एयर इंडिया के निजीकरण की प्रक्रिया अंतिम चरण में प्रवेश कर रही है, बोलियों को बुधवार को खोला जा सकता
एयर इंडिया के निजीकरण की प्रक्रिया अंतिम चरण में प्रवेश कर रही है. इसके लिए बोलियों को बुधवार को खोला जा सकता है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। एयर इंडिया के निजीकरण की प्रक्रिया अंतिम चरण में प्रवेश कर रही है. इसके लिए बोलियों को बुधवार को खोला जा सकता है. इकॉनोमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार अक्टूबर के मध्य तक विजेता बोली लगाने वाले के नाम का एलान कर सकती है. रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों बोली लगाने वाले टाटा ग्रुप और स्पाइसजेट ने अभी इस मामले पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. सरकार ने एयर इंडिया, एयर इंडिया एक्सप्रेस में 100 फीसदी हिस्सेदारी, ग्राउंड हैंडलिंग कंपनी AISATS में 50 फीसदी हिस्सेदारी के लिए बोलियों को आमंत्रित किया था. केंद्र सरकार को इसके लिए टाटा ग्रुप और अजय सिंह से उनकी निजी क्षमता में बोली मिली थी.
एयर इंडिया की बिक्री सरकार के निजीकरण कार्यक्रम का अहम हिस्सा
एयर इंडिया की सेल मोदी सरकार के निजीकरण कार्यक्रम का एक मुख्य हिस्सा है और इसे गृह मंत्री अमित शाह की अगुवाई वाली मिनीस्टीरियल कमेटी निगरानी कर रही है. इससे पहले साल 2018 में एयरलाइन में 76 फीसदी हिस्सेदारी बेचने की कोशिश की गई थी. लेकिन उस समय कंपनी को कोई लेने वाले नहीं मिले थे क्योंकि सरकार की योजना एयर इंडिया का निजीकरण करने के बाद भी 26 फीसदी हिस्सेदारी को बनाए रखने की थी.
मौजूदा प्रस्ताव के मुताबिक, एयर इंडिया को निजी मालिक को 23 हजार करोड़ रुपये के कर्ज के साथ ट्रांसफर करना होगा. प्रस्ताव में बाकी बचे कर्ज को सरकार के स्वामित्व वाली एयर इंडिया एसेट होल्डिंग्स लिमिटेड (AIAHL) को ट्रांसफर करने की बात कही गई है. AIAHL एक नई कंपनी है, जिसके तहत एयरलाइंस के एसेट्स रहेंगे जैसे मुंबई में स्थित एयर इंडिया बिल्डिंग, दिल्ली में स्थित एयरलाइंस हाउस, दिल्ली के कनॉट प्लेस में स्थित 4 एकड़ क्षेत्र का प्लॉट और दिल्ली, मुंबई और दूसरे शहरों में हाउसिंग सोसायटीज की प्रॉपर्टीज आएंगी.
2007 में शुरू हुआ एयर इंडिया का बुरा दौर
आपको बता दें कि एयर इंडिया का संचालन निजी हाथों में सौंपे जाने का विचार काफी पहले से रहा है. पहले भी इसके निजीकरण की कोशिश की गई है. साल 2000-2001 के दौरान इसका संचालन निजी कंपनी को दिए जाने का विचार किया गया था. तब देश में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी. लेकिन उस समय कई वजहों से बात नहीं बन पाई. फिर साल 2007 में जब एयर इंडिया में इंडियन एयरलाइंस का विलय कर दिया गया, तब से एयर इंडिया का बुरा दौर शुरू हो गया. वित्तीय वर्ष 2006-07 में दोनों कंपनियों का कुल घाटा करीब 7.7 अरब रुपये था, जो 2009 में बढ़कर 72 अरब रुपये तक जा पहुंचा.
घाटे में चल रही एयर इंडिया को उस समय की यूपीए सरकार ने बेल आउट पैकेज देकर बचाने की कोशिश की, लेकिन कामयाब नहीं हो पाई. एयर इंडिया का बुरा दौर जारी रहा. फिर 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में फिर से एनडीए की सरकार बनी तो इस दौरान सार्वजनिक क्षेत्र की इस एयरलाइन्स के उद्धार के लिए योजनाएं बनाई जानी लगी. साल 2017 में सरकार ने इसके निजीकरण की रूपरेखा तैयार की. केंद्र सरकार ने मार्च 2018 में एयर इंडिया के लिए कंपनियों से EOI यानी एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट मंगवाए. हालांकि तब भी किसी ने इस ओर रुचि नहीं दिखाई और ये कोशिश भी लगभग नाकाम रही.