अमेरिका की स्पेस एजेंसी NASA ने करीब आधी सदी के बाद चंद्रमा पर अपना पहला मिशन सफलतापूर्वक लॉन्च कर दिया। हालांकि मिशन की लॉन्चिंग से पहले कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा, लेकिन आखिरकार सब ठीक रहा। Artemis 1 मिशन के जरिए NASA चांद पर Orion Spaceship को भेज रहा है। ओरियॉन स्पेसशिप 42 दिनों में चंद्रमा का चक्कर लगाकर वापस आ जाएगा। स्पेस मिशन की लॉन्चिंग से ठीक पहले नासा को अपने 'न्यू मून रॉकेट' में फ्यूल डालते समय नए रिसाव का पता चला।
प्रोजोक्ट अपोलो का अगला चरण है यह मिशन
यदि 3 हफ्ते की टेस्ट फ्लाइट सफल हुई तो रॉकेट चालक दल के एक खाली कैप्सूल को चंद्रमा के चारों ओर एक चौड़ी कक्षा में ले जाएगा और फिर कैप्सूल दिसंबर में प्रशांत क्षेत्र में पृथ्वी पर वापस आ जाएगा। कई साल की देरी और अरबों से ज्यादा की लागत लगने के बाद, स्पेस लॉन्चिंग सिस्टम रॉकेट ने कैनेडी स्पेस सेंटर से उड़ान भरी। ओरियन कैप्सूल को रॉकेट के टॉप पर रखा गया था, जो उड़ान के 2 घंटे से भी कम समय में पृथ्वी की कक्षा से निकलकर चंद्रमा की ओर जाने के लिए तैयार था। यह मिशन अमेरिका के प्रोजेक्ट अपोलो का अगला फेज है।
2025 तक आम आदमी भी चांद पर जाएंगे
प्रोजेक्ट Apollo में 1969 से 1972 के बीच 12 अंतरिक्षयात्रियों ने चंद्रमा पर चहलकदमी की थी। इस लॉन्चिंग को NASA के आर्टेमिस मिशन की शुरुआत मानी जा रही है। यह नाम पौराणिक मान्यता के अनुसार अपोलो की जुड़वां बहन के नाम पर रखा गया है। नासा का उद्देश्य 2024 में अगली उड़ान में चंद्रमा के आसपास अपने चार अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने का और फिर 2025 में आम लोगों को वहां उतारने का है। नासा चंद्रमा पर एक बेस बनाना चाहता है और 2030 एवं 2040 के दशक के अंत तक मंगल पर अंतरिक्षयात्रियों को भेजना चाहता है। नासा ने अपोलो के चंद्र लैंडर की तरह 21वीं सदी में स्टारशिप विकसित करने के लिए एलन मस्क के स्पेसएक्स को किराये पर लिया है।
3 बार टालनी पड़ी थी लॉन्चिंग
बता दें कि चंद्रमा के चक्कर लगाने के लिए एक खाली 'कैप्सूल' को भेजने की एजेंसी की यह तीसरी कोशिश थी। हालांकि कुछ ही घंटों में सब ठीक हो गया और मिशन लॉन्च हो गया। इससे पहले गर्मियों में 2 बार लीकेज के कारण और बाद में फिर तूफान की वजह से लॉन्चिंग को टालना पड़ा था। NASA के इंजीनियरों ने कभी यह नहीं बताया कि हाइड्रोजन फ्यूल के लीकेज की वजह क्या है। हालांकि, उन्होंने लीकेज को कम करने के लिए फ्यूल भरने की प्रक्रिया में बदलाव किए और भरोसा जताया कि 322 फीट (98 मीटर) लंबे रॉकेट के सभी सिस्टम ठीक से काम करेंगे।
'वॉल्व को कसने के लिए पैड पर भेजा गया'
NASA ने फ्यूल लाइंस पर दबाव कम करने और 'सील' को मजबूत बनाए रखने के लिए फ्यूल भरने में लगने वाले समय को करीब एक घंटे बढ़ा दिया। इसके बाद ऐसा लगा कि यह कदम कारगर साबित हो रहा है, लेकिन 6 घंटे की प्रक्रिया के खत्म होते-होते, रुक-रुककर हाइड्रोजन का रिसाव शुरू हो गया। इसके मद्देनजर लॉन्चिंग टीम ने कर्मियों को एक वॉल्व को कसने के लिए 'पैड' पर भेजने का फैसला किया, क्योंकि रॉकेट के चंद्रमा की तरफ उड़ान भरने की उलटी गिनती शुरू हो चुकी थी।
1972 में बंद कर दिया गया था अपोलो प्रोग्राम
अधिकारियों ने कहा कि वाल्व 'लॉन्च प्लेटफॉर्म' का हिस्सा था, रॉकेट का नहीं। जब आखिरी रिसाव का पता चला, तब रॉकेट में लगभग 10 लाख गैलन (37 लाख लीटर) सुपर-कोल्ड हाइड्रोजन और ऑक्सीजन भरा जा चुका था। 'स्पेस लॉन्च सिस्टम रॉकेट' SLS नासा द्वारा बनाया गया अब तक का सबसे शक्तिशाली रॉकेट है। इस मिशन के तहत अंतरिक्ष यात्री 2024 में अगले मिशन के लिए तैयारी करेंगे और 2025 में 2 लोग चंद्रमा पर जाएंगे। NASA ने आखिरी बार दिसंबर 1972 में चंद्रमा पर अंतरिक्ष यात्री भेजे थे और फिर 'अपोलो कार्यक्रम' (चंद्र मिशन) को बंद कर दिया गया था।