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शी जिनपिंग या शहबाज शरीफ से मिलेंगे पीएम मोदी? चीन सीमा विवाद की गुत्‍थी सुलझेगी?

Neha Dani
12 Sep 2022 7:23 AM GMT
शी जिनपिंग या शहबाज शरीफ से मिलेंगे पीएम मोदी? चीन सीमा विवाद की गुत्‍थी सुलझेगी?
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यह पूरी दुनिया के लिए चिंता का सबब बना हुआ है।

रूस यूक्रेन जंग के बाद पहली बार रूसी राष्‍ट्रपति ब्‍लादिमीर पुतिन, चीनी राष्‍ट्रपति शी चिनफ‍िंग और पाकिस्‍तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक मंच साझा करेंगे। खास बात यह है पीएम मोदी, चिनफ‍िंग और शाहबाज ऐसे समय एक मंच साझा कर रहे हैं, जब दोनों देशों के साथ भारत के बेहतर संबंध नहीं है। सीमा विवाद को लेकर चीन के साथ संबंध तनाव के चरम पर है, वहीं आतंकवाद को लेकर पाकिस्‍तान के संबंधों में कटुता बनी हुई है। ऐसे में तीनों नेताओं का एक साथ मंच साझा करने के क्‍या निहितार्थ हैं। राजनीतिक विशेषज्ञ इस कूटनीतिक मुलाकात को किस रूप में ले रहे हैं। क्‍या चीन और पाकिस्‍तान के रिश्‍तों में नरमी आएगी? क्‍या चीनी राष्‍ट्रपति सीमा विवाद पर चर्चा करने को तैयार होंगे? इसके साथ यह मोदी और पुतिन के साथ होने वाली वार्ता भी काफी अहम मानी जा रही है। दोनों नेताओं की मुलाकात ऐसे समय हो रही है जब यूक्रेन जंग खत्‍म करने के सभी कूटनीतिक पहल निराशाजनक रही है।


1- कूटनीतिक लिहाज से तीनों नेताओं का एक मंच पर आना कितना उपयोगी है? विदेश मामलों के जानकार प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि चीनी राष्‍ट्रपति च‍िनफ‍िंग और शाहबाज के साथ भारतीय पीएम मोदी का मंच साझा करना काफी अहम है। कूटनीतिक दृष्टि से इसके बड़े मायने हैं। खासकर भारतीय विदेश नीति के लिहाज से यह बेहद उपयोगी है। एक बार फ‍िर भारत ने यह दिखा दिया है कि उसकी विदेश नीति के कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं है। उन्‍होंने कहा कि यह भारत की तटस्‍थ विदेश नीति की ताकत है। उन्‍होंने कहा कि ऐसे कई मौके आए हैं, जब भारत ने अपनी तटस्‍थ विदेश नीति के बल पर अपने हितों को साधा है और पूरी दुनिया से इसका लोहा मनवाया है। प्रो पंत ने कहा भारत ने यह दिखा दिया है कि अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी के साथ वह उसके विरोधी मुल्‍कों के साथ अपने तटस्‍थ संबंधों का संचालन करता है।
2- क्‍या चीन के साथ सीमा विवाद के गतिरोध में कमी आएगी। इस सवाल के उत्‍तर में उन्‍होंने कहा कि इस बात की संभावना बेहद कम है। उन्‍होंने कहा कि यह मंच इस लिहाज से अहम है कि दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण संबंधों के बावजूद द्वि‍पक्षीय संबंधों के लिए आगे आ रहे हैं। भारत की नीति यह दर्शाती है कि वह अपने विवादित मुद्दों को परस्‍पर वार्ता के जरिए ही सुलझाना चाहता है। वह सीमा विवाद के लिए किसी अन्‍य देश के हस्‍तक्षेप या जंग का हिमायती नहीं है।

3- क्‍या पाकिस्‍तान प्रायोजित आंतकवाद में कोई कमी के संकेत हैं? देखिए, इस इस बैठक में आतंकवाद एक मुद्दा जरूर है, लेकिन पाकिस्‍तान का भारत के प्रति कोई बदलाव आएगा ऐसी संभावना न्‍यून है। अगर कूटनीतिक रूप से देखा जाए तो अलबत्‍ता, इस बैठक और मुलाकात से दोनों देशों के बीच युद्ध जैसे हालात और तनाव को सीमित करना है।

4- चीन, रूस और पाकिस्‍तान के साथ मंच साझा करने पर अमेरिका की क्‍या प्रतिक्रिया होगी? प्रो पंत ने कहा कि यूक्रेन युद्ध और ताइवान-चीन विवाद के बाद ड्रैगन और रूस से अमेरिका के संबंध सबसे खराब दौर से गुजर रहे हैं। रूस यूक्रेन जंग को लेकर दुनिया करीब-करीब दो भागों में बंट गई है। अमेरिका समेत पश्चिमी देश रूस के खिलाफ हैं। अमेरिका ने रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगा रखा है। उधर, नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा के बाद चीन और अमेरिका के बीच जंग जैसे हालात हैं। ऐसे में भारत की स्थिति थोड़ी अलग है। वह अमेरिका का रणनीतिक साझेदार और क्‍वाड का सदस्‍य भी है। इस क्‍वाड का अमेरिका भी सदस्‍य है। दूसरी तरफ, रूस से भारत का पुराना नाता है। भारत ने कभी भी अपनी इस दोस्‍ती में किसी को आड़े नहीं आने दिया। भारतीय विदेश नीति की यह खूबी रही है कि वह अमेरिका और रूस के साथ अलग-अलग तरह से अपने संबंधों का निर्वाह करती है। अब अमेरिका भी भारत की तटस्‍थता नीति को समझता है। इतना ही उसने कई मौकों पर भारत की तटस्‍थता नीति के पक्ष में अपना रुख रखा है।

5- क्‍या मोदी यूक्रेन जंग को खत्‍म करने की कूटनीतिक पहल करेंगे? प्रो पंत ने कहा रूस यूक्रेन जंग जिस मोड़ पर पहुंच गई है, इसकी कूटनीतिक समाधान की संभावना कम ही दिखती है। अब रूस यूक्रेन को खुद ही वार्ता के जरिए इस युद्ध को खत्‍म करने की पहल करनी होगी। वैसे भी दोनों देशों के बीच चल रही जंग में भारत ने अब तक तटस्‍थता की नीति को अपनाया है। उन्‍होंने कहा कि भारत इस दिशा में कोई पहल करेगा, इसकी संभावना कम ही दिखती है। अलबत्‍ता युद्ध से उपजे हालात पर चर्चा जरूर हो सकती है। यह पूरी दुनिया के लिए चिंता का सबब बना हुआ है।

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