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बीजिंग,(आईएएनएस)| तिब्बत में शिक्षा के विकास पर हाल ही में पेइचिंग में एक संगोष्ठी आयोजित हुई, जिसमें भाग लेने वाले 60 से अधिक चीनी और विदेशी विशेषज्ञों ने अपने-अपने अनुभव और शोध बताते हुए तिब्बत के शिक्षा विकास पर चर्चा की।
पेइचिंग में केंद्रीय मिनत्सू विश्वविद्यालय में कार्यरत तिब्बती प्रोफेसर शेरब न्यिमा ने अपने स्वयं के विकास के अनुभव के साथ तिब्बत में शिक्षा के विकास और परिवर्तन का वर्णन किया जिसे उन्होंने महसूस किया। उन्होंने कहा कि गत शताब्दी के 50 के दशक में तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति से पहले, स्थानीय आम नागरिक ज्यादातर भू-दास और गुलाम थे, उनके पास शिक्षा पाने का अधिकार नहीं था। उस समय युवाओं और वयस्कों में निरक्षरता दर 95 प्रतिशत से अधिक थी।
शेरब न्यिमा के मुताबिक, पिछली शताब्दी के 60 के दशक में तिब्बत में लोकतांत्रिक सुधार किया गया, और भू-दास व्यवस्था को खत्म किया गया। आम तिब्बती लोगों को शिक्षा पाने का अवसर और अधिकार मिला। वह खुद ही उन लाभार्थियों में से एक हैं। गत सदी के 70 के दशक से ही उन्होंने प्राइमरी स्कूल, मीडिल स्कूल, विश्वविद्यालय और स्नातकोत्तर शिक्षा के बाद धीरे-धीरे तिब्बती इतिहास के एक विद्वान के रूप में पहचान प्राप्त की। उनके अनुभव से देखा जा सकता है कि तिब्बत ने अपेक्षाकृत पूर्ण आधुनिक शिक्षा प्रणाली स्थापित की है। गरीब परिवारों के बच्चे निष्पक्ष और उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं, और शिक्षा प्राप्त करने के लिए सभी जातियों के लोगों के अधिकारों की पूरी गारंटी है।
संगोष्ठी में मंगोलिया के विज्ञान अकादमी के दर्शनशास्त्र संस्थान के धार्मिक अध्ययन विभाग के प्रधान बाता मिशिगिश ने कहा कि तिब्बती बौद्ध धर्म मंगोलिया में तिब्बती शास्त्र के अध्ययन की मुख्य विषयवस्तु है। चीन द्वारा तिब्बती संस्कृति के संरक्षण और प्रचार ने मंगोलिया में तिब्बती शास्त्र के अध्ययन को प्रभावित किया है। उनके विचार में तिब्बती बौद्ध साहित्य ने मंगोलिया की दार्शनिक परंपरा को गहराई से प्रभावित किया है और मंगोलिया की वैचारिक संस्कृति व सामाजिक मनोविज्ञान को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
वहीं, जापान के कोमाजावा विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर काजुओ कानो संस्कृत का अध्ययन करते हैं। उन्होंने विश्लेषण करते हुए कहा कि तिब्बत में मौजूदा संस्कृत सांस्कृतिक सीमा पार आदान-प्रदान के ऐतिहासिक तथ्य को दर्शाती है।
उधर, ऑस्ट्रेलिया में ग्रिफिथ विश्वविद्यालय के मानद प्रोफेसर कॉलिन मैकेर्रास ने अपने स्वयं के शोध के आधार पर बताया कि पुराने तिब्बत में, शिक्षा प्राप्त करने वाले मुख्य रूप से पुरुष थे, और उनमें से अधिकांश कुलीन परिवार के बच्चे थे। तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के बाद चीन ने तिब्बत में जल्द से जल्द आधुनिक शिक्षा प्रणाली को स्थापित करने, तिब्बती लोगों की वैज्ञानिक और सांस्कृतिक गुणवत्ता को उन्नत करने, तिब्बत में रहने वाले विभिन्न जातियों के लोगों के आधुनिक शिक्षा के बुनियादी अधिकार को सुनिश्चित करने को महत्वपूर्ण स्थान पर रखा है।
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Rani Sahu
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