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फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की यह बैठक दो दिनों तक चलेगी. जून में ही संस्था ने "ज्यादा निगरानी" की जरूरत वाले देशों की 'ग्रे' सूची से पाकिस्तान को नहीं हटाने का फैसला किया था. उम्मीद की जा रही है कि इस बैठक में एक बार फिर पाकिस्तान की स्थिति की समीक्षा की जाएगी.
सितंबर में पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने बताया था कि संस्था की एक टीम ने पाकिस्तान का एक "सफल" दौरा किया था और पाकिस्तान अक्टूबर में मूल्यांकन प्रक्रिया के एक "तर्कसंगत अंत" की उम्मीद कर रहा है.
पाकिस्तान के लिए इसके क्या मायने हैं
पाकिस्तान को इस सूची में 2018 में "रणनीतिक आतंकवाद विरोधी फाइनेंसिंग संबंधी" कमियों के लिए डाला गया था. एफएटीएफ ने पाकिस्तान को एक व्यापक सुधार कार्यक्रम दिया था.
अगर अब इस सूची से पाकिस्तान को हटा दिया गया तो आवश्यक रूप से देश को प्रतिष्ठा मिलेगी और आतंकी फंडिंग के मोर्चे पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय से सराहना.
अर्थशास्त्री और सिटीग्रुप के पूर्व बैंकर युसूफ नजर का मानना है कि इसका पाकिस्तान की लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था पर तो कोई असर नहीं पड़ेगा लेकिन इससे पाकिस्तान से संबंधित हर वैश्विक लेनदेन की जांच में जरूर कमी आएगी.
अनुपालन में असफलता और धन शोधन विरोधी उल्लंघनों के लिए दो बड़े पाकिस्तानी बैंकों एचबीएल और नेशनल बैंक ऑफ पाकिस्तान को 2017 में 22.5 करोड़ डॉलर और 2022 में 5.5 करोड़ डॉलर जुर्माना भरना पड़ा था.
सूची में डाले जाने के बाद मूडीज ने पाकिस्तान की सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग भी कम कर दी थी. सूची से हटाए जाने से विदेशी निवेश के दृष्टिकोण से भी माहौल बदलेगा.
पाकिस्तान के लिए क्या है दांव पर
एफएटीएफ का कहना है कि "ग्रे" सूची में डाले जाने का मतलब वित्तीय संस्थानों द्वारा कोई अतिरिक्त मूल्यांकन नहीं होता है, लेकिन संस्था इस बात पर जोर जरूर देती है कि ऐसे देशों के साथ काम करने में इससे जुड़े जोखिम पर जरूर विचार कर लेना चाहिए.
एफएटीएफ अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं को कह सकती है कि उल्लंघन करने वाले देशों के साथ सहयोग और उन देशों में अपनी गतिविधियां बंद कर दें. अगर किसी देश को "ग्रे" सूची से "ब्लैक" सूची या "ज्यादा जोखिम" वाली सूची में डाल दिया जाता है तो संस्था दूसरी सरकारों को इन देशों पर वित्तीय प्रतिबंध लगाने के लिए भी कह सकती है.
"ब्लैक लिस्ट" पर इस समय दो ही देश हैं: ईरान और उत्तर कोरिया. कुछ सालों पहले माना जा रहा रहा था कि पाकिस्तान भी "ब्लैक लिस्ट" में डाले जाने के करीब है.
सुधार कार्यक्रम में क्या था
सूची से हटा दिया जाना एक चार साल पुरानी सुधार प्रक्रिया का अंत होगा. इस प्रक्रिया के तहत पाकिस्तान की वित्तीय प्रणाली में गहरे बदलाव लाए गए, जिनमें विशेष रूप से धन शोधन और आतंकवादी के वित्त पोषण संबंधी कानून शामिल हैं.
एफएटीएफ में पाकिस्तान को 2018 में एक कार्य योजना दी थी. इसका उद्देश्य था कानून बना कर और कानूनी संस्थाओं और वित्तीय संस्थानों के बीच संयोजन का पुनर्गठन कर रणनीतिक आतंकवाद विरोधी फाइनेंसिंग संबंधी कमियों को संबोधित करना था.
एफएटीएफ का अब मानना है कि पाकिस्तान ने उसकी कार्य योजना में एक छोड़ कर सभी शर्तों को पूरा कर लिया है. बची शर्त है संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित आतंकी संगठनों के उच्च नेताओं के खिलाफ जांच और अभियोजन साबित करना.
आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई
वॉशिंगटन स्थित विल्सन सेंटर थिंक टैंक के साउथ एशिया इंस्टीट्यूट के निदेशक माइकल कुगल्मैन ने कहा, "हाल ही के महीनों में जब पाकिस्तान ने लश्कर-ए-तैयबा के दो सबसे बड़े आतंकवादी - हाफिज सईद और साजिद मीर के खिलाफ नई सजा का एलान किया था, इसी के बाद अंत में उसकी बात बन पाई. लश्कर एफएटीएफ के लिए सबसे महत्वपूर्ण आतंकी समूहों में से है."
इन दोनों पर भारत में हुए 2008 के मुंबई हमलों में शामिल होने का आरोप है. इन हमलों में 160 से ज्यादा लोग मारे गए थे.
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