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ताइवान विवाद का फिलहाल सुलझ पाना नामुमकिन है। इसकी एक बड़ी वजह चीन का अडि़यल रवैया है।
अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की स्पीकर नैसी पेलोसी के ताइवान दौरे के बाद से चीन के साथ उसका तनाव बढ़ता जा रहा है। चीन लगातार इस लगाई के में अपना सैन्य अभ्यास कर रहा है। इसका एकमात्र मकसद ताइवान को डराना है। ताइवान चीन से हारे हुए लोगों का घर है। वर्षों पहले हार के बाद जो लोग इस द्वीप पर आकर बसे उन्होंने ही इसको शक्तिशाली और समृद्ध बनाया था। चीन और ताइवान के बीच विवाद भी तभी से ही है।
चीन की विस्तारवादी नीति हमेशा से वहां की सरकारों पर हावी रही है। विवादों के बीच ताइवान और चीन के बीच खींची गई एक काल्पनिक रेखा मैंड्रिन लाइन इन दोनों को अलग करती है। इस लाइन को वर्ष 1955 में एक अमेरिकी एयर फोस के जनरल बेंजामिन ओ डेविस जूनियर ने खींची थी। बेंजामिन ने दूसरे विश्व युद्ध के अलावा वियतनाम युद्ध, कोरियाई युद्ध और दूसरे ताइवान स्ट्रेट विवाद में अहम भूमिका निभाई थी। वे अमेरिकी एयरफोस के पहले अफ्रीकी अमेरिकी ब्रिगेडियर जनरल भी थे।
दिसंबर 1998 में तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने उन्हें चार सितारा जनरल बनाया था। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान वो अमेरिकी एयरफोर्स की 99 वीं फाइटर स्क्वार्डन के कमांडर थे। उनके पिता भी अमेरिकी एयरफोर्स के पहले ब्लैक ब्रिगेडियर जनरल थे। उनके द्वारा खींची ये लाइन ताइवान स्ट्रेट के बीच में है। चीन और ताइवान के बीच इसको लेकर आम सहमति बनी थी कि कोई भी इस लाइन को क्रास नहीं करेगा। 1999 तक चीन ने इसका पालन भी किया। लेकिन, उसके बाद में चीन ने इस लाइन को मानने से ही इनकार कर दिया है।
नैंसी के ताइवान दौरे के बाद तो वो इस कदर बौखला गया है कि इस लाइन से संबंधित किसी भी बात को वो सुनना भी नहीं चाहता है। चीन के सैन्य प्रवक्ता ने पिछले दिनों ही साफ कहा था कि चीन ताइवान स्ट्रेट में खींची गई किसी Median Line को नहीं मानता है। चीन ने इस लाइन को कभी भी आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं दी है। इस लाइन को Devis Line के नाम से भी जाना जाता है। मौजूदा समय में चीन के जहाज इस लाइन को लगभग हर रोज ही क्रास कर आगे बढ़ते हैं। ताइवान के अधिकारियों का कहना है कि चीन ऐसा करके ताइवान पर सरेंडर करने का दबाव बनाना चाहता है।
ताइपे टाइम्स का कहना है कि इस लाइन का विचार त्यागना ताइवान के लिए असंभव है। ताइवान के विदेश मंत्री ने साफ कर दिया है कि यदि चीन इसको बदलना चाहता है तो उसे इसका जवाब भी दिया जाएगा। ताइवान इसमें बदलाव को कभी बर्दाश्त नहीं करेगा। उन्होंने ऐसा ही विचार रखने वाले दूसरे देशों से संबंधों को मजबूत करने की बात कही है, जिससे इसकी रक्षा को सुनिश्चित किया जा सके।
चीन की नई रणनीति में ताइवान की राष्ट्रपति फिलहाल शांत हैं। उनका कहना है कि वो कोई भी उकसावे की कार्रवाई नहीं करेगा। लेकिन इसका अर्थ ये भी नहीं है कि वो इस लाइन में किसी भी तरह के बदलाव को स्वीकार कर लेगा। इस रेखा से अमेरिकी युद्धपोत भी गुजरते हैं। इसका सीधा संकेत ये भी है कि ये एक अंतरराष्ट्रीय लाइन है, जहां से बेरोकटोक जाया जा सकता है। करीब 180 किमी चौड़ी ताइवान की खाड़ी, जहां पर चीन ने लाइव फायर ड्रिल की थी, के सबसे पतले हिस्से और मध्य रेखा ताइवान के पानी से करीब 25 किमी दूर है।
वर्ष 2020 में चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने एक बयान में इसके अस्तित्व को मानने से साफ इनकार कर दिया था। ताइवान के नेशनल पालिसी थिंक टैंक चीह चुंग का मानना है कि चीन द्वारा इस लाइन को न मानने से विवाद गहराने का जोखिम बढ़ गया है। इसके लिए ताइवान को अपने कोस्ट गार्ड और सेना को जवाब देने की छूट देनी चाहिए। जानकार मानते हैं कि चीन-ताइवान विवाद का फिलहाल सुलझ पाना नामुमकिन है। इसकी एक बड़ी वजह चीन का अडि़यल रवैया है।
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