पेट्रोल-डीजल की ऊंची कीमतों की वजह से सरकार को लगातार आलोचना का शिकार होना पड़ रहा है. ऐसे में सरकार की कोशिश है कि पेट्रोल-डीजल पर निर्भरता को कम किया जाए. इसके लिए एथनॉल ब्लेंडिंग (ethanol blending) का काम चल रहा है. अब सरकार देश में जल्द फ्लेक्स फ्यूल (Flex Fuel) पेश करने की कोशिशों में जुटी हुई है. बताया जा रहा है कि इससे आम लोगों को महंगे पेट्रोल-डीजल से छुटकारा मिल जाएगा और वाहनों के लिए ईंधन 60 रुपये प्रति लीटर में मिलने लगेगा.
परिवहन मंत्री नितिन गड़करी (Nitin Gadkari) ने फ्लेक्स फ्यूल का मसौदा तैयार कर लिया है. उन्होने कुछ समय पहले बताया था कि सरकार ने पेट्रोल-डीजल की निर्भरता को कम करने के लिए नया तरीका ईजाद किया है. उन्होंने कहा कि सरकार फ्लेक्स फ्यूल इंजन (Flex Fuel Engine) को अगले कुछ महीनों में अनिवार्य करने जा रही है. ये नियम हर तरह के वाहनों के लिए बनाया जाएगा. सभी ऑटो कंपनियों को आदेश दिए जाएंगे कि वाहनों में फ्लेक्स फ्यूल इंजन का इस्तेमाल करें.
अब सवाल ये है कि ये फ्लेक्स फ्यूल क्या है? कुछ समय से फ्लेक्स फ्यूल कारों (Flex Fuel Cars) को लेकर लगातार चर्चा हो रही है. दरअसल, फ्लेक्स फ्यूल के जरिये आप अपनी कार को एथनॉल के साथ मिक्स्ड फ्यूल के जरिये दौड़ा सकते हैं. फ्लेक्स फ्यूल गैसोलीन और मेथनॉल या एथनॉल के मिश्रण से बना वैकल्पिक ईंधन है. एक फ्लेक्स इंजन मूल रूप से एक मानक पेट्रोल इंजन ही होता है. इसमें कुछ अतिरिक्त कंपोनेंट्स होते हैं, जो एक से ज्यादा ईंधन पर चलते हैं. ये इंजन इलेक्ट्रकिल व्हीकल के मुकाबले कम लागत में बन जाते हैं.
सरकार जल्द ही फ्लेक्स फ्यूल को लेकर दिशानिर्देशों की घोषणा कर सकती है. कार निर्माताओं को फ्लेक्स फ्यूल इंजन बनाने के लिए बाध्य किया जा सकता है. इसे इलेक्ट्रिकल व्हीकल के मुकाबले ज्यादा व्यवाहारिक भी माना जा रहा है. इसलिये मौजूदा फ्यूल पंपों पर पेट्रोल और डीजल के अलावा जैव ईंधन भी मिलेगा. बता दें कि बायो एथनॉल की लागत पेट्रोल के मुकाबले बहुत कम होती है. फ्लेक्स इंजन वाले व्हीकल्स बायो फ्यूल इंजन वाले वाहनों से काफी अलग होते हैं. बायो फ्यूल इंजन में अलग-अलग टैंक होते हैं. वहीं, फ्लेक्स फ्यूल इंजन में आप एक ही टैंक में कई तरह के फ्यूल डाल सकते हैं.