुष्टाहार योजना एवं आश्रम पद्धति विद्यालयों में मिलेट्स को खाद्य पदार्थों में शामिल किया जाएगा। मूल्य संवर्धन के लिए बिस्कुट, बेकरी, केक, ब्रेड, नूडल्स एवं कुकीज आदि बनाने वाली इकाइयों की भी सरकार हर संभव मदद करेगी।
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