कोरोना म्यूटेशन का पता लगाने के लिए, विकल्प जीनोम सीक्वेंसिंग में तेजी से गिरावट आ रही
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। एक तरफ कोरोना वायरस में लगातार नए-नए म्यूटेशन व गंभीर वेरिएंट भारत सहित पूरी दुनिया के लिए चुनौती बन रहे हैं। वहीं दूसरी ओर इन म्यूटेशन का पता लगाने के लिए एकमात्र विकल्प जीनोम सीक्वेंसिंग में तेजी से गिरावट आ रही है।
स्थिति यह है कि बीते अप्रैल-मई की तुलना में जुलाई माह में 95 फीसदी कम सैंपल की सीक्वेसिंग हुई है, जिनके आधार पर कहा जा रहा है कि भारत में सबसे ज्यादा डेल्टा वेरिएंट के मामले मिल रहे हैं।
इन्साकॉग से के मुताबिक इस वर्ष अप्रैल में देश जब दूसरी लहर का सामना कर रहा था उस दौरान 15,546 सैंपल की सीक्वेसिंग हुई। इसके बाद मई माह में 13,142 सैंपल की जीनोम सीक्वेंसिंग पूरी की गई।
यह सब उस दौरान हुआ जब लैब में काम कर रहे वैज्ञानिक व उनके परिजन तक संक्रमण की चपेट में आ गए थे, लेकिन जून आते ही सीक्वेसिंग में कमी आने लगी और जून माह के दौरान 4381 सैंपल की जांच हो सकी।
जुलाई में और भी गिरावट आई और महज 735 सैंपल की सीक्वेंसिंग में पता लगाया कि कोरोना के कौन कौन से स्वरुप मौजूद हैं। इनमें 735 में से 626 सैंपल में डेल्टा वैरिएंट मिला जिसे लेकर वैज्ञानिक लगातार चेतावनी देते आ रहे हैं।
जून व जुलाई में दिल्ली से एक भी सैंपल की सीक्वेसिंग नहीं हुई है। अब तक दिल्ली से आए 5353 सैंपल की ही सीक्वेसिंग हुई है। जबकि दिल्ली सरकार के अनुसार जुलाई माह तक 5752 सैंपल की सीक्वेसिंग हो चुकी है जिनमें से 1689 में डेल्टा वैरिएंट मिल चुका है।
फिलहाल देश में 11 हजार से भी अधिक सैंपल की सीक्वेसिंग कराने वाला राज्य महाराष्ट्र है। केरल आठ हजार से अधिक सीक्वेसिंग के साथ दूसरे स्थान पर है। इनके बाद अन्य सभी राज्यों की स्थिति काफी कमजोर है।
पांच फीसदी का नियम कोई नहीं कर रहा पूरा
इन्साकॉग के एक अधिकारी ने बताया कि देश में अब तक 72931 में से 30230 (60.60 फीसदी) में गंभीर वैरिएंट मिल चुका है। नवंबर 2020 में जब जीनोम सीक्वेंसिंग शुरू हुई तो नियम बनाया गया कि हर राज्य से कम से कम पांच फीसदी सैंपल की जांच जरूरी है लेकिन आठ महीने बाद भी इस नियम की परवाह किसी को नहीं है। देश में 50 करोड़ से अधिक सैंपल की जांच हो चुकी है लेकिन इनमें से जीनोम सीक्वेंसिंग एक लाख भी पार नहीं कर पाई है