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इस्लामिक स्टेट के हमलों के कारण अफगानी सिख व हिंदू छोड़ रहे हैं अपने जन्मस्थान, बचे महज 700

Tara Tandi
27 Sep 2020 3:39 PM GMT
इस्लामिक स्टेट के हमलों के कारण अफगानी सिख व हिंदू छोड़ रहे हैं अपने जन्मस्थान, बचे महज 700
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लगातार बढ़ रहे इस्लामिक स्टेट के खतरे के कारण अफगानी सिख और हिंदू अपने जन्मस्थान को छोड़ रहे हैं। कभी हिंदू और सिख अफगान समाज का समृद्धि हुआ करता था लेकिन आज मुट्ठीभर ही बचे हैं।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| लगातार बढ़ रहे इस्लामिक स्टेट के खतरे के कारण अफगानी सिख और हिंदू अपने जन्मस्थान को छोड़ रहे हैं। कभी हिंदू और सिख अफगान समाज का समृद्धि हुआ करता था लेकिन आज मुट्ठीभर ही बचे हैं। अफगानिस्तान में कभी दो लाख 25 हजार हिंदू और सिख परिवार थे। अब 700 रह गए हैं।

बहुसंख्यक मुस्लिम देश में गहरे भेदभाव के कारण समुदाय की संख्या में वर्षों से कमी आ रही है। अफगानिस्तान के सिख और हिंदू अक्सर इस तरह के हमलों से दो-चार हो रहे हैं। तेजी से कट्टर इस्लामिक होते जा रहे अफगानिस्तान में इस तरह के हमले आम हो रहे हैं और अल्पसंख्यकों की मुश्किलें बढ़ रही हैं।

अपने जन्मस्थान को छोड़ने को लेकर वहां के छोटे समुदाय के एक सदस्य हमदर्द ने कहा, 'हम अब यहां नहीं रह पा रहे हैं।' हमदर्द ने कहा कि उसकी बहन, भतीजों और दामाद सहित उसके सात रिश्तेदारों को इस्लामिक स्टेट के बंदूकधारियों ने मार्च में समुदाय के मंदिर पर हमले में मार दिया था, जिसमें 25 सिख मारे गए थे।

गौरतलब है कि तालिबान ने 1996 और 2001 के बीच अफगानिस्तान पर शासन किया। हालांकि सत्ता से बेदखली और विद्रोह शुरू करने से पहले तालिबान ने देश में सख्त इस्लामिक शरिया कानून लागू किया। तब सार्वजनिक तौर पर लोगों को कत्ल किया जाता था। लड़कियों के स्कूल जाने पर पाबंदी थी। हिंदुओं और सिखों पर भी सख्ती थी। उन्हें पीले पट्टे पहनने पड़ते थे ताकि उन्हें पहचाना जा सके।

तालिबान ने सत्ता पर काबिज होते ही शरिया और इस्लामिक कानून को सख्ती से लागू किया। संगीत, टीवी और पतंग उड़ाने जैसे कार्यो पर प्रतिबंध लगा दिया गया। लड़कियों के स्कूल बंद कर दिए गए, जबकि महिलाओं को काम करने से रोक दिया गया। साथ ही बेहद सख्त और क्रूर सजाएं दी गई।

इसी साल मार्च के महीने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में एक गुरुद्वारे पर आतंकवादी हमला हुआ था। हमले के समय गुरुद्वारे में तकरीबन 150 लोग मौजूद थे। इनमें कई बच्चे भी थे। हमले में कम-से-कम 25 लोग मारे गए थे। इस्लामिक स्टेट ने इस हमले की जिम्मेदारी ली थी। दो साल पहले एक आत्मघाती हमलावर ने राष्ट्रपति अशरफ घनी से मिलने जा रहे सिखों और हिंदुओं के काफिले को निशाना बनाया था और जलालाबाद में 19 लोगों की मौत हो गई थी। मारे गए लोगों में 10 सिख और सात हिंदू थे।

हाल ही में अफगानिस्तान में गुरुद्वारे पर हमले के बाद 180 सिख परिवारों का एक जत्था दिल्ली पहुंचा था। इससे पहले अगस्त में 176 अफगान सिखों और हिंदुओं का एक समूह विशेष वीजा पर भारत आया था। बता दें कि अफगानिस्तान में सिख और हिंदू की स्थिति काफी दयनीय हो गई है। लोगों का दिन डर और अकेलेपन के साथ गुजरता है। अगर आप मुसलमान नहीं हैं, तो उनकी नजरों में आप इन्सान नहीं हैं।

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