तुर्की और सीरिया भूकंप - तुर्की और सीरिया में आए विनाशकारी भूकंप ने जहां एक तरफ 30,000 से ज्यादा लोगों की जान ले ली है. वहीं कई लोगों ने अपना आशियाना खो दिया है. कई लोगों के सर से छत गायब हो गई है तो कई लोग खाने को तरस रहे हैं. हालांकि कुछ लोगों को राहत शिविरों में जगह मिली है. लेकिन कुछ लोग कड़ाके की ठंड में सड़क पर सोने को मजबूर हैं, जाहिर है कि लोगों के घर मलबे में बदल गए हैं. अभी भी मलबों से लाशों के साथ-साथ जिंदा बचे लोगों को निकाला जा रहा है.
पिछले सोमवार को आए 7.8 तीव्रता के भूकंप से तबाह हुए परिवारों का कहना है कि वे जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. तुर्की की आपदा राहत शाखा द्वारा देश में कई जगहों पर राहत शिविर लगाया गया है. लेकिन हालात ऐसे हैं कि लोगों को जिंदा रहने के लिए भोजन, पानी, हीटिंग या बुनियादी सुविधाएं नसीब नहीं हो रही है.
फारिस नाम के 20 साल का सैनिक जो अंताक्य शहर से निकल गया था ने कहा कि, 'यहां हमारे लिए खाने के लिए कुछ भी नहीं है. ना कोई गैस है, ना कोई हीटिंग सिस्टम, बिजली तो दूर की बात है. हमारे पास पैसा भी नहीं है और कार्ड का तो पता ही नहीं है.' बता दें कि सोमवार के भूकंप से प्रभावित क्षेत्रों में अनुमानित 1.3 करोड़ से ज्यादा लोग रहते हैं, जिनमें 2 लाख शरणार्थी शामिल हैं, जो मुख्य रूप से सीरिया से हैं.
भूकंप में हजारों इमारतें नष्ट हो गई हैं. जो लोग बचे हैं उनमें से कई अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. इन शिविरों में कई सैकड़ों लोग गजियांटेप और हटे शहरों के आसपास के गांवों से हैं. नूर्दगी, इस्लाहिये और पजारसिक जैसे गांवों में सड़कें और मोहल्ले मलबे में तब्दील हो गए हैं.
नूरदगी में ओज़गुर नाम के एक बचावकर्मी का कहना है कि उनकी टीम को अब मलबे के नीचे किसी के जीवित होने की उम्मीद नहीं है. वह अपने सामने एक छह मंजिला इमारत की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, 'वहां 30 से 40 लोग हैं, लेकिन उनमें से कोई भी जिंदा बाहर नहीं आने वाला है.'
वहीं राहत कैंप में लोग अलग तरह के खतरा का सामना कर रहे हैं. तुर्की की आपदा और आपातकालीन राहत शाखा द्वारा स्थापित टेंटों में काफी भीड़ है. कई परिवार के लोग जमीन पर फोम के गद्दे पर सो रहे हैं. कई भूकंप के समय पहने हुए कपड़ों में लिपटे हुए हैं. और कईयों ने दान किए हुए कपड़े पहन रखे हैं. एक ही कंबलों में मां, बेटी, भाई और पिता गर्म रहने के लिए आपस में चिपके हुए हैं. इनके पास दूसरा कंबल नहीं है.
फारिस, जो बुधवार से शिविर में हैं का कहना है कि उन्होंने तब से खाना नहीं खाया है. वे कहते हैं 'हम पूरी सुबह लाइन में इंतजार करते हैं और दोपहर के बाद नंबर आने पर खाना खत्म हो जाता है. फारिस का कहना है कि उनका परिवार बमुश्किल ही लाइनों में लगकर बाथरूम तक पहुंच पाता है. भीड़ इतनी है कि लोगों को बाथरूम जाने के लिए घंटो इंतजार करना पड़ रहा है.
वह और उसकी मां, तीन बहनें, भाई और बहनोई सभी की आंखों के नीचे गहरे बैंगनी घेरे हैं. इसके अलावा उनपर मलबा गिरने से बने घाव के निशान साफ दिख रहे हैं. यहां तक की उनके पैरों में जूते भी नहीं हैं. उन्हें मलबे के ढेर से नंगे पांव निकाला गया था. कड़ाके की ठंड के कारण उनका पांव लाल हो चुका है, मानों बस खून उनके पांव से निकलने वाला है.
भूख और ठंड ने राहत शिविर में रह रहे लोगों का हाल बेहाल कर दिया है. कैंपों में लोगों के चेहरों पर मायूसी साफ दिख रही है. एक अदद रोटी के लिए घंटो का इंतजार करना लोगों के लिए कठिन होता जा रहा है. बच्चों के माता-पिता की चिंता है कि इसी तरह के हालात रहे तो भूकंप से बचने के बाद भी वह अपने बच्चों को कब तक जीवित रख पाएंगे